केंद्र सरकार ने 11 मार्च को नागरिकता संशोधन नियम की अधिसूचना जारी कर देश भर में लागू कर दिया है. वही इस कानून के लागू होने के बाद विपक्ष से लेकर विदेशी मीडिया मोदी सरकार को निशाने पर लिया है. बता दें साल 2019 में बने इस क़ानून को चार साल बाद मोदी सरकार ने लागू करने का फ़ैसला किया है. हालांकि जब ये क़ानून बना था तो देश के कई हिस्सों में इसे लेकर विरोध प्रदर्शन हुआ था. क़ानून को भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ बताते हुए इसका विरोध किया था.
वहीं अब जब ये चुनावी साल में लागू किया जा रहा है तो विपक्षी पार्टियां इसे चुनावी दांव बता रही हैं.इस कानून को लेकर सीएए को लेकर ना सिर्फ़ देश में बल्कि पाकिस्तान से लेकर ब्रिटिस अमेरिका सभी विदेशी मीडिया के चर्चा का विषय बना हुआ है. विदेशी मीडिया में कुछ ने इसकी आलोचना की तो को इसे चुनावी दांव बता रहा है. कतर की अलजजीरा ने तो मोदी सरकार की मंसा पर सवाल खड़े कर दिए है.
इंटरनेशनल न्यूज रॉयटर्स ने अपने समाचार में लिखते हुए बताया कि समाजिक कार्यकर्ता ये मानते हैं कि नेशनल सिटिजन रजिस्टर के साथ इस क़ानून को मिलाकर भारत के 20 करोड़ मुसलमानों से भेदभाव किया जाएगा, न्यूज ऐजेंसी ने लिखा की ऐसे मुसलमान जो सीमावर्ती राज्यों में रहते हैं और जिनके पास दजस्तावेज़ नहीं हैं, उनकी नागरिकता को खतरा हो सकता है. वहीं इस पर मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस क़ानून के नोटिफ़ाई होने पर कहा, “सीएए धर्म के आधार पर भेदभाव को जायज़ बनाता है.
अमेरिका का समाचार पत्र न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा की भारत में चुनावों से कुछ हफ़्ते पहले नागरिकता क़ानून लागू किया जा रहा है. पोस्ट में लिखते हुए कहा कि क़ानून दिल्ली में साल 2020 में हुए दंगों के बाद से ठंडे बस्ते में पड़ा था.. अब भारत में अप्रैल और मई में चुनाव होने वाले हैं और चुनाव की तारीख़ों की घोषणा इसी महीने होने वाली है.इससे यह बड़ा कदम है.
‘हज़ारा, अहमदिया और रोहिंग्या से भेदभाव’
क़तर के का जानी मानी न्यूज अल-जज़ीरा ने भी इस पर एक रिपोर्ट छापी है.अल-जज़ीरा लिखता है कि सीएए के आने से पहले भारत में नागरिकता पाने का आधार धार्मिक पहचान नहीं हुआ करता था.जो भी नागरिकता चाहता था उसे बस ये दिखाना था कि वह क़ानूनी तरीक़े भारत में आए हैं और 11 साल से भारत में रह रहे हैं.
नागरिकता के लिए यही नियम थे.नए नियम के बाद पाकिस्तान के अहमदिया, अफ़ग़ानिस्तान के हज़ारा और म्यांमार से रोहिंग्या जैसे प्रताड़ित अल्पसंख्यों को भारत आने के बाद नागरिकता के लिए 11 साल तक इंतज़ार करना होगा. लेकिन हिंदू, पारसी, सिख, बौद्ध, ईसाई या जैन हैं तो उन्हें बस वैध दस्तावेज़ दिखाने होंगे और पांच साल में उन्हें नागरिकता मिल जाएगी.
गौरतलब है कि भारत सरकार ने 11 मार्च को देशभर में सीएए लागू कर दिए है। इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह ने चुनाव से पहले लागू करने का दाव किए थे. वही इसके बाद ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जमकर विरोध कर रहें है. ममता जहां बंगाल में लागू होने पर जान देने की बात कर रही है.तो वहीं केजरीवाल इसे खतरनाक बताते हुए देश में कानून व्यवस्था को खतरा बता रहें है.