दिग्भ्रमित राजनीति? कहां ले जाएगी देश को

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शशिकांत गुप्ते

इनदिनों कांग्रेस की स्थिति इस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि, “फूटे भाग फ़क़ीर के भरी चिलम ढुल जाए”
कई राज्यों में चिलम ढुल गई,कई सूबों में चरित्रवान और संस्कारित लोगों ने धक्का मार कर ढोल दी। शायद अति धार्मिक लोगों को दूसरों के सामने परोसी हुई थाली झपटने में मजा आता है।
कांग्रेस की स्थिति में सन सतहत्तर के बाद बहुत उतार चढ़ाव आते रहे हैं। कांग्रेस ने प्रचलित की हुई सुविधाभोगी और व्यक्तिकेंद्रीत राजनीति को देश की तकरीबन सभी सियासी पार्टियों ने आत्मसात कर लिया है।यही तो कांग्रेस की सबसे बड़ी उप्लब्धि है।
आज विकल्प की राजनीति का ढिंढोरा पीटने वाले, शुद्ध रूप से कांग्रेस की कार्बन कॉपी बन कर रह गए है।कार्बन कॉपी कहने के बजाए, फोटोकॉपी कहना एकदम उचित रहेगा,फ़ोटोकॉपी भी एनलार्ज की हुई।
राजनीतिक दलों की स्थिति दिग्भ्रमित सी हो गई है।आधे से ज्यादा उधर हैं,कुछ बचे हुए, उम्रदराज हठीले इधर हैं,बाकी जो थोड़े बहुत बचें है,वह राजनीतिक प्रायवेट लिमिटेड कम्पनियों के अजीवन डायरेक्टर बनकर रह गए हैं
वर्तमान राजनीतिक स्थिति को देखते हुए,एक बुज़ुर्ग सर्वोदयी व्यक्ति ने कहा जब राजनीति में ही राम नहीं बचा है,तब राम का नाम लेकर राजनीति क्यों की जा रही है?
प्रख्यात गांधीवादी आदिवासियों के मसीहा,स्वतंत्रता सेनानी स्व.मामा बालेश्वरदयालजी ने धर्म आधारित राजनीति पर व्यंग्य करते हुए कहा था।राम का नाम लेने से परलोक सुधरता है,(यह परलोक जाने इच्छुक लोगों पर निर्भर है।)हमे तो,अर्थात देशहित में बुनियादी सवालों को लेकर सँघर्ष करने वाले लोगों को लोकतंत्र को मजबूत करना है।
सन दो हजार ग्यारह में भ्रष्ट्राचार के विरोध में एक आंदोलन हुआ था।इस आंदोलन के दौरान पूरा देश ईमानदार हो गया था।
इस आंदोलन के सबसे बड़ी उपलब्धि यह हुई कि,राजनीति में अति धार्मिक और चाल,चरित्र में स्वच्छ छबि वाले लोगों ने इस आंदोलन को भूना लिया।
दूसरी उपलब्धि पुलिस की भूत पूर्व आला दर्जे की अधिकारी वर्तमान में एक राज्य की पालनहार बन गई।वह संवैधानिक सुविधाओं का भरपूर उपभोग करते हुए,सील सिक्को के उपर अपने हस्ताक्षर करने व्यस्त हो गई है।
तीसरी उपलब्धि देश की राजधानी की सियासत में बहुत ही चमत्कारिक ढंग से झाड़ू चल गई।
आज जो सत्ताधीश हैं,वह महाराष्ट्र में स्थित विदर्श की राजधानी के विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण प्राप्त लोग हैं।इस विश्वविद्यालय में सिर्फ और सिर्फ संस्कार संस्कृति के साथ चरित्र निर्माण का ही पाठ पढाया जाता है।
इस विश्वविद्यायल की स्थापना के बाद इस विश्वविद्यालय के जो दूसरे कुलपति उर्फ गुरुजी थे।वह नियुक्त हुए थे।उन्होंने राजनीति को शौचालय की उपमा दी है।बकौल गुरुजी के, घर में शौचालय होना आवश्यक है,लेकिन चौबीसों घण्टे कोई भी वहाँ जाकर नहीं बैठता है।
आज उन्ही से प्रशिक्षण प्राप्त विद्यार्थी तो नहीं कहेंगे,अनुयायी हर गाँव,शहर,नगर, डगर डगर में शौचालय बनवा रहे हैं।यह अनिवार्य भी है।
आश्चर्यजनक बात तो है कि,गुरुजी ने जिस राजनीति को नित्यकर्म से निवृत्त होने के स्थान की उपमा दी है, उसी राजनीति में कथित समाजवादी और कांग्रेसी गलबहियां कर संघी साथी बन रहे है।
पिछले पाँच छः महीनों से एक अदृश्य वायरस की दहशत फैली हुई है।बाजार में सन्नाटा है।बेरोजगारों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ रही है।
सरकार को राजस्व से होने वाली आय पर प्रश्न उपस्थित हो रहा है।
देश में अनेक समस्याएं विकराल रूप ले रहीं हैं।
जब सारे रास्ते बंद हो जाते हैं, तब सिर्फ एक ही रास्ता बचता है और वह भगवान की शरण में जाने का रास्ता होता है।
देश असंख्य मंदिरों को छोड़ कर अब सिर्फ अयोध्या की ओर ही कूच करना चाहिए।
हे राम अब आप ही कोई रास्ता निकालों, आपने अभिषाप से पाषण बनी अहिल्या का उद्धार किया था।असुरों का वध किया था।
है प्रभु आप से यही प्रार्थना है,आप वर्तमान में पाषण हॄदय लोगों में संवेदनाओं का संचार करो।मानवों में दानवी प्रवृत्ति को पनपने से रोकों।
राजनीति को सही दिशा में परिवर्तित करों।दिग्भ्रमित होने बचाओ।
भगवान से यह सब विनंती करने के साथ रामजी के चरित्र स्मरण हुआ।रामजी चरित्र में लिखा है कि,उन्होंने वचन निभाने के लिए सारे भौतिक सुखों के साथ अपने राजपाट को भी त्याग दिया था।
यह सब स्मरण होते ही,रामजी किसी भी प्रकार की गुहार करना ही बेमानी करने जैसा लगता है।