DAVV ने रखा 2 करोड़ लोगों को खुश करने वाला प्रस्ताव, मालवी-निमाड़ी भी पढ़ाई जाएगी !

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देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में मालवी निमाड़ी भाषा के अध्ययन और शोध कार्य हेतु एक अध्ययन केंद्र बनाए जाने का प्रस्ताव रखा गया है। मालवा और निमाड़ क्षेत्र लोकभाषाओं को बोलने वाले 2 करोड़ से अधिक लोग है और इन भाषाओं का साहित्य भी सम्रद्ध है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के नवनियुक्त कार्यपरिषद सदस्य विश्वास व्यास ने यह प्रस्ताव दिया है। यह पहली बार है कि मध्यप्रदेश में किसी लोकभाषा के संरक्षण के लिए शोध पीठ की स्थापना की मांग रखी गई है।

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर की माननीय कार्यपरिषद के विचारार्थ प्रस्ताव…

प्रस्ताव: लोकभाषा “मालवी और निमाड़ी” के संरक्षण-संवर्धन के लिए शोध पीठ की स्थापना।

प्रस्तावना:

किसी भी क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में लोकभाषा का स्थान महत्वपूर्ण होता है। सांस्कृतिक विरासत के पोषण, संवर्धन और संरक्षण का महती कार्य ज्ञानार्जन के सर्वोच्च केंद्र विश्वविद्यालय द्वारा किया जाना सदैव श्रेयस्कर होता है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय के कार्यक्षेत्र मध्यप्रदेश के मालवा और निमाड़ क्षेत्रो में विस्तारित है। मालवा क्षेत्र में लोकभाषा “मालवी” और निमाड़ क्षेत्र में लोकभाषा “निमाड़ी” बोली जाती है। ज्ञातव्य है कि माँ देवी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा प्रशासित क्षेत्र में मालवा और निमाड़ का बड़ा भाग सम्मिलित था। यह प्रस्ताव लोकमाता द्वारा प्रशासित क्षेत्र की लोकभाषा के संरक्षण और संवर्धन के लिए विश्वविद्यालय में एक शोध पीठ की स्थापना के महत्व को इंगित करता है।

पृष्ठभूमि :

वर्तमान में मालवी भाषा का प्रयोग, मध्यप्रदेश के उज्जैन सम्भाग के नीमच, मन्दसौर, रतलाम, उज्जैन, देवास, आगर एवं शाजापुर जिलों; भोपाल संभाग के सीहोर, राजगढ़, भोपाल, रायसेन और विदिशा जिलों; इंदौर संभाग के धार, इंदौर, हरदा, झाबुआ, अलीराजपुर जिले ; ग्वालियर संभाग के गुना जिले, राजस्थान के झालावाड़, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा एवं चित्तौड़गढ़ आदि जिलों के सीमावर्ती क्षेत्रों में होता है। इनके अलावा कुछ जिलों में मालवी के साथ बुंदेली, निमाड़ी एवं जनजातीय बोलियों के मिश्रित रूप प्रचलित हैं मालवी की सहोदरा निमाड़ी भाषा का प्रयोग बड़वानी, खरगोन, खण्डवा, हरदा और बुरहानपुर जिलों में किया जाता है।

मालवी और निमाड़ी लोकभाषा वर्तमान समय मे लगभग 2 करोड़ लोगों द्वारा प्रयोग में लाई जाती है। ऐतिहासिक रूप से मालवी का उद्भव 7 वी शताब्दी से माना जाता है। कबीरदास जी ने मालव क्षेत्र के लिए कहा था,”देश मालवा गहन, गम्भीर, डग-डग रोटी पग-पग नीर।’

मालवी का समृद्ध साहित्य मे काव्य, गद्य, नाटक के साथ ही आधुनिक काल की विधा हायकू भी शामिल है। प्राचीन युगीन मालवी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों में सिद्ध, नाथ एवं जैन काव्यधारा का लोकव्यापी विस्तार स्पष्टतः परिलक्षित किया गया है, जैसे- मुनि देवसेन के दर्शनसार, महाकवि स्वयंभू के स्वयंभूछन्द, महाकवि धनपाल के पाइअलच्छी इत्यादि ग्रन्थों में मालवी भाषा से साम्य रखते हुए दोहों तथा डॉ. भगवतीलाल राजपुरोहित द्वारा किए गए इन दोहों के मालवी रूपान्तर भी प्रस्तुत किए हैं।

वही श्रीमान नारायण व्यास जी द्वारा मालवी में रामायण जैसे ग्रंथ की रचना भी की गई है। वही निमाड़ी साहित्य के इतिहास पर दृष्टिपात करे तो वहां शुरूआती रचनाकारों में सन्त लालनाथ गीर (1400 ई. के आसपास), सन्त जगन्नाथ गीर (1440 ई. के आसपास), सन्त ब्रह्मगीर (1470 ई. के आसपास) एवं सन्त मनरंगगीर (सन् 1500 ई. के आसपास), सन्त कवि सिंगाजी इत्यादि की रचनाओं से निमाड़ी के समृद्ध साहित्य की परंपरा को समझा जा सकता है।

लोकभाषा में साहित्य सृजन की यह परंपरा इस क्षेत्र के साहित्य साधको ने आज तक कायम रखी है। एक अनुमान के अनुसार साहित्य की लगभग प्रत्येक विधा में मालवी और निमाड़ी साहित्य का सृजन किया जा रहा है, जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं और पुस्तको के माध्यम से प्रकाशित होता रहता है।

आवश्यकता…

यह विडंबना ही है कि अपने सदियों पुरानी गौरवशाली साहित्यिक विरासत के बावजूद मालवी और निमाड़ी लोकभाषा के साहित्य के संरक्षण और संवर्धन के लिए कोई संस्थागत प्रयास दृष्टि में नही है।
यहां तक कि मालवी और निमाड़ी के साहित्य का एक स्थान पर संकलन अर्थात मालवी और निमाड़ी को समर्पित पुस्तकालय भी कही स्थापित हो, ऐसी जानकारी नही है। यहां तक कि आकाशवाणी जैसे संचार माध्यमों में विगत पांच दशकों में नियमित रूप से प्रसारित मालवी- निमाड़ी वार्ताये भी संरक्षण के अभाव में समाप्त हो रही है। समय के साथ साथ लोकभाषा का स्वरूप विकृत हो रहा है और पर्याप्त संरक्षण के अभाव में लोकभाषा का क्षरण हो रहा है।उचित प्रोत्साहन और मान्यता के अभाव में लोकभाषा के सृजक दूसरी भाषाओं की ओर देख रहे है। ऐसी स्थिति में प्रदेश के श्रेष्ठ विश्वविद्यालय की नैतिक जिम्मेदारी हो जाती है कि वह क्षेत्र की लोकभाषा के संरक्षण- संवर्धन पर ध्यान दे।इस संदर्भ में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का उल्लेख करना भी प्रसांगिक होगा, जिसमे स्थानीय भाषा के प्रयोग पर बल दिया गया है।

प्रस्ताव…

देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में लोकभाषा मालवी और निमाड़ी के संरक्षण- संवर्धन के लिए एक शोध-अध्ययन पीठ की स्थापना की जाए। जिसमे दोनो लोकभाषाओं को समर्पित एक समृद्ध पुस्तकालय की स्थापना भी की जाए। जो पुस्तको के अतिरिक्त विभिन्न दृश्य, श्रव्य माध्यमो में संचित विरासत का संकलन केंद्र बने। इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि मालवा-निमाड़ क्षेत्र के प्रतिष्ठित साहित्यकारों,रचनाकारों, कलाकर्मियों से प्रस्तावकर्ता की व्यक्तिगत चर्चा हुई है। जिसमे पुस्तकालय की स्थापना हेतु व्यापक जनसहयोग की स्वीकृति भी प्राप्त हो चुकी है।

उपरोक्त तथ्यों के आलोक में देवी अहिल्या विश्वविद्यालय की सम्माननीय कार्यपरिषद से अनुरोध है कि मालवा निमाड़ की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण हेतु इस प्रस्ताव पर विचार कर स्वीकृति प्रदान करें। लोकमाता देवी अहिल्या बाई होल्कर को आदरांजलि स्वरूप उनके राज्यारोहण के दिवस 11 दिसम्बर को इसकी स्थापना की जा सके तो यह आदर्श प्रशासक, न्यायप्रिय माँ अहिल्याबाई होल्कर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

धन्यवाद
प्रस्तावक
विश्वास व्यास,
सदस्य, कार्यपरिषद,
देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर।

(समस्त तथ्यों और इतिहास का संदर्भ : मालवी भाषा और साहित्य, डॉ शैलेन्द्र कुमार शर्मा तथा अन्य, मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य समिति, जनसंख्या हेतु सरकार की वेबसाइट तथा विभिन्न समाचार पत्रों में समय समय पर प्रकाशित आलेख)।