कांग्रेस: अब भी वर्चस्व को लेकर जंग, पुनर्गठन आसान नहीं

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दिनेश निगम ‘त्यागी’
प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों में पराजय के बाद कांग्रेस के पुनर्गठन को लेकर खबरें तेज हैं। कांग्रेस के सत्ता से बेदखल होने से लेकर उप चुनाव में हार और पार्टी विधायकों के बागी होने सहित सभी मामलों के लिए जवाबदार कमलनाथ ही रहे हैं। आखिर, वे ही सरकार एवं संगठन के मुखिया थे। प्रदेश कांग्रेस में पुनर्गठन उनके ही नेतृत्व में होगा या इसका भार किसी और नेता के कंधों पर आएगा, यह अब तक स्पष्ट नहीं है। खबर है कि पहले सत्ता जाने और अब उप चुनावों में हार को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नाराज हैं लेकिन कमलनाथ बदले जा रहे या नहीं, यह सवाल कायम है। आइटम मामले राहुल गांधी की राय को तवज्जो न देकर उन्होंने अपने कद का अहसास करा दिया था। यही वजह है कि फिलहाल वे ही कांग्रेस में बदलाव की तैयारी करते नजर आ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के पार्टी छोड़ने के बाद भी कांग्रेस में गुट कम नहीं हैं। जिसके चलते प्रदेश इकाई में बदलाव करना पार्टी नेतृत्व के लिए आसान नहीं होगा, कमलनाथ के बारे में निर्णय लेना तो बिल्कुल भी नहीं।
सभी गुटों ने दिल्ली तक बढ़ाई सक्रियता
– उप चुनावों में हार के बाद कमलनाथ तो दिल्ली गए ही, दिग्विजय सिंह सहित अन्य गुटों के प्रमुख नेताओं ने भी दिल्ली तक अपनी सक्रियता बढ़ाई है। सुरेश पचौरी एवं अजय सिंह चुनाव हार चुके हैं फिर भी पॉवर में बने रहने की कोशिश में हैं। पचौरी को मौका मिल चुका है। अब दिग्विजय सिंह की मदद से अजय सिंह प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं। अरुण यादव प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। बावजूद इसके वे और जीतू पटवारी अपने लिए कोशिश कर रहे हैं। इनके अलावा कांतिलाल भूरिया, ओमकार सिंह मरकाम एवं कमलेश्वर पटेल पॉवर में बने रहने के लिए कसरत कर रहे हैं। अब पार्टी को ऐसा नेता चाहिए जो सभी गुटों के नेताओं को साथ लेकर कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर सके। खबर है कि हाईकमान ने इस दिशा में नेताओं से चर्चा प्रारंभ कर दी है। इसके लिए जरूरी है कि पहले कमलनाथ एक पद छोड़ें।
युकां एवं भाराछासं लंबे समय से निष्क्रिय
– कुणाल चौधरी एवं विपिन वानखेड़े लंबे समय से युकां एवं भाराछासं के प्रमुख के पद पर काबिज हैं। कुणाल विधानसभा चुनाव के बाद नवम्बर 2019 में ही विधायक बन गए थे जबकि वानखेड़े हाल में उप चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। कुणाल खुद सक्रिय दिखाई पड़ते हैं लेकिन युकां की प्रदेश स्तर पर सक्रियता कहीं दिखाई नहीं पड़ती। ठीक इसी प्रकार विपिन अपने विधानसभा क्षेत्र में तो सक्रिय रहे लेकिन संगठन पूरी तरह निष्क्रिय पड़ा है। इसलिए सबसे पहले युकां एवं भाराछासं के नए प्रमुख चुनाव के जरिए चुने जा सकते हैं। इसके लिए कई नेता दौड़ में शामिल हैं।
नकुल, जयवर्धन को आगे लाने की तैयारी
– कांग्रेस में कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह बड़े नेता हैं। इन्हें मालूम है कि इनकी राजनीति का आखिरी समय चल रहा है। दोनों के बेटे नकुलनाथ सांसद जबकि जयवर्धन सिंह विधायक हैं। कमलनाथ एवं दिग्विजय सिंह की कोशिश अपना राजपाट अपने बेटों को सौंपने की है। इसके लिए भोपाल से लेकर दिल्ली तक प्रयास चल रहे हैं। नकुल की तुलना में जयवर्धन ज्यादा स्वीकार्य युवा नेता के तौर पर प्रदेश की राजनीति में उभरे हैं। दौड़ में शामिल दूसरे युवा चेहरे इन्हें लेकर आशंकित हैं। इसलिए भी हाईकमान के लिए फैसला लेना आसान नहीं है।