‘सफर में रुको मत, चलते रहो’

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उमेश त्रिवेदी

जिंदगी के खेल में नियम अलग होते हैं क्रिकेट हॉकी फुटबॉल बेसबॉल या रग्बी जैसे खेलों के समान इसमें हार जीत के पैमाने सुनिश्चित नहीं किए जा सकते जिंदगी में व्यक्ति जीतकर भी कई बार हताशा महसूस करने लगता है और कभी-कभी पराजय की लकीरें भी सबक बन कर सफलताओं को रोशन करने का सबब बन जाती है इसीलिए समाज या संस्थान ने नेतृत्व के तकाजे और कायदे किसी रोड मैप की तरह रेखांकित नहीं होते सही अर्थों में नेतृत्व शीलता और नेतृत्व क्षमता के मायने सिर्फ सादिक नहीं हो सकते क्योंकि इसका भावात्मक पक्ष प्रबल होता है मानवीय संवेदनाओं को नियोजित करने की संपूर्ण तकनीक या लिपिबद्ध करने का अक्षर ज्ञान आज भी अधूरा है.

इसीलिए नेतृत्व की आधार भूमि हमेशा चुनौतीपूर्ण होती है संभवतः नेतृत्व की ऊंचाई का आकलन इसीलिए लीडर में छिपी गहराइयों के आधार पर होता रहा है वैश्वीकरण या मार्केटिंग के नए संदर्भ में यह मसला सीधे-सीधे मानव संसाधन के विकास से जुड़ा है जहां मानवीय संवेदनाओं की भाव मुद्रा हमेशा बदलती रहती है मनुष्य समाज या संस्थान के विकास को सक्रिय करने वाली पहली महत्वपूर्ण इकाई है जिसके बिना कोई गिनती शुरू नहीं हो पाती संवेदनाओं के धरातल पर मानव संसाधन का प्रबंध वैसे ही मुश्किलों भरा है लेकिन जब यह मीडिया या पत्रकारिता के मानव संसाधन से जुड़ा हो तो मामले ज्यादा टेढ़े हो जाते हैं.

अभय जी के बारे में बातें शुरुआत के लिए शायद रिश्तो का यही मोड़ सबसे ज्यादा मुनाफिक होता है एक सफल व्यक्ति की सक्रियता में जितने तत्व भौतिक रूप से साकार और सामने होते हैं उतने ही तत्व निराकार रूप में अंतर्निहित होते हैं और लिखते नहीं हैं प्रबंधन में भावनाओं से जुड़े निराकार तत्व ज्यादा महत्वपूर्ण और धनी भूत होते हैं दिक्कत यह है कि निराकार तत्व नियम बंद नहीं होते इसीलिए साकर तत्वों की तरह उनको नापना संभव नहीं है इसके क्या पैमाने हो सकते हैं कि व्यक्ति के भीतर छिपे राग द्वेष दया करुणा प्यार नफरत लोभ लालच आसक्ति विरक्ति काम क्रोध हिंसा अहिंसा के भाव कितने छलके या आग उगलेंगे इंसान के भीतर उमड़ती घूमर टी निराकार प्रतिकियाए ही व्यक्ति को ताकतवर या कमजोर सकारात्मक या नकारात्मक बनाती है.

चुंबकीय व्यक्ति की संरचना में यह पहली शर्त यही है कि उसमें ये लगातार दया करुणा स्नेहा त्याग और बड़प्पन की ऊर्जा प्रवाहित होती रहे दिल परिस्थितियों में भले ही उसकी मात्रा कम ज्यादा हो किंतु एक सकारात्मक ऊर्जा अभय जी के आसपास हमेशा नजर आती है संभवत इसीलिए वह श्रेष्ठ संघटन करता श्रेष्ठ लीडर श्रेष्ठ प्रोफेशनल और इन सबसे ऊपर श्रेष्ठ मनुष्य के रूप में स्वयं को स्थापित करने में सफल रहे हैं यह उनकी पत्र कार्य सफलताओं सामाजिक सेवाओं व्यवसायिक मिष्ठान का लेखा-जोखा नहीं है अथवा उन सम्मानीय अलंकारणाओं का हिसाब नहीं है जो साकार रूप में उन्हें सफलताओं की ऊंची पायदान ऊपर खड़ा करते हैं बल्कि उनके भीतर छिपे उन निराकार तत्वों का रेखांकन है जो उनके बेहतर इंसान का सबब है यदि फर्स्ट पर्सन में बात की जाए तो अभय जी से मेरे रिश्ते 35 साल पुराने हैं जो उनके बारे में कुछ कहने लिखने और बोलने के मेरे अधिकार को प्रमाणिकता देते हैं.

जिन रिश्तो की उम्र 35 साल हो वह एक तरफा तो कदापि नहीं हो सकते पत्रकार संपादक या मालिक के नजरिए से मेरे लिए यह व्यवसायिक मजबूरी कभी भी नहीं थी कि मैं नई दुनिया से बंधा रहूं मेरी क्षितिज हमेशा खुला रहा लेकिन इसके बावजूद यदि मेरी उड़ान नई दुनिया के दरख़्तों पर ही लिपटी रही तो उसका एकमात्र कारण अभय जी हैं जिन्होंने उड़ने की ताकत भी दी और रिश्तो का एक ऐसा ताना-बाना भी दिया जिसे तोड़ पाना कभी संभव नहीं हो सका चर्चा मानव संसाधनों के नियोजन या विकास या प्रबंधन से शुरू हुई थी अभय जी ने मानव संसाधन विकास और प्रबंध की विधिवत शिक्षा या वैज्ञानिक गुर सीखने की कोई डिग्री हासिल नहीं की फिर भी इस क्षेत्र में उनका कौशल जाने-माने विशेषज्ञों के चुनौती रहा उन्होंने एक अखबार की दृष्टि से मानव संसाधन का इंतजाम रचनाशीलता सकारात्मकता और संवेदनशीलता के साथ किया.

यह वह इसीलिए कर सके क्योंकि मानवीय श्रेष्ठता उनका सहज और स्वाभाविक गुण रहा है सवाल यह है कि अभय जी में छिपी निराकर प्रक्रियाओं का मेग्नीट्यूड कैसे नापा जाए जो सामने नहीं है उसका आकलन कैसे हो किसी व्यक्ति के निराकर तत्व की गहराई को महसूस तो किया जा सकता है लेकिन उसके आकाश को स्केल पर खड़ा करना मुश्किल होता है यह आकलन केवल एक ही तरह से संभव है कि पत्रकारिता खेल राजनीति उद्योग या सामाजिक क्षेत्रों में सक्रिय हस्तियों पर नजर घुमाई जाए जिनके कार्य की धुरी अभय जी रहे हे संख्या सैकड़ों में है वह खरगोन बुरहानपुर खातेगांव जैसे छोटे कस्बों या गांव का अनजान पाठक भी हो सकता है जिसकी मदद के लिए अभय जी ने कोशिशें की या शिखर पर बैठे वह लोग भी हो सकते हैं जो आज समाज में सफलता का माइलस्टोन माने जाते हैं राजधानी में पदस्थ होने की वजह से ऐसे सभी प्रयासों या संघर्षों की लहरें मुझसे टकराती रही है.

इसीलिए वह किस्से आज भी मेरे रूबरू है समाज के मौजूदा ताने-बाने में या तर्क की कसौटी पर लोगों की मदद की कोशिशें सहज ही गले नहीं उतरती है जब भी ऐसे मामलों पर सवाल जवाब होते थे तो उनका एक ही जवाब था कि इसमें नई दुनिया का मान बढ़ेगा अपना क्या नुकसान होगा यदि हमारे कहने से किसी की मदद हो जाती है यह एक लंबी रामायण है जिसका पुण्य प्रसाद दूर-दूर तक फैला है फिलवक्त जबकि हर चीज का मेल भाव होता है उनकी मददगार अवधारणाएं सवालिया हो जाती है सिस्टम उन्हें रिजेक्ट करता है स्ट्रक्चर उन्हें फालतू मानता है लेकिन जब तक वो धुरी रहे उन्होंने सिस्टम और स्ट्रक्चर को कभी इतना रूखा कर कर कठोर और कंटाला नहीं होने दिया कि लोग आहत होने लगे पत्रकारीय जीवन की परिस्थितियां कभी एक जैसी निरंतर नहीं रहती आपकी कलम कभी बवाल मचाती है.

कभी चुप हो जाती है उसके पास लिखने के लिए कभी आसमान की स्लेट होती है और कभी अंकुश के अंधेरे घेरते रहते हैं कोई पत्रकार ऐसा नहीं होगा जिसे इन परिस्थितियों से जूझना नहीं पड़ा हो ऐसे वक्त में उनकी एक ही सीख रही थी कि एक स्थान पर खड़े रहकर विवाद मत करो चलते रहो रास्ते अपने आप बनते चलेंगे मानवीय रचना या निर्माण की कार्य पद्धति को बखूबी समझते हैं शीर्ष प्रबंधन के सूत्रधार होने के नाते उन्होंने अपने साथियों के बारे में कठोर फैसले भी लिए लेकिन छलछलाते घावों पर मरहम लगाने वाली उनकी संवेदनाओं में कभी लोगों को टूटने नहीं दिया ऐसे फितरत लंबी है जो नई दुनिया से बाहर गए लेकिन भावात्मक रूप से कभी अलग नहीं हुए पिछले 10 12 वर्षों में समाज की बदलती धारा और ने मूल्यों को लगभग अधमरा कर दिया है.

मीडिया के मूल्य भी बदले हैं पत्रकारिता के हर क्षेत्र में बदलाव आया है संपादन के तटबंध टूटे हैं इस वांछनीय बदलाव की पीड़ा को अभय जी के चेहरे पर महसूस किया जा सकता है लेकिन वह हताश नहीं है उन्हें भरोसा है कि समाज के सकारात्मक ऊर्जा से ही संचालित होता है इसीलिए परिस्थितियां बदलेंगे सनसनी के ऊपर सकारात्मक पत्रकारिता प्रभावी होंगी उन्हें लोगों ने परिस्थितियों से लड़ते देखा है समय के प्रभाव को अंगीकृत करते हुए उन्होंने कभी हार नहीं मानी और एक उत्प्रेरक के रूप में उन्होंने अपने साथियों को पस्त नहीं होने दिया वो कहते हैं निराश की आंधी से सफर मत रोको चलते रहो आज नहीं तो कल समय करवट लेगा क्योंकि मूल्य हारते नहीं है.

अभय जी आज शिखर पर है और शिखर अक्सर अकेले होते हैं लोग आसानी से उन्हें छू नहीं पाते शिखर का सुख और सफलताएं बाटी जा सकती है लेकिन दर्द और एकाकीपन खुद ही झेलना होता है शायद इसे ही नियति कहते हैं कि आखिर में नदी के किनारे भी साथ छोड़ देते हैं जिंदगी के उनके सफर में कई लोग उनके साथ चले उनके साथ रहे और अच्छा मुकाम हासिल किया उनके बहाव के साथ सफलताओं के समुद्र में इतराते इतराते कई जहाजों के मजदूरों पर यदि रोशनी जगमगा आ रही है तो वह अभय जी देन है निजी क्षणों में रोशनी और उसके स्त्रोत को महसूस करने वालों की संख्या काफी बड़ी है और बेहिसाब भी.