शिक्षा के मंदिर बंद हैं, शिक्षक भी परेशान है, क्या राष्ट्र निर्माण के प्रणेता इस पर सोचेंगे ?

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   देवेन्द्र बंसल

देश के ऐसे अनेक़ो शिक्षा मंदिर है जो नए पौधे को शिक्षित कर रहे थे, वे संकट की इस घड़ी में बंद हो रहे है। शिक्षा गुरु अपनी मेहनत लगन से जो देश का भविष्य तैयार करते थे आज वह भी मजबूर हो गए है ।उनकी आँखे स्कूल खुलने का इंतज़ार कर रही है। क्या सरकार शासन प्रशासन इसे मज़बूती प्रदान करेगा जो देश के राष्ट्र निर्माण में विशेष भूमिका रखते है। वैश्विक महामारी के इस संकट में पालकों की अपनी मजबूरी है उन्हें बच्चों के बचाव के साथ उसके भविष्य की भी चिंता है।

देश के सभी विद्यालय सक्षम नहीं है की वह सालभर का रखरखाव स्कूल का वहन कर ले। अनेक़ो स्कूल लोन पर ,किराए पर भी संचालित हो रहे थे। जिनके सामने फ़ीस ना आने से गम्भीर समस्या खड़ी हो गई है। अधिकांश पालकगण फ़ीस नही भर रहे है लेकिन आन लाइन पढाई करवा रहे है। जो स्कूल ख़र्च वहन नही कर पा रहे थे वह बंद हो गए या बंद किए जाने की स्थिति में है ।ऐसे स्कूलों को व शिक्षकों को कौन सहयोग करेगा।

एक धारणा सभी ने बना रखी है कि स्कूल तगड़ी फ़ीस वसूलता है और शिक्षा के नाम पर कुछ नहीं होता है स्कूल वालों को अच्छी इंकम होती है। इस पर सरकार को मूल्यांकन करना चाहिए व व्यवस्था देनी चाहिए। जो अगर ऐसा कार्य कर रहे है। लेकिन जो वास्तव में शिक्षा को परमार्थ के उद्देश्य से सेवा दे रहे है और राष्ट्र निर्माण के लिए नई पौध तैयार कर रहे है उनकी और ध्यान देने की आवश्यकता है।

कालोनियों में प्ले स्कूल की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पालक अपने नन्हे मुन्नो को पास ही के स्कूल में भेजना उनके लिए सुविधाजनक होता है। वहाँ उसकी फ़ाउंडेशन तैयार होती है साथ ही देखभाल ठीक से पालक कर लेते है ।अब प्ले स्कूल के सामने भी समस्या हो गई है जो नामिनल फ़ीस पर प्ले स्कूल संचालन कर रहे थे और नई पौध को तैयार कर रहे थे ।ऐसे में शिक्षा के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग गया है जिसके लिए बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जाती थी और बेटी पढाओ के लिए जागरूकता अभियान चलाया जाता था और यह देश की पहली प्राथमिकता होती थी। आज सवाल यह है की जो देश की प्रमुख बुनियाद थी जिस पर जगमगाता राष्ट्र स्थापित होता है शिखरता पाता है ,उसकी ही व्यवस्था चरमरा गयीं है ।वह अपने आप पर आँसू बहा रहा है क्या राष्ट्र निर्माण के प्रणेता प्रहरी इस पर विचार करेंगे ।