सिंधिया परिवार के सभी घोटालो को लेकर कांग्रेस जायेगी सुप्रीम कोर्ट

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ग्वालियर: प्रदेश कांग्रेस उपाध्यक्ष मुरारीलाल दुबे एवं मीडिया प्रमुख (ग्वालियर-चम्बल संभाग) के.के. मिश्रा ने भू-माफिया सिंधिया परिवार पर तीसरा बड़ा हमला बोलते हुये प्रामाणिक आरोप लगाया है कि सिंधिया परिवार ने ग्वालियर के जयेन्द्रगंज स्थित माहोरकर के बाडा की 8 बीघा 2 बिस्वा भूमि जिसकी कीमत 360 करोड़ रूपयों के लगभग है, जो ग्वालियर के पूर्व राजघराने की व्यक्तिगत सम्पत्ति की सूची में शामिल भी नहीं है, फिर भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उस पर अवैध कब्जा जमा लिया, अवैध निर्माण कर आज भी वहां से किराया वसूली हो रही है और उसके कुछ हिस्से को अपंजीकृत सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट के माध्यम से बेचकर करोड़ों रूपयों की अवैध वसूली भी कर डाली है, यह एक गंभीर व अक्षम्य अपराध है।

इस ट्रस्ट के अध्यक्ष कथित जनसेवक भाजपा सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया, उनकी मां माधवीराजे सिंधिया, पत्नी प्रियदर्शनीराजे सिंधिया, नेपाल राजपरिवार की ऊषाराजे राणा, सुषमा सिंह व बिगे्रडियर नरसिंहराव पवार ट्रस्टी है।कांग्रेस ने मांग की है कि कूटरचित दस्तावेजों के माध्यम से राजनैतिक प्रश्रय के बाद घटित इस आपराधिक कृत्य में शासकीय अधिकारियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया है। लिहाजा, उनके विरूद्ध भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1998 की धारा-13(1).(डी) धारा-467,468,471 और 420 के तहत प्रकरण दर्ज किया जाये। कांग्रेस, भू-माफिया सिंधिया परिवार द्वारा की गई जमीनों की करोडों-अरबों रूपयों की हेरा-फेरी के सभी मामलों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के दरवाजे पर भी दस्तक देगी।

दबे-मिश्रा ने कहा कि इनवेन्टरी की सूची क्र.-1 में जयविलास पैलेस की जो बाउन्ड्री स्पष्ट की गई है उसमें माहोरकर का बाड़ा शामिल नहीं है। पैलेस के बाहर भवन क्र. 642 बाडे के नम्बर के रूप में अंकित है। उपलब्ध रिकाॅर्ड के

अनुसार ग्वालियर गर्वमेंट ने 76,000 रूपये में सरकारी खजाने से भुगतान कर लिखतम (लिखापढ़ी) क्र.-715/1918 को करवाई थी। जिसका कब्जा पी.डब्ल्यू.डी. के प्रशासनिक अधिकारी द्वारा लिया गया और ग्वालियर गर्वमेंट के जानवरी कारखाने के रूप में इसे शामिल कर लिया गया था। इस लिहाज से यह बाड़ा मध्य-भारत, उसके बाद *मध्य-प्रदेश और बाद में नगर निगम की संपत्ति में शामिल हो गया। ग्वालियर राजघराने ने *कूटरचित दस्तावेज बनाकर अपने अपंजीकृत देवस्थान ट्रस्ट में 10 मार्च, 1969 को इसे रजिस्टर्ड भी करवा लिया, यह कैसे संभव हुआ?

यहीं नहीं 22 दिसम्बर, 1964 से अवैध रूप से अधिपत्य में ली इस संपत्ति से किराया वसूली भी प्रारम्भ कर दी गई, जो पूर्णतः अवैधानिक थी!

नेताओं ने कहा कि यह अपराध यहीं नहीं थमा, देवस्थान ट्रस्ट ने नगर निगम अधिकारियों की मिलीभगत से इसका नामांतरण भी करवा लिया, जिसे 6 दिसम्बर, 1975 को तत्कालीन नगर निगम आयुक्त ने निरस्त कर दिया। यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब मानचित्र 813/51 में बना, इनवेन्टरी में इसका कोई हवाला नहीं है, तो नक्शा इनवेन्टरी का पार्ट कैसे हो गया? नेताओं ने कहा कि 20 अगस्त, 1964 को राजमाता स्व. विजयाराजे सिंधिया ने भारत सरकार के सचिव गृह मंत्रालय श्री वी. विश्वनाथन को लिखे एक शिकायती पत्र में कहा कि हमारे आधिपत्य की जमीनों पर प्रशासन रोक लगा रहा है। इस शिकायत के पश्चात महल के अधिकारियों और राजस्व विभाग के प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा की गई संयुक्त जांच में माहोरकर का बाड़ा सर्वे क्र. 576-577 न केवल नगर निगम के आधिपत्य में होना पाया गया बल्कि प्रकरण क्र- 10/69ःः13/11 आदेश दिनांक 15 अक्टूबर, 1969 द्वारा आयुक्त, नगर निगम ने नामांतरण करने से भी इंकार कर दिया।

ट्रस्ट के मैनेजर द्वारा राजस्व अधिकारी के समक्ष प्रार्थना-पत्र देने पर प्रकरण पुनः प्रारम्भ हुआ और राजस्व अधिकारी द्वारा पारित आदेश 03 मार्च, 1972 द्वारा नामांकन स्वीकार कर लिया गया जिस पर म.प्र. शासन द्वारा कलेक्टर अपील की गई जिसके अन्र्तगत अपील आदेश 02 जून, 1975 के द्वारा दोनो पक्षकारों को पुनः सुनवाई हेतु 05 जून, 1975 को उपस्थित होने को कहा गया। देवस्थान ट्रस्ट विरूद्ध म.प्र. शासन द्वारा कलेक्टर ग्वालियर प्रकरण क्र 10/69ःः13/11 आदेश क्र. 06 दिसम्बर, 1975 द्वारा ट्रस्ट का नाम हटाकर जानवरी कारखाना मिल्कियत सरकार लिखने का आदेश पारित किया गया और अनुविभागीय अधिकारी सक्षम प्राधिकारी ग्वालियर ने दिनांक 22 दिसम्बर, 1964 से किराया भी ट्रस्ट से वसूलने का आदेश जारी किया। डीओ लेटर 6589/1022/1 म.प्र. शासन ने सामान्य प्रशासन विभाग, भोपाल द्वारा 28 सितम्बर 1975 रिमूब्हल आॅफ अनलाॅफुल पजेशन आॅफ देवस्थान ट्रस्ट का पत्र तत्कालीन कलेक्टर श्री आर.के. गुप्ता को भेजा गया। म.प्र. विधानसभा ने पूरक प्रश्न क्र. 4060 में भी राज्य सरकार ने भूतपूर्व महाराजा ग्वालियर द्वारा अवैध रूप से किये गये कब्जे और उसे न हटाये जाने की बात उल्लेखित की है।

सक्षम प्राधिकारी, म.प्र. लोक परिसर (बेदखली) अधिनियम 1974, कलेक्ट्रेट, गोरखी, भवन ग्वालियर ने भी अपने पत्र में इस बाड़े में रह रहे किरायेदारों से दिनांक 01 सितम्बर 1948 से स्व. जीवाजी राव सिंधिया व श्रीमति विजयाराजे सिंधिया द्वारा अनाधिकृत रूप से किराया वसूल किये जाने तथा दिनांक 22 दिसम्बर, 1964 से किराया सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट द्वारा वसूल किये जाने की जानकारी की स्वीकारोक्ति देते हुये यह भी कहा कि यह बाड़ा माधौराव सिंधिया व विजयाराजे सिंधिया द्वारा वर्ष 1969 में सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट को दानपत्र के द्वारा दिया गया है व इस पर वर्तमान में सिंधिया देवस्थान ट्रस्ट का अवैध आधिपत्य है। लिहाजा, कारण दर्शायें कि दिनांक 09 फरवरी 1976 को या उसके पूर्व बेदखली के आदेश क्यों नहीं दिये जाये? तत्कालीन कलेक्टर ने इसे शासकीय संपत्ति बताते हुये सिंधिया परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी प्रकार का किराया नहीं देने हेतु निर्देशित किया था इसके बावजूद ट्रस्ट द्वारा आज भी अवैध कब्जा कायम है और किराया वसूली भी जारी है, जिस पर रोक लगाई जाये।

नेताओं ने यह भी कहा है कि उक्त सभी शासकीय आदेशों के उपरान्त भी तत्कालीन तहसीलदार ग्वालियर ने अपने प्रकरण क्र. 1़6/87-अ.6 आदेश दिनांक 03.08.1988 द्वारा सिंधिया परिवार के आवेदन के बिना ही इसका नामांतरण कर दिया जो घोर अनियमितता, घपले, घोटाले और आर्थिक भ्रष्टाचार का सबसे बडा प्रमाणिक उदाहरण है।