इंदौर। डायबिटीज और ब्लड प्रेशर की समस्या किडनी की फिल्ट्रेशन मेंब्रेन पर प्रभाव डालते हैं। जिससे फिल्ट्रेशन खराब हो जाता है, टॉक्सिंस निकलना बंद हो जाते हैं और प्रोटीन लीक होना शुरू हो जाता है। इस वजह से किडनी में समस्या आती है। पहले के मुकाबले लोगों में जागरूकता बढ़ी है, जिसके चलते यंग जनरेशन भी अब इलाज के लिए आते है। यह बात नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ राजेश भराणी ने अपने साक्षात्कार के दौरान कही।
बीपी और डायबिटीज़ जैसी समस्या किडनी पर बुरा प्रभाव डालती है
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हमारी बदलती लाइफ स्टाइल और खान पान के चलते कई बीमारियां हमारे शरीर में जगह बना लेती हैं, वहीं इन सब चीजों से बीपी और डायबिटीज़ जैसी समस्या उत्पन्न होती है, जो आगे चलकर किडनी पर बुरा प्रभाव डालती है। उन्होंने अपनी एमबीबीएस और एमडी की पढ़ाई शहर के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज से पूरी की है। इसके बाद डीएम नेफ्रोलॉजी ऑल इंडिया मेडिकल इंस्टीट्यूट दिल्ली से पूरा किया। लगभग 20 साल से वह शहर के प्रतिष्ठित बॉम्बे हॉस्पिटल में नेफ्रोलॉजी फिजिशियन के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
स्टोन किडनी के रास्ते को ब्लॉक कर देता है, बैक पर असर पड़ने से किडनी के फैल होने के चांस बढ़ जाते हैं
बॉडी में पानी की कमी, हाई सॉल्ट कंटेंट पानी, हार्ड पानी के पीने से किडनी के स्टोन की समस्या देखने को मिलती है। कई बार स्टोन किडनी के रास्ते में आ जाने से किडनी के रास्ते को ब्लॉक कर देता है, जिस वजह से बैक पर असर पड़ता है। और इस वजह से किडनी के फैल होने के चांस बढ़ जाते हैं। डॉ संजीव भराणी और उनकी टीम की मेहनत के चलते ब्लड ग्रुप मिसमैच होने पर किडनी ट्रांसप्लांट का सेंट्रल इंडिया में खिताब उन्हीं के नाम है।
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किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी से पहले 10 प्रतिशत लोगों के अनफिट होने से डेट आगे बढ़ाना पड़ती है।
पहले महंगाई और जागरूकता की कमी के चलते लोग डायलिसिस और किडनी ट्रीटमेंट कम करवाते थे। लेकिन अब तो यह इलाज रियायत दरों और सरकार की स्कीम के तहत होने लगे है। वह किडनी ट्रांसप्लांट से पहले पेशेंट का मेडिकल मैनेजमेंट देखते हैं। वह अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि किडनी ट्रांसप्लांट सर्जरी से पहले 10 प्रतिशत लोगों के अनफिट होने से डेट आगे बढ़ाना पड़ती है।किडनी ट्रांसप्लांट से पहले बॉडी में किसी प्रकार का इन्फेक्शन नही होना चाहिए। टॉक्सिंस लेवल एक लेवल से ऊपर नहीं होना चाहिए। ट्रांसप्लांट से पहले बीपी लेवल, हिमोग्लोबिन और अन्य चीजें संतुलित होनी चाहिए। वह बताते हैं कि यंग पेशेंट में प्रिपरेशन में कम मेहनत करना होती है। वहीं ज्यादा उम्र वाले पेशेंट में बीपी लेवल, हिमोग्लोबिन, और अन्य समस्या सामने आती है। इसी ने साथ डायबिटीज के पेशेंट में हार्ट और अन्य ऑर्गन से संबंधित समस्या सामने आती है। जिस वजह से उसे ठीक करने में सर्जरी आगे बढ़ाना पड़ती है।