सिंधिया से शिवराज तक कोरोना से बचना मुश्किल …

Akanksha
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jyotiraditya scindia shivraj singh

ब्रजेश राजपूत

दृश्य एक – भोपाल में छह नंबर मार्केट में यदि बायीं तरफ से प्रवेश करें तो घुसते ही नीचे फुटपाथ पर चादर बिछा कर, उस पर लाल रेशमी राखियां रखकर, धूप से बचने के लिये लाल छाता लगाकर बैठे हुये थे कमल किशोर। आंखों में पढा लिखा होने का सबूत चश्मा और पेन तो था ही जानलेवा करोना से बचने के लिये माश्क की जगह सफेद रूमाल था। एक दिन बाद लगने वाले लाकडाउन की आहट ने उनकी राखी की बिक्री की संभावनाएं खत्म कर दीं थी जिसकी चिंता की रेखाएं माथें पर थीं। सुंदर सा विजुअल देख मोबाइल से दो फोटो खींची और कमलकिशोर से झुक कर बात करने लगा। कहानी कुछ यूँ थी कि पिछले लाकडाउन में एनवीडीए दफतर से बाहर कर बेरोजगार कर दिये गये थे कमलकिशोर। इसलिये इन दिनों परिवार पालने के लिये छोटे मोटे काम कर रहे थे। राखी आती देख हजार रूप्ये उधार लिये और राखियां खरीद कर कमाई के इरादे से बैठे ही थे कि लाकडाउन रिटर्न का आदेश आ गया। दुखी होकर कहने लगे पहले लाकडाउन ने बेरोजगार बनाया तो दूसरे लाकडाउन ने कर्जदार। पढे लिखे गरीब आदमी का जीना ही मुश्किल है इस करोना काल में।

दृश्य दो – भरत जाटव और उनके भाई मुरैना के रहने वाले हैं छह नंबर पर नूतन कालेज के सामने फुलकी गोलगप्पे का ठेला लगाते हैं। ये काम वो धौलपुर से सीखकर आये थे। जब कालेज चलता था तो सारी भीड इनके ठेले के आसपास रहती थी और भाईयों का फुलकी खिलाते हाथ नहीं रूकता था। मगर पिछले लाकडाउन में गलियों में सब्जी बेचकर गुजारा किया था। लाकडाउन रिटर्न के एक दिन पहले फिर दिख गये सब्जी ठेले के साथ।मैंने हंस कर पूछा क्या हाल हैं। बस भाईसाहब अब फिर इसी सब्जी का सहारा है। कल से दस दिन तक यही काम करना है यदि सरकार बेचने दे तो वरना दस दिन बहुत होते हैं बच्चों को खिलाना मुश्किल होगा।

दृश्य तीन – लाकडाउन का पहला दिन है। खबर बनाने निकले हैं साथ में एनडीटीवी के अनुराग द्वारी हैं। नये और पुराने भोपाल को जोडने वाली जगह कमला पार्क पर खडे हैं वहीं मुलाकात होती है भोपाल पुलिस के तेज तर्रार युवा अफसर से। आप यहां कैसे। ला एंड आर्डर के साथ हमें व्यवहार भी निभाने प्रडते हैं एक परिचित डाईवर का कल रात इंतकाल हो गया। पुराने शहर में रोज तीन चार मौतें बुजुर्गों की हो रही है। कोरोना की रिपोर्ट बाद में आती है पहले बुजुर्ग दम तोड देते हैं। हम आपको कुछ नहीं बुजुर्गों पर कहर बन कर टूट रहा है कोरोना। मगर इतने के बाद भी जनता समझने को तैयार नहीं है। जब तक पुलिस रहती है तो अंदर रहते हैं हमारे हटते ही फिर गली में उसी तरीके से उतर आते हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। इस झुंझलाहट के साथ वो चले गये गिन्नौरी की संकरी सी गालियों में अपने परिचित के घर संवेदना जताने।

दृश्य चार – कमला पार्क से न्यू मार्केट के रास्ते के बीच में ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का टवीट धमाके की तरह गिरता है। अपने को कोरोना पाजिटिव होने की जानकारी उन्होंने स्वयं टवीट कर दी और ये खबर थोडी देर बाद ही सारे समाचार चैनलों पर सबसे बडी ब्रेकिंग न्यूज थी। अनुराग और मैं अपने अपने चैनलों पर हो रहे फोनो के लिये और जानकारी जुटाने में लग गये। लोग ये खबर जानकर हैरान थे और जो टवीटर पर नहीं थे वो हम सबसे वाटस अप से ये खबर सच है या नहीं ये जानने में लग गये थे। मगर खबर सच थी प्रदेश के सबसे बडे नेता को कोरोना ने अपनी जकड में ले लिया था। शिवराज जी की सक्रियता तारीफे काबिल है अपने आपको वो हमेशा व्यस्त रखते हैं। सरकारी कामकाज हो या फिर पार्टी की जिम्मेदारी किसी काम को वो मना नहीं करते और यही व्यस्तता उनको भारी पडी। दिन की चार सरकारी बैठकें और फिर पार्टी दफतर का एक चक्कर उनका रोज लगता ही था। थोडी देर बाद ही उनके चिरायू अस्पताल में जाते हुये विजुअल्स चैनल पर चलने लगे और लोग उनके स्वास्थ्य की बेहतरी के लिये ाशुभकामनाएं देने लगे।

दादा जब सिंधिया अमिताभ और शिवराज भी कोरोना से नही बच पाये तो हमारा आपका और आम जनता का क्या होगा। ये अनुराग थे जो अब चिंतन के मोड में आ गये थे। और उनके इस सवाल का मेरे पास कोई जबाव नहीं था। गिन्नौरी की संकरी गलियो के बुजुर्गों से लेकर श्यामला हिल्स के प्रदेश के सबसे सुरक्षित घर तक कोरोना की ये दस्तक अब वाकई डराने लगी है।
पुरानी महामारियों का इतिहास खंगाला जाये तो सबसे हाल की महामारी 1918 का स्पेनिश फलू थी जो पहले विश्व युद्व के दौरान सैनिक कैंपों से फैली और सैनिकों के साथ ही उनके देशों में जाकर फैली। इस बीमारी के खिलाफ एक साल में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुयी तब जाकर ये खत्म हुयी मगर इस एक साल में इसने दुनिया के पांच से दस करोड लोगों की जानें लीं। कोरोना कब तक रहेगा कहना मुश्किल है। बस उम्मीद की खबरें रोज अखबारों में वैक्सीन के टेस्टिंग को लेकर छपती हैं मगर वैक्सीन खोजना और उसे बडे पैमाने पर बनाना कुछ महीनों की बात नहीं होती लंबा वक्त लगता है इसमें तब तक लाक डाउन में जीना ही समाधान है बेकारी और बेरोजगारी हो तो हा। ये साल अपनी और अपने वालों की जान बचाने का साल है। ये हमेशा और हरदम याद रखना होगा।