नशा ही नशा है

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पंजाब देश का कृषि प्रधान प्रदेश फिलहाल यहां के किसानों के आंदोलन के कारण देश ही नहीं विदेशों में भी सुर्खियां बना हुआ है, लेकिन ये प्रदेश पिछले एक दशक से ड्रग्स जैसे नशे की गिरफ्त में था। यहां फैल रहे इस कारोबार को लेकर जब उडता पंजाब जैसी फिल्म बनी तो इस पर पूरे देश का ध्यान गया और पंजाब में ये बड़ा मुद्दा बनकर सामने आया। पंजाब से बढ़कर ये नया खौफ अब मध्यप्रदेश में पैर पसार रहा है। और इंदौर इसकी चपेट में हैं। इंदौर में ड्रग्स कारोबारियों के पकड़ाने के बाद उन पर ताबडतोड़ कार्रवाई शुरू हुई। नशे के धंधे में शामिल लोगों पर कार्रवाई की जा रही है। वेश्यावृत्ति के गिरोह के पकड़ाने और उसकी लिंक मिलने के बाद इसकी तह में ड्रग्स का कारोबार होने के मामले को इस तरह से पेश किया जा रहा है जैसे एक बड़ा अचिवमेंट हो।

मुझे एक अलग टीस उठ रही है वो टीस है इस कारोबार के शहर में लगातार पसर रहे पैर और उसके बाद भी उस पर जिम्मेदारों की उदासिनता को लेकर है। ये धंधा एक दो दिनों या एक दो महीनों में नहीं फैला बरसों से शहर में नशे की आमद हो रही थी, लेकिन उन पर तब क्यों कार्रवाई नहीं की गई। कौन इन्हें संरक्षण दे रहा था। प्रदेेश के सबसे बड़े शहर में ये कारोबार लगातार बढ़ता रहा और पुलिस के इंटेलिजेंस सिस्टम को खबर तक नहीं लगी। शहर में रेव पार्टियों का कल्चर पिछले एक दशक से बढ़ा, लेकिन इन पार्टियों में ड्रग्स कैसे पहुंचती है, ये पता करने की कोशिश किसने की।

इंदौर में अन्य प्रदेशों से ये जहर पहुंच रहा था, लेकिन ये शहर में आने के पहले पकड़ा क्यों नहीं गया। बीआरटीएस पर रात में गुजरने वाले हर व्यक्ति का सामना इन नशेडियों से लगभग रोजाना होता ही है। ये नशेडी कई थानों के सामने से होकर गुजरते हैं, लेकिन कभी हेलमेट तो कभी जांच के नाम पर चालान काटने में अव्वल रहने वाली इंदौर पुलिस को ये नजर नहीं आते है। गांजा, चरस, अफिम के ठीकानें थानों से नजदीक होते हैं, लेकिन थाने में बैठे पुलिस के जवानों को इसकी खबर न हो ये कोई भी आम आदमी मानने को तैयार नहीं होगा।

इंदौर में चाकूबाजी, लूट के कई मामलों में ये बात सामने आ चुकी है कि इन्हें करने वाले नशे में थे। इंदौर मेें लगातार गाडिय़ों की चोरियां बढ़ीं। हालत ये है कि एक दिन में 5 से 7 गाडियां चोरी होना आम बात हो गई। लेकिन इन चोरियों के बढऩे के मूल कारण को कभी नहीं तलाशा गया। जबकि इनके चोरों को जब भी पकड़ा गया तो जानकारी सामने आई की अधिकांश नशेडी हैं। और नशे के लिए ये चोरियां करते थे। फिर भी क्यों इंदौर के जिम्मेदारों के कान खड़े नहीं हुए।

इंदौर की 25 लाख से ज्यादा की आबादी में 2 लाख से ज्यादा नेता हैं। इनमेें से अधिकांश युवा तुर्क, युवा हृदय सम्राट, युवा दिलों की धड़कन, युवाशक्ती के खिताब रखने वाले नेता हैं। लेकिन गली-गली में मौजूद नेताओं को कभी अपने आसपास बढ़ रहे नशेडियों की चिंता नहीं हुई। इंदौर वैसे तो 2 सांसदों, एक दर्जन विधायकों का घर है। इतने ही पूर्व विधायक भी इंदौर मेें रहते हैं। ये सभी रोजाना अखबारों में अपराधों और उनके करने वालों के बारे में पढ़ते जरूर हैं, लेकिन कभी इन नेताओं ने जिम्मेदार अधिकारियों से इसको लेकर चर्चा नहीं की। अपने से जुड़े लोगों के लिए अधिकारियों को फोन लगाने वाले नेताओं में से किसी ने भी इस जहर को लेकर किसी अधिकारी से चर्चा की हो, ये मेरी जानकारी में नहीं आया है। क्या कभी किसी नेता ने अफसरों से ये पूछा कि ये कारोबारी जिन क्षेत्रों में फैले हुए हैं, वहां की जिम्मेदारी जिन कंधों पर है उन्होने क्या किया।

क्यों पुलिस और प्रशासन के खुफिया तंत्र को इसकी जानकारी नहीं थी, ये किसी ने नहीं पूछा। क्योंकि नेताओं को भी जनता की नहीं अपनी चिंता ज्यादा है। मैं और मेरी छवि में अंटागफिल रहने वाले नेताओं को शहर की और शहर के नौजवानों की चिंता कितनी है, ये सामने आ रहा है। कभी एक गरीब की छोटी बच्ची के साथ दुष्कर्म के मामले में तीन दिनों तक बंद रहने वाला ये शहर आज राजनीति के नशे में आकंठ तक डूबा है। शहर की जनता राजनेताओं की दी खुमारी के नशे में बेसुध पड़ी है ओर जब जनता ही बेसुुध है तो फिर उसकी चिंता करने वाले क्यों किसी बात की फिक्र करें। उन्हें मालूम है कि ये बेसुध मुर्दे के समान हैं, इनके साथ जो भी कर लो, न ये बोलेंगे, न ये कुछ समझेंगे। बेजुबान हो चुके शहर को नेता और अधिकारी भी अपने हिसाब से ही हांक रहे हैं और आज्ञाकारी जानवरों के समान शहर भी उनके आगे झूका नजर आता है
बाकलम – नितेश पाल