ड्रोन नीति: डिजीटल युग का नया ड्रीम, कुछ खतरे भी…

Ayushi
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ajay bokil

अजय बोकिल

देश में मीडिया और सियासी अखाड़े में तालिबान की रात-दिन जुबानी कुटाई के बीच केन्द्र में मोदी सरकार ने नई ड्रोन नीति की अहम घोषणा की है। जिस पर इस देश का ध्यान ज्यादा नहीं गया है। अमूमन कभी- कभार आकाश में सिर के ऊपर उड़ने के कारण लोक कौतुहल का केन्द्र बनते पायलट रहित ये ड्रोन विमान 21 वीं सदी में प्रगति की नई इबारत लिखने वाले हैं।

दुनिया के कई देश इस ड्रोन टैक्नाॅलाजी का व्यापारिक और सामारिक महत्व पहले ही समझ चुके हैं, हमने अब ध्यान दिया है। बहरहाल सरकार ने ड्रोन उद्दयोग को बढ़ावा देने तथा भविष्य में ड्रोन तकनीक के व्यापक उपयोग के मद्देनजर नई ड्रोन नीति जारी कर की है। संक्षेप में समझें तो नई नीति के इसके तहत ड्रोन के लिए जरूरी मंजूरियों को कम कर उसे पाना सरल कर दिया गया है। हालांकि इसमें कुछ खतरे भी हैं। यानी इस उदार नीति का लाभ वो लोग भी उठा सकते हैं, जो आतंकी या विध्वंसक गति‍विधियों में लिप्त है।

बहरहाल, नए नियमों में पांच सौ किलो तक भार उठाने वाले बड़े ड्रोन्स को भी शामिल कर लिया गया है। सरकार देश में तेज परिवहन के लिए ड्रोन टैक्सी को भी बढ़ावा देगी। इससे पार्सल तो भेजे ही जा सकेंगे, साथ ही कबूतर की जगह ड्रोन प्रेम पत्र भी प्रियतम तक पहुंचा सकेंगे। आसमान में हजारों ड्रोन उड़ने से ट्राफिक जाम जैसा कुछ न हो इसके लिए ड्रोन्स का उड़ान मार्ग तय करने ‘डिजीटल स्काय प्लेटफॉर्म’ बनेगा। इसमें ग्रीन, यलो और रेड जोन्स होंगे। सभी ड्रोन्स का इन जोन्स पर आॅन लाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा। रजिस्ट्रेशन फीस बहुत कम होगी आदि।

वैसे पहले पायलटरहित विमान का विकास प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटेन और अमेरिका ने किया था। तब पहला रेडियो नियंत्रित और चालक रहित विमान 1917 में बनाया गया था। उसे ‘कैटरिंग बग’ नाम दिया गया था। हालांकि वो प्रायोगिक दौर में ही रहा। प्रथम और द्वितीय विश्वयुद्ध के बीच की अवधि में ब्रिटेन व अमेरिका में कई रेडियो ‍िनयंत्रित विमान बने, जिनका उपयोग प्रशिक्षण आदि के काम में होता था।

वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने ड्रोन के युद्धक उपयोग पर काम शुरू किया। ड्रोन को चलाने सौर ऊर्जा का प्रयोग‍ ‍िकया गया। न्यूयाॅर्क में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर 9/11 के आतंकी हमले के बाद अमेरिका ने ड्रोन तकनीक का व्यापक इस्तेमाल शुरू ‍िकया। आज भारत सहित आठ देशों के पास ड्रोन टैक्नोलाॅजी है।

लेकिन आधुनिक घूमने वाले पंखों से युक्त ड्रोन का जनक एक अमे‍िरकी यहूदी अब्राहम करीम को माना जाता है। पेशे से इंजीनियर करीम को (यूएवी तकनीक) ‘ड्रोन का पितामह’ भी कहा जाता है। इजराइल में पले-बढ़े करीम ने अपना पहला यूएवी 1970 में ‘योम किप्पुर युद्ध’ के दौरान इजराइली वायु सेना के लिए बनाया था। बाद में करीम अमेरिका में बस गए। लेकिन उन्होंने अपने आविष्कार से 21 सदी में युद्ध की नई परिभाषा रच दी थी।

यकीनन चालक रहित ड्रोन 21 वी सदी की नई सनसनी है। हालांकि इसका जन्म और इसका सीमित उपयोग भी 20 वीं सदी में ही शुरू हो चुका था। ड्रोन मूलत: पुरानी अंग्रेजी का शब्द है, जिसका अर्थ आलसी होता है। लेकिन बिना पायलट के जमीन से रिमोट से चलने वाले इन छोटे विमानों को ड्रोन नाम शायद इसलिए दिया गया, क्योंकि ये पायलट वाले विमानों की तुलना में बहुत धीमी गति से और बहुत नीचे उड़ते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे यूएवी ( अनमैन्ड एरियल व्हीकल) कहते हैं। ड्रोन का महत्व इसलिए भी है कि यह तकनीक बहुपयोगी है। ड्रोन पांच प्रकार के होते हैं।

जिन्हें नैनोँ, माइक्रो, स्माल, मीडियम था लार्ज श्रेणियों में बांटा गया है। ये पाव भर से लेकर डेढ़ क्विंटल वजन तक के होते हैं। इनकी कीमत हजार रू. से लेकर कई लाख रू. तक हो सकती है। ड्रोन निर्माण में अमेरिका,चीन और इजराइल सबसे आगे हैं। विश्व में ड्रोन उद्योग लगभग 24.87 अरब डाॅलर का है, जो 2026 तक 58 अरब डाॅलर तक पहुंचने की उम्मीद है। ड्रोन भारत में भी बनने लगे हैं। हालांकि ‍ड्रोन बाजार में हमारी हिस्सेदारी अभी 4.25 प्रतिशत ही है। इसके तेजी से बढ़ने की संभावना है। सरकार ने नई नीति इसी मकसद से जारी की है।
जहां तक ड्रोन के असैनिक उपयोग का प्रश्न है तो हमारी जानकारी अभी शादी व अन्य समारोहों में होने वाली ड्रोन फोटोग्राफी या फसल सर्वे तक ही सीमित है। लेकिन जल्द ही ड्रोन कृषि से जुड़े मामलों, सर्वेक्षणों, एरियल मैपिंग, कानून व्यवस्था बनाए रखने, ऊंची इमारतों की एचडी शूटिंग आदि काम भी करते दिखाई देंगे। इसके लिए आसमान में जाने की जरूरत नहीं है। रिमोट के जरिए ड्रोन यह काम बखूबी करेंगे।

यानी जमीन की निगरानी आकाशीय आंख से जमीन से ही की जा सकेगी। एक अनुमान के मुताबिक ड्रोन के ज्यादा से ज्यादा उपयोग के चलते देश में 5 हजार से ज्यादा प्रशिक्षित ड्रोन रिमोट पायलटों की जरूरत होगी। इसके अलावा ड्रोन निर्माण के लिए भी मानव संसाधन की आवश्यकता होगी। सरकार को उम्मीद है कि ड्रोन नए रोजगार की गुंजाइश पैदा करेंगे।

ड्रोन के उपयोग का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र सैनिक है। क्योंकि ड्रोन ने आधुनिक युद्ध की इबारत बदल दी है। पायलट चलित युद्धक विमानों का आज भी अपना महत्व है, लेकिन शत्रु को बहत किफायती खर्च में और बिना जनहानि के नुकसान पहुंचाने और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के मामले में ड्रोन कामयाब साबित हुए हैं।

बहुत कम ऊंचाई पर उड़ने के कारण ये राडार की पकड़ में भी नहीं आते और अपना काम करके चल देते हैं। ध्यान रहे कि इसी साल जम्मू एयरपोर्ट पर पाकिस्तान ने ड्रोन हमला‍ किया था। आने वाले समय में ये हमले और बढ़ेंगे। पिछले साल आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच नोर्गोनो काराबाख पर कब्जे को लेकर हुए भारी युद्ध में ड्रोन तकनीक का काफी इस्तेमाल हुआ। भविष्य में और भी ज्यादा घातक और शत्रु सीमा में अंदर तक जाने वाले ड्रोन्स का विकास होना तय है। ड्रोन्स का उपयोग सेना के तीनो अंग करते हैं। भारत ने अपने युद्धक ड्रोन रूस्तम-। और रूस्तम-।। ड्रोन विकसित किए हैं। अमेरिका, रूस, चीन, ताइवान, पाकिस्तान, तुर्की,ईरान ने भी सशस्त्र ड्रोन तैयार किए हैं।

इन देशों में घातक ड्रोन तैयार करने की होड़ मची है। भारतीय थल सेना के पास स्वार्म ड्रोन्स हैं। भारत अमेरिका से तीनो सेनाअों के ‍िलए 30 उच्च तकनीक वाले शिकारी एमक्यू-9 बी सशस्त्र ड्रोन्स भी खरीद रहा है। इनकी कीमत 3 अरब डाॅलर है। ये ड्रोन 48 घंटे तक उड़ सकते हैं और 1700 किलो तक का वजन साथ ले जा सकते हैं। ड्रोन्स से नागरिक क्षेत्रों पर बम भी गिराए जा सकते हैं। निगरानी के‍ लिए भी इनका उपयोग बखूबी किया जा सकता है। यह भी माना जा रहा है कि ड्रोन्स को भारतीय लड़ाकू विमान तेजस और जगुआर से भी जोड़ा जाएगा।

इसी के साथ दुश्मन के ड्रोन्स को खोज निकालना और उन्हें मार ‍िगराने के लिए अत्याधुनिक ड्रोन रोधी तकनीक भी चाहिए। इसके लिए भारतीय नौसेना ने इजराइल से एंटी ड्रोन‍ राइफले खरीदी हैं। इन राइफलों में स्मैश 2000 प्रणाली फिट की जाती है, जो ड्रोन हमले का जवाब देती है। हिंदुस्तान एयरोनाॅटिक्स लि. ड्रोन हेलीकाॅप्टर भी विकसित कर रहा है। भारत देर तक उड़ने वाले चार हेरोन ड्रोन्स भी इजराइल से खरीदने जा रहा है। ये ऊंची चोटियों की निगरानी भी करेंगे। इजराइल लड़ाकू ड्रोन्स का सबसे बड़ा निर्यातक है।

बेशक युद्ध कोई अच्छी बात नहीं है, लेकिन युद्ध के लिए सदा तैयार रहना जरूरी है। इस सदी में लड़ाइयां संख्या बल से ज्यादा अत्याधुनिक तकनीक से लड़ी जाएंगी। यानी लडाई जमीन के लिए होगी, निशाने आकाश से साधे जाएंगे। ड्रोन इसी का प्रतीक हैं। लेकिन ड्रोन से उम्मीद दुश्मनियां निभाने से ज्यादा मानव सभ्यता के मददगार की है। नई ड्रोन नीति को इसी के परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यकीनन ड्रोन डिजीटल युग का ड्रीम है। इसे साकार करने में भारत की भी बहुआयामी भूमिका होगी, यह तय है।

वरिष्ठ संपादक
‘राइट क्लिक’
( सुबह सवेरे’ में दि. 27 अगस्त 2021 को प्रकाशित)