आप भी सोचेंगे कि कितना अजीब सा शीर्षक हैं मगर क्या करें कभी कभी सच्ची बात अजीब भी लगती है। तो जब हमारे मित्र ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से अब चुनाव बीजेपी के पक्ष में स्विंग करने लगा, गौर से देखो बीजेपी नेताओं की बाडी लैंग्वेज बदल गयी है। ये बात सुनकर मैं हैरान हो गया और पूछ बैठा क्या चुनाव झूलता भी है कि कभी कांग्रेस तो कभी बीजेपी की तरफ जाता दिखता है। मध्यप्रदेश में चुनाव नवंबर के आखिरी दिनों में हैं दिसंबर के पहले हफ्ते में सोलहवीं विधानसभा का गठन हो जायेगा और नयी सरकार में कौन बनेगा मुख्यमंत्री का यक्ष प्रश्न भी हल हो जायेगा। मगर इस सब के बीच में वक्त करीब पांच महीने का ही बचा है तो ऐसे में चुनाव यूं ही ऊपर नीचे होगा तो हमारी कमजोर दिल की धड़कनों का क्या होगा। हम तो टकटकी लगाकर मध्यप्रदेश के हमारे दौर के सबसे दिलचस्प विधानसभा चुनाव को देखने बैठे हैं।
आपको बता दूं कि एक महीने पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आते ही भोपाल में कांग्रेस का प्रदेश दफतर गुलजार हो उठा। उस शाम दफतर में जो पटाखे फोड़े गए उनकी आवाज प्रदेश के सभी जिलों में गूंजती रही। खुशी इतनी कि मिनिट टू मिनिट का हिसाब बनाकर अपने पॉकेट में रखने वाले प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ भी सब कुछ भुलाकर पार्टी दफतर आ गये और मध्यप्रदेश में कर्नाटक दोहराने का दावा करने लगे। बस फिर क्या था हर कांग्रेसी सीना तान कर वही भाषा और अंदाज में बात करने लगा जैसा कमलनाथ कर रहे थे।
इस बीच में बीजेपी सक्रिय थी लाडली बहना योजना का माहौल बनाने। ऐसा शायद ही कोई दिन जाता हो जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लंबे से रैंप पर चलकर प्रदेश की वोटर बहनों के लिये आंसुओं और भावुकता से भरा भाषण ना देते हों।
आदिकाल से चले आ रहे भाई बहन के रिश्ते और अठारह साल बाद उमडे लाडली बहन प्रेम पर रुलाने वाला भाषण जो शुरू होता था बहनों की तकलीफ देह जिंदगी के मार्मिक वर्णन से तो फूलों का तारों का सबका कहना है एक हजारों में मेरी बहना है से खत्म होता था। एक बहना की जगह शिवराज ने प्रदेश की ढाई करोड मतदाता बहनों में से सवा करोड बहनों को लाडली माना और उनके खाते में एक एक हजार रूपये डालने और उससे जिंदगी संवारने का दावा किया। उधर इस कवायद से बीजेपी नेता गदगद बोले मामा का भाषण सुन बहनें रो देती हैं देखना चुनाव में लाइन में लगकर झोली भर देंगी अपने भैया की वोटों से। सरकार तो अब रिपीट है।
कच्ची गोलियां तो कांग्रेस ने भी नहीं खेलीं। पॉलिटिक्स तो कांग्रेस भी करना जानती है तो बीजेपी के हजार रूपये के जवाब में कांग्रेस ने डेढ़ हजार महीने का लॉलीपॉप तो नहीं कहेंगे हां सपना दिखाया प्रदेश की महिला वोटरों को। साथ में पांच सौ रूपये में वो गैस सिलेंडर भी देने को कहा जो इन दिनों हजार नहीं एक हजार तीन सौ रूपये में भरता है। कांग्रेस ने बीजेपी की तर्ज पर जगह जगह महिला वोटरों से नारी सम्मान योजना के फार्म भरना शुरू किये तो देखते देखते चालीस लाख फार्म भर दिये गये। जिन महिलाओं ने बीजेपी का हजार रूपये का फार्म भरा वही महिलाओं ने डेढ़ हजार का कांग्रेसी फार्म भी भरा यही सोच कर कि मुफ्त का हजार या डेढ हजार रूपैया लेने में क्या बुराई है।
बीजेपी के लिये अब तक अच्छा चल रहा चुनाव फिर कांग्रेस के पक्ष में जाता दिखने लगा। कर्नाटक चुनाव में बजरंग बली नहीं चले, हिजाब नहीं चला, मोदी की रैलियों का जादू नहीं चला मगर मध्यप्रदेश में लाडली बहना चलने की उम्मीद थी तो उसे कांग्रेसी नारी सम्मान योजना ने धोना शुरू कर दिया। बीजेपी के लोग फिर बैचेन हुये मगर उनका दावा था कि कांग्रेस ने सारे पत्ते खोल दिये हैं हमारे मेहनती मामा के पास कुछ ना कुछ तो जरूर होगा देखना आने वाले दिनों में। जैसा कि हमारे मित्र बोले थे कि चुनाव तो ऊंचा नीचा होता है। बस फिर क्या था जबलपुर के गैरिसन ग्राउंड में जब शिवराज ने एक घंटे के मार्मिक भाषण के बाद सवा करोड लाडली बहनों के खातों में 1209 करोड रूपये डाले और कहा कि ये हजार रूपये महीने से शुरू हुयी योजना रुकेगी नहीं इसे डेढ हजार दो हजार ढाई हजार और फिर तीन हजार रूपये तक कर दूंगा तो लगा ये मामा का मास्टर स्ट्रोक लग गया।
बाल बाउंड्री की तरफ अब तेजी से जा रही थी मगर अभी कांग्रेस का दांव बाकी था। शिवराज के कार्यक्रम के दो दिन बाद ही जबलपुर में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी भी आयीं और उनके स्वागत में चौराहों पर लगी गदा ने कांग्रेस का नया नैरेटिव गढने की कोशिश की। प्रियंका के नर्मदा पूजन और शहीद स्मारक की सभा में दिये गये आधे घंटे के भाषण ने कांग्रेसियों का हौसला बढाया। लगा कि चुनाव एक बार फिर कांग्रेस के पक्ष में झूलता दिखा। दोपहर में प्रियंका का भाषण होता है कमीशनबाजी का सरकार पर आरोप लगता है और शाम होते होते भोपाल के सतपुड़ा भवन में ऐसी आग लगती है जो बारह घंटे के बाद भी नहीं बुझी। सरकार की किरकिरी हुयी लगा प्रियंका के भ्रष्टाचार के आरोपों में दम हैं।
इधर बीजेपी के रणनीतिकार परेशान बने रहे। प्रियंका की रैली में आयी भीड की जानकारी लेते रहे। मगर इस बीच शिवराज का जबलपुर में सेट किया नैरेटिव दो तीन दिन में नीचे तक जाने लगा। पैसा बहनों के खातों में पहुंचने लगा। उस पर एक हजार आने वाले दिनों में तीन हजार हो जायेगा ये बात भी नीचे तक जाने लगी। घरों में आने वाले काम वाली बाइयां और दूसरी महिलाओं के चेहरे पर खुशियां दिखने लगी। उस पर शिवराज का कहना कि कांग्रेस की कहा की गारंटी वारंटी हम तो पैसा दे रहे हैं खातों में जा रहा है और जाता ही रहेगा।
अब लगा कि मामा के मास्टर स्ट्रोक की बाल बाउंड्री पार होने ही वाली है। लाडली बहना संकट निवारण बन गयी है। तभी तो हमारे मित्र ने दावे से कहा कि बीजेपी फिर एक बार मैदान में आ गयी है और चुनाव का पलड़ा एक बार फिर बीजेपी के पक्ष में झुकता दिख रहा है। मगर आप हैरान ना होईये दिल थाम कर बैठिये ऐसा उतार चढाव चुनाव के आखिरी दिनों तक चलता रहेगा। कभी पलड़ा कांग्रेस के तो कभी बीजेपी के पक्ष में डोलेगा। आप तो बस लोकतंत्र के इस उत्सव के मेले में लगे सीसा झूले के मजे लीजिये।
ब्रजेश राजपूत,
एबीपी न्यूज