लद्दाख: पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन में चल रहे तनाव के बीच अब दो-कूबड़ वाले बैक्ट्रियन कैमल भारतीय सेना की मदद करेंगे। बैक्ट्रियन कैमल पर कभी सिल्क रूट का पूरा व्यापार निर्भर करता था, लेकिन अब इसे सेना गश्त में इस्तेमाल करेगी। पूर्वी लद्दाख में ये ऊंट तब सेना के साथ गश्त करते नजर आएंगे जब इस पूरे इलाके में तनाव का माहौल बना है और भारत-चीन की सेनाएं एक दूसरे के सामने भारी हथियारों से लैस होकर खड़ी हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक इन बैक्ट्रियन कैमल को दौलत बेग ओल्डी (डीबीओ) और देप्सांग में तैनात किया जाएगा, जहां तकरीबन 17 हजार फीट की ऊंचाई पर सेना के लिए पैट्रोलिंग का काम काफी दु्ष्कर माना जाता है। यह वही इलाका है जहां पिछले 4 महीने से भारत और चीन के बीच तनाव बना हुआ है।
लद्दाख का बैक्ट्रियन कैमल मुश्किल हालात में काम के लिहाज से फिट बैठता है। ये वहां के मौसम के हिसाब से पूरी तरह ढले हुए हैं, साथ ही नुब्रा घाटी और लद्दाख के चप्पे-चप्पे से वाकिफ हैं। ये ऊंट सेना के लिए ऐसी जगहों पर भी अच्छे ट्रांसपोर्टर के तौर पर काम आ सकते हैं, जहां वाहनों की आवाजाही संभव नहीं है। इन ऊंटों के बारे में लेह स्थित डिफेंस इंस्टीट्यूट ने पूरा अध्ययन किया है।
ब्रैक्ट्रियन कैमल को सेना में शामिल करने का प्रोजेक्ट 2016 में डोकलाम घटना के बाद विचार के लिए आगे बढ़ाया गया था। सिक्किम में भारत-तिब्बत-भूटान के एक ट्राई जंक्शन पर दोनों देशों की सेना कई दिनों तक एक दूसरे के सामने डटी रह गई थी। बाद में बातचीत के जरिये इस मुद्दे का हल निकाला गया और चीनी सेना वापस हो गई।