दमोह विधानसभा क्षेत्र से विधायक राहुल सिंह कांग्रेस से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हुए । भाजपा के गढ दमोह में कांग्रेस के विधायक का भाजपा में शामिल करने के फैसले का स्थानीय स्तर पर प्रायोजित विरोध चल रहा है विरोध का कारण यह भी है कि प्रदेश में भाजपा की सरकार के लिए जरुरी संख्या बल विपक्षी दल कांग्रेस से बहुत ज्यादा है उसके बाद भी कांग्रेसी विधायक राहुल सिंह को भाजपा की सदस्यता दिलवाने के साथ ही वेयर हाऊस निगम मंडल का अध्यक्ष बनाकर कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने का निर्णय स्थानीय भाजपा नेताओं विशेषकर दिग्गज नेता जयंत मलैया के गले नही उतर रहा है । दमोह विधानसभा उप चुनाव के लिए भाजपा ने राहुल सिंह को बतौर भाजपा प्रत्याशी घोषित करने पर मलैया परिवार अब राजनीतिक रूप से हाशिए पर आ चुका है ।
2014 के पहले दमोह लोकसभा पर मलैया और भार्गव दोनों की नजरें लगी हुई थी मलैया परिवार, सुधा मलैया को और गोपाल भार्गव अपने पुत्र अभिषेक को लोकसभा भेजने के लिए आपस में लड़ रहे थे तभी इस क्षेत्र में प्रहलाद पटेल ने एंट्री की और दोनों विरोधियों को एक होने पर मजबूर कर दिया ।
2014 में प्रहलाद पटेल ने दमोह लोकसभा चुनाव जीतने के साथ ही लोधी समाज में गहरी पकड़ बनाई,वही 2018 के विधानसभा चुनाव में बड़ा उलटफेर हुआ लोधी समाज के राहुल लोधी ने दिग्गज नेता जयंत मलैया को चुनाव में पराजित कर दिया। वहीं पूरे बुंदेलखंड क्षेत्र में लोधी समाज ने खरगापुर, बडा मलहरा, पवई, दमोह,जबेरा, बंडा पर अपना वर्चस्व दिखाया 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रहलाद पटेल ने बडी जीत दर्ज की और क्षेत्र के बडे नेता बनकर उभरे मोदी सरकार में बडा मंत्रालय लेकर क्षेत्र के स्थापित नेताओं में सुमार हो गये वही उनके धुर विरोधी जयंत मलैया को उनके समाज ने नकार दिया और गोपाल भार्गव का भी ब्राह्मण समाज में भारी विरोध देखा गया। ब्राह्मण समाज के गंभीर आरोप है कि गोपाल भार्गव ने अपने राजनीतिक जीवन में अपने बेटे के अलावा समाज के किसी भी नेता को आगे नही बढ़ने दिया इसी विरोध के चलते पार्टी ने अब मलैया की तरह भार्गव को भी किनारे करने की रणनीति बनाते हुए ब्राह्मण युवा नेता गौरव सिरोठिया को आगे बढ़ाते हुए सागर भाजपा का जिलाध्यक्ष बनाया ।
प्रहलाद पटेल और भूपेन्द्र सिंह की जुगलबंदी के चलते राहुल लोधी ने कांग्रेस विधायक पद से इस्तीफा दिया और भूपेन्द्र सिंह ने राहुल सिंह को कमल के फूल पर चुनाव जिताने का जिम्मा उठा लिए ।
सूत्रों की माने तो पार्टी के निर्णय को अघोषित चुनौती देने के लिए दोनों नेता पुत्रों को आगे किया गया, इसके लिए बाकायदा मुख्यमंत्री के दौरे के बाद गोपाल भार्गव के पुत्र अभिषेक भार्गव ने एक बडे रैले और काफिले के साथ दमोह जाकर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने का प्रयास किया, दमोह मे जगह जगह स्वागत मंच बनाये गये ,कई पोर्टल बैनर और फेसबुक लाइव के माध्यम से शक्ति प्रदर्शन को प्रचारित करने की कोशिश भी की गई । वही पार्टी सूत्रों की माने तो मंत्री पुत्र के शक्ति प्रदर्शन को गंभीर माना है और पार्टी सख्त निर्णय लेने का मन बना रही है।
दमोह में मलैया अपनी राजनैतिक जमीन खो चुके है वही बुंदेलखंड की राजनीति में गोपाल भार्गव अपनी विश्वसनीयता खो चुके है यही कारण है कि पार्टी अब उन्हें किसी भी गंभीर भूमिका में स्वीकार नहीं कर रही है 5 प्रदेशों में हो रहे चुनावों में भार्गव को दरकिनार करते हुए कई जूनियर नेताओं को पार्टी ने बडी जिम्मेदारी सौंपी है । बहरहाल दमोह विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की पकड़ मजबूत है अप्रत्यक्ष रूप से गोपाल भार्गव के विरोध करने से भाजपा कार्यकर्ताओं में छटपटाहट जरूर देखी जा रही है ।