धैर्यशील येवले
आते जाते
अपरिचितों पर
भौक उठते थे
गली के श्वान
मैं डपट देता उन्हें
चुप रहा करो
बेवज़ह भौकते हो ,
श्वानों ने भौकना
बंद कर दिया है
गली में अजीब सा
सन्नाटा पसरा
रहता है ।
आज मैं गली में
सैकड़ो अपरिचितों
को देख रहा हूँ
अपरिचितों ने
कब परिचितों को
स्थापन्न कर दिया
पता ही न चला
अब समझ मे आया
क्यो जरूरी होता है
श्वानों का भौकना ।