देवेन्द्र बंसल को ”सृजन श्री” सम्मान

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सामाजिक ,विचारक,कवि देवेन्द्र बंसल को साहित्य संगम संस्थान मध्यप्रदेश द्वारा “ सृजन श्री “सम्मान मिला है । यह उनके
प्रेरणादायी पत्र लेखन को मिला है। साथ ही द फेस ऑफ इंडिया’ प्रस्तुत “साहित्यनामा पत्रिका में जो पूरे देश से आमंत्रित थी में तीन कविता ,हमारी अपनी संस्कृति का भारत ,प्रेम प्यार का जीवन बंधन ,मन को सम्भालें बची हुई को सँवारे ,का प्रकाशन हेतु चयन कर उनकी कविता को सम्मान मिला। आपके लेख कविता का प्रकाशन देश की अनेक पत्र पत्रिकाओं में व अख़बारों में प्रकाशित होती रही है। सहित्यनामा पत्रिका ,कौमुदी पत्रिका ,ईवा जिंदगी इंटरनेशनल लिटरेसी एंड कल्चरल ग्रूप ,साहित्य संगम संस्थान मध्यप्रदेश ,कवि चौपाल मनीषी सम्मान,साहित्य बोध ,कविता मंच ,आदि द्वारा भी सम्मान आपको मिला है। पत्र लेखन में जो “दोस्त को पाती प्रेम भरी “ माता पिता को आदर और सम्मान के प्रेरणादायक विचारों की अभिव्यक्ति थी। देवेन्द्र बंसल का लिखा पत्र ……. दोस्त को पाती प्रेम भरी

प्रिय दोस्त,
आप स्वस्थ होगे सब मंगल ही मंगल होगा। यादों के प्रेम भरें गुलदस्ते ,शब्दों के नेह से तुम्हें भेंट करता हूँ ।सोचा प्रेम भरी पाती से पारिवारिक स्नेह के शब्दों के मिठास से भरी मिठाई का डब्बा तुम्हें भेजूँ। पल पल खिसकती ज़िंदगी तुम यूँ ही मत जाने दो दोस्त।माता पिता के सम्मान में तुम रोज़ ,प्रेम से भरे शब्दों का गुलदस्ता ,मुस्कुराते उन्हें दिया करो ।उन्हें तुम से आस होती है ।उन्होंने तुम्हें अपना सब कुछ दिया है ।वह तुम्हें ख़ुश देखना चाहते है ।  मीठी भावना से भरे गुदगुदाते पल जिंदगी बना देते है ।जो प्यार और एहसास माता पिता दे सकते है ,वह इस जहाँ में कोई नही दे सकता । वो रूठकर भी सहज हो जाते है ,सब सहकर भी ,सिर पर हाथ सहलाते है ,इन्तज़ार तुम्हारा करते है ।खुद के दुःख दर्द भूल तुम्हें ख़ुशहाली देते है । दोस्त जिंदगी सरल नही है उन्होंने तो हमें बड़ा कर दिया अब हमें ज़िम्मेदारी निभानी है ।उनके आँखो से कभी आँसू के मोती मत गिरने देना वो टूट जाएँगे।

उनके शब्दों को मिठास में लेकर ,जीवन को प्रेरणादायी बनाने में ही परिवार में प्रेम रस बरसेगा ।उनको जीवन जीने का अनुभव है ।जिंदगी बिखर भी जाए तो प्रेम के शब्दों से सँवर जाती है ।एक समय के पश्चात फिर हमें भी उनकी कही वही बातें याद आती है जो हम पर बीतती है ।
जीवन में पारिवारिक प्रेम से ही ,घर आँगन में आनंद का उत्सव होता है ,प्रभु भी उस आँगन में स्नेह की बारिश करते है । अब में शब्दों को विराम देता हूँ ।मिलने का इन्तज़ार करता हूँ।माता पिता को प्रणाम बोलना ।

तुम्हारा दोस्त
देवेंद्र बंसल
इन्दौर मध्यप्रदेश
(स्वरचित प्रेरणादायक पत्र)