देश को जाति के दावानल में मत डालो…भारत मां को दलगत राजनीति के घिनौने चक्रव्यूह से बाहर निकालो…

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प्रखर वाणी
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जातिगत जनगणना पर बवाल करते हो…संविधान की प्रति अपने हाथ धरते हो…कभी एकता और अखंडता का नारा देने वालों…जातियों की वैमस्यता से कटते लोगों को युद्ध में मत डालो…पहले ही अगड़ों और पिछड़ों के आरक्षण की जंग में मरते युवाओं की पीड़ा देखी है…इतिहास के दस्तावेजों में मंडल – कमण्डल के गम की दर्ज लेखी है…समरसता के भाव जिस देश में लाना चाहते हैं वहां तुम जातियों का प्रपंच ला रहे हो…

अपनी वोट बैंक की राजनीति में फिर इस देश को जला रहे हो…क्या गलत कह दिया अनुराग ठाकुर ने जिस पर हंगामा हो गया…सच को स्वीकार करने के बजाय झूठ के आंगन में सच खो गया…राजनीति की रंगीन फिजाओं में सत्ता के आसन प्राप्ति वाले ख्वाब देखने वालों…अपने सपने की पूर्ति हेतु कम से कम देश को तो जातियों के दल दल में मत डालो…तुम्हारी जाति पूछना अपराध है और जन जन की जाति पूछना जरूरी..

.क्या जातियां जानकर ही मिटेगी तुम्हारी वर्षों से सत्ता से दूरी…तुम अपने गिरेबान में झांककर देखो अतीत ने तुमको क्या दिया है…सांप सीढ़ी के खेल की तरह निन्यानवे पर आकर सांप ने डस लिया है…कभी तुम्हारे ही पुरखों ने नारा दिया था – “न जात पर न पात पर…”अब क्यों मुख मोड़ते हो अपने ही दल की इसी पुरानी बात पर…एक तरफ हम जातियों को जोड़कर उनकी एक राष्ट्र रूपी माला बनाना चाहते हैं…दूसरी तरफ आप उसको तोड़कर उसमें दरार डालना चाहते हैं…जब संविधान की पाठशाला का पहला अध्याय रचा था तब उसमें अखण्ड , सम्प्रभुत्व , लोकतांत्रिक गणराज्य की बात कही थी…जिस संविधान की प्रति हाथ में लेकर तुमने शपथ ली उसी की अवहेलना जातिगत रही थी…

भारत को जोड़ने के बजाय उसमें विष घोलकर तोड़ने वालों…बाहर से भोले भीतर से चुभते हुए भालों…जातिगत जनगणना वाली अपनी जुबान पर नहीं लगते तालों…गोरे बदन के विचार गहन कालों…बयानों में कभी शुद्र , कभी पिछड़े बोलकर गालियां देते हो…पत्रकार के प्रश्न पूछने पर उसकी जाति की खिल्ली उड़ाकर पीटने से रोकते हो…तुम जैसे दोहरे चरित्र वाले राजनीतिज्ञों ने ही देश में तमाशा बना डाला…चिंता उनकी करो जिनका जातिगत कारणों से छिन रहा है निवाला…जातिगत जनगणना से पिछड़ों का उत्थान नहीं होगा बल्कि उपहास होगा…उनको देश की मुख्य धारा में लाकर जोड़ने से उनमें जाग्रत विश्वास होगा…संसद में जाति पूछना गाली है तो बाहर जनगणना करते समय कैसे पूछा जाएगा…

हाथ के इशारों से साइकिल चलाने वाला इस पहेली को कैसे सुलझाएगा…खाली दाढ़ी और लाल टोपी से ही देश नहीं चलता…देश को चलाने हेतु हृदय में पहले देशप्रेम मचलता…तभी हमारा भाव हमारा कर्म देश की रीति – नीति में सही – गलत का फैसला करने में सक्षम होता है…धर्म की राजनीति करके वोट कबाड़ने वालों जाति की राजनीति का तुम्हारा विचार अक्षम होता है…देश को जाति के घृणित दावानल में मत डालो…भारत माँ को इस दलगत राजनीति के घिनौने चक्रव्यूह से बाहर निकालो ।