पुलिस में अपनी मां की छवि ढूंढते सड़कों पर नियम तोड़कर भागते वाहन चालक

Suruchi
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हमारी सुरक्षा के लिए बने यातायात नियमों का पालन हम से ही करवाने के लिए हमें पुलिस की जरूरत क्यों महसूस होती है। शायद इस प्रश्न का जवाब हमारे बाल्यकाल से जुड़ा हुआ है। एक छोटे बच्चे को खाना खिलाने के लिए उसकी मां उसके पीछे पीछे दौड़ती है, वो उसे प्यार से समझाती है, लालच देती है, पुचकराती है, गुस्सा दिखाती है और कभी कभी डर भी दिखाती है लेकिन वो बच्चा अपनी मां की बात ना मानकर आगे आगे भागता रहता है। रोजाना होने वाले इस कौतुक में बच्चे को बहुत आनंद आता है। मां को परेशान होते देख वह प्रसन्न होता है। उसे यह सब एक खेल लगता है।

जब यातायात नियमों के पालन की बारी आती है तो हम अपने बाल्यकाल की स्मृतियों में लौट जाते हैं और सड़क पर हमारा व्यवहार उस नटखट बालक की तरह हो जाता है जिसे अपनी मां को तंग करना या खिजाना अच्छा लगता है। लेकिन यहां फर्क यह है कि उस नादान बच्चे को नहीं मालूम होता कि भोजन करना उसके लिए आवश्यक है, उसके हित में है। लेकिन हमें तो पता है कि यातायात नियम हमारी सुरक्षा के लिए बने हैं, उनका पालन करना हमारे अपने हित में है। फिर हम क्यों किसी नासमझ बच्चे की तरह उनसे दूर भागते है और उम्मीद करते हैं कि जैसे बचपन में मां खाना खिलाती थी उसी तरह पुलिस हमें समझाएगी, डांटेगी, चालान बनाएगी, दंड वसूली करेगी जरूरत पड़ने पर कोर्ट भी ले जाएगी और हमसे यातायात नियमों का पालन करवाएगी। क्या हम पुलिस में अपनी मां की छवि को ढूंढते हैं।

वो नटखट तो बालक अंतत: मान जाता है और मां के हाथ से इस भाव से कुछ खा लेता है कि उसे खाने की जरूरत नहीं है बल्कि भोजन करवाना मां का काम है। हमें यह समझना होगा कि सड़क पर वाहन चलाते समय वाहन चालक की सुरक्षा के लिए उनसे यातायात नियमों का पालन करवाना पुलिस की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि स्वयं के हित में नियम पालन करना हर वाहन चालक का प्रथम और आवश्यक नागरिक कर्तव्य है। शहर की सड़कों पर प्रतिदिन हो रहे हादसों के लिए पुलिस, प्रशासन, नगर निगम, ट्रेफिक इंजीनियरिंग आदि को दोषी ठहराना एक फैशन सा बन गया है। लेकिन यह देखने में आया है कि शहर की घने ट्रेफिक दबाव वाली सड़कों पर वाहन चालकों द्वारा लापरवाही पूर्वक अपने वाहन रांग साइड में ले जाना और रेड लाइट में वाहन भगा ले जाना आम बात है जो सड़क दुर्घटनाओं के प्रमुख कारण के रूप में उभरा है।

जनमानस को यातायात नियम पालन की जरूरत के बारे में जागरूक करने के लिए यातायात प्रबंधन विभाग विभिन्न कार्यक्रम जैसे यातायात नियम पोस्टर, जन संवाद, हेलमेट वितरण, स्कूलों में शिक्षा, ट्रेफिक पार्क में कक्षा, यातायात प्रबंधन मित्रों के सहयोग से चौराहों पर समझाईश आदि लगातार चला रहा है और उसके सकारात्मक परिणाम भी दिखाई पड़ते हैं। यातायात नियम लोगों की सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं ना कि सिर्फ चालान वसूली के लिए। लेकिन लोगों के मन में यह बात घर कर गई है कि यातायात नियमों का पालन करना उनका काम नहीं है बल्कि वाहन चालकों से यातायात नियमों का पालन करवाना पुलिस का काम है। हम अक्सर देखते हैं कि जहां पुलिस मौजूद नहीं होती वहां वाहन चालक धड्डले से नियमों का उल्लंघन करते नजर आते हैं। आजादी के अमृत लाल में इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है।

वस्तुत: ईंधन चलित वाहन के आविष्कार के कई वर्षों बाद सड़क दुर्घटना में वृद्धि को देखते हुए यातायात नियम वाहन चालकों की सुरक्षा के लिए इजाद किए गये थे। उनका पालन करना हमारे अपने हित में है। हमें पुलिस की ओर नहीं देखकर अपनी स्वयं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए यातायात नियमों का पालन करना चाहिए। अंत में वाहन चालकों से एक सवाल : वाहन चालकों की सुरक्षा के लिए बनाए गए नियमों का पालन कर स्वय की सुरक्षा करने के लिए उन्हें पुलिस क्यों चाहिए ?

यातायात प्रबंधन मित्र राजकुमार जैन,
लेखक पिछले 7 वर्षों से सोशल मिडिया पर यातायात सुधार अभियान #अरेओभिया चला रहे हैं