पुण्यतिथि विशेष : “काल के कपाल” पर अंकित “विचार प्रवाह” स्व गौड़ साहब

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14 अक्टूबर प्रथम पुण्यतिथि
“काल के कपाल” पर अंकित “विचार प्रवाह” स्व गौड़ साहब
अपनी सनातन विचारधारा के लिए शासकीय नौकरी से त्यागपत्र देकर. स्वदेश में पत्रकार के रूप में काम करने का निर्णय उस दौर में साहसिक और चुनौतीपूर्ण था. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल्यकाल के संस्कारों को पाथेय बनाकर पत्रकार मनीषी माणिक चंद जी वाजपेयीऔर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक स्वर्गीय के सी सुदर्शन जी.. की प्रेरणा के चलते.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल्यकाल के संस्कारों की प्रबलता ने उन्हें वज्र के समान दृढ़ बना दिया था.
आपातकाल के दौरान जेल में ही हस्तलिखित स्वदेश के प्रकाशन की जिम्मेदारी सुदर्शन जी ने गौर साहब को ही दी थी इंदौर जेल के अंदर प्रतिदिन हस्तलिखित स्वदेश प्रकाशित होता रहा इंदिरा सरकार उस पर प्रतिबंध नहीं लगा पाई
विरोध औरअवरोधों के बीच भी गौड़ साहब की कलम ना कभी रुकी और ना ही कभी विचलित हुई.
वैचारिक प्रतिबद्धता . उनके व्यक्तित्व का सबसे बड़ी विशेषता थी.. स्वदेश के संपादक के रूप में उनकी कार्यशैली और “व्यवहार की सरलता” ने सैकड़ों पत्रकारों का निर्माण किया. अपने साथियों को सहज वृत्ति के अनुसार भारतीयता का सनातनी सबक भी सिखाते गए.
मैंने उनकी कार्यप्रणाली को निकट से देखा .. उन्हें संपादन के लिए अनेक बड़े मीडिया ग्रुप द्वारा आप अभी दिए गए शायद स्वदेश में मिलने वाले पारिश्रमिक से कई गुना अधिक पारिश्रमिक मिलने का आश्वासन भी वह अडिग रहें भगवा ध्वज के प्रति सनातन संस्कृति के प्रति हिंदुत्व के प्रति इसीलिए अक्सर उनसे मिलने वाले लोग उनमें श्रद्धा रखने लगते थे, अनुभवी होते हुए भी वह कभी शिक्षक नहीं बनते थे… सदैव विद्यार्थी रहते थे.. सतत सीखने की प्रवृत्ति. और काम करते करते ही सिखा देने का हुनर गौड़ साहब ही जानते थे.
गौड़ साहब के लेखों में निश्चल भारतीय प्रवाह था. जो हिंदुत्व के व्यापक स्वरूप के अनुरूप ही प्रत्येक असहमत विचारों को भी स्थान देता था… उनकी आलोचना या डांट में अहंकार नहीं निश्छल समसामयिक दिशा दर्शन होता था
आज के”समालोचको” का मत है. हिंदी पत्रकारिता आज के दौर में अपने “खाटी देसी” लेखकों से दूर होती जा रही है.. और साथ ही लेखनी में सिर्फ अपने विचार को श्रेष्ठ बताने का जुनून बढ़ता जा रहा है.
स्वर्गीय जय कृष्ण जी गौड़ की पत्रकारिता. और लेखनी. वैचारिक दृढ़ता और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति समर्पण के साथ साथ और सनातनी हिंदुत्व के व्यापक विचार “”प्रवाह’ के रूप में “”काल के कपाल पर” अंकित रहेगी
श्री चरणों में सादर श्रद्धांजलि
आलोक दुबे*