कांग्रेस की समस्या— वेंटिलेटर-वाद

Mohit
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एन के त्रिपाठी

भारत में जितना ह्रास कांग्रेस की विचारधारा का नहीं हुआ है, उससे अधिक कांग्रेस पार्टी का हुआ है। बुद्धिजीवियों के एक वर्ग के अतिरिक्त सामान्य जनता का एक बड़ा हिस्सा, बिना औपचारिक रूप से कांग्रेस की विचारधारा को समझते हुए, सामाजिक जीवन में कांग्रेस की सामंजस्य संस्कृति में विश्वास रखता है।राजनैतिक दृष्टि से अभी भी कांग्रेस के अनेक समर्थक हैं तथा प्रजातंत्र में विश्वास रखने वाले कांग्रेस पार्टी को सशक्त देखना चाहते हैं।दुर्भाग्यवश कांग्रेस पार्टी ऊर्जा विहीन हो गई है तथा वह अचेतन अवस्था में गांधी परिवार नामक एक वेंटिलेटर से साँस ले रही है।परिवार का यह वेंटिलेटर पार्टी को समाप्त नहीं होने देता है परंतु पार्टी को स्वस्थ जीवन देने में वह विफल रहा है।
स्वतंत्रता से पूर्व कांग्रेस के प्रभाव का उस समय के स्वतंत्रता संग्राम, राजनीति, सामाजिक परिवेश और साहित्य सभी पर लगभग एकाधिकार के रूप में था।अनेक प्रकार के विशाल व्यक्तित्व कांग्रेस के विशाल समुद्र में अपनी ऊर्जा की नदियाँ लेकर पहुँचते थे।स्वतंत्रता के बाद भी कई दशकों तक कांग्रेस का भारतीय जनजीवन पर प्रबल प्रभाव था।दुर्भाग्यवश कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व एक परिवार की जकड़ में सिमट कर रह गया।कांग्रेस के बड़े नेताओं ने भी अपनी अंतरात्मा को चाटुकारिता के नीचे दफ़न कर दिया।उनकी सारी मानसिक और शारीरिक ऊर्जा इस बात पर केंद्रित थी कि किस प्रकार गाँधी परिवार को प्रसन्न किया जा सकता है।योग्यता और जनाधार को पूरी तरह नज़रअंदाज़ कर दिया गया। इसके परिणाम स्वरूप पार्टी न केवल सत्ता से बाहर होती गई बल्कि भारतीय जनमानस से भी वह ओझल होने लगी। भाजपा अपने सशक्त हिंदुत्व व राष्ट्रवाद के एजेंडा के साथ भारत में छा गई।
कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के सशक्त पूर्व प्रवक्ता एवं विचारक संजय झा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया मे “ Congressmen watching silently as party hurtles towards political obsolescence “ शीर्षक से एक लेख लिखा। शीर्षक का अर्थ है कि कांग्रेसी मूक दर्शक की तरह पार्टी को राजनैतिक नेपथ्य में झटके खाते हुए देख रहे हैं। इसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी में आंतरिक प्रजातंत्र पूरी तरह से समाप्त हो जाने का विवरण दिया है। उनका कहना है कांग्रेस के सभी नेता व्यक्तिगत रूप से कांग्रेस के नेतृत्व में कमज़ोरी की बात करते हैं, परंतु पार्टी फ़ोरम में या सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने में घबराते हैं। उन्होंने कांग्रेस संगठन में सार्थक परिवर्तन करने का सुझाव दिया है।उनका आशय नेतृत्व में पूर्ण सत्ता का केंद्रीकरण हो जाना है। पार्टी को सब तरफ़ से नकारात्मकता मिल रही है और पार्टी देश का कोई एजेंडा निर्धारित नहीं कर पा रही है।उनके अनुसार पार्टी अपने प्रस्तावित शासन की रूपरेखा का एक श्वेत पत्र जारी करने में असमर्थ रही है।संजय झा के साथ क्या होगा ये सभी जानते हैं।
विगत एक दशक से अधिक कांग्रेस की सत्ता प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राहुल गांधी के हाथ में रही हैं। उन्हें येन केन प्रकारेण सर्वोच्च नेता के योग्य बनाने में पार्टी ने कोई कसर बाक़ी नहीं रखी। परन्तु राहुल गांधी कांग्रेस की नीतियों के अनुरूप वर्तमान परिस्थितियों में कोई व्यापक रूपरेखा रखने में पूरी तरह असफल रहे हैं। उनकी शैली छापामार तरीक़े से हमला करो और छुप जाओ वाली रही है। भारत के जनमानस से सीधा वार्तालाप करने में वे अक्षम सिद्ध हुए हैं।फिर भी कांग्रेस की सारी सत्ता उनके हाथ में केंद्रित है और पार्टी की किसी भी असफलता के लिए उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं होती है।शीर्ष नेतृत्व पर केवल परिवार के अधिकार के कारण पार्टी में योग्यता का कोई महत्व नहीं रह गया है।
अभी हाल ही में पूर्वी लद्दाख के मसले पर जिस हल्के और अपरिपक्व ढंग से राहुल ने ट्वीट किए हैं वे राष्ट्रीय हित में उचित नहीं है।स्मरण करें कि तत्कालीन जनसंघ नेता अटल बिहारी बाजपेयी ने 1962 में भारत की करारी हार के बावजूद संसद में बड़ी शालीनता से नेहरू सरकार का विरोध किया था और देश की मज़बूती के लिए एक साथ खड़े होने का आवाहन किया था।राहुल के इस प्रकार के बयानों से उनके दरबारी प्रवृत्ति के लोग प्रसन्न हो सकते हैं परंतु इससे कांग्रेस के वोट बैंक में कोई बढ़ोत्तरी नहीं होगी।
गांधी परिवार और उनके द्वितीय पंक्ति के थके हुए नेताओं को यह आशा है कि बीजेपी सरकार की गलतियों से तथा उसकी सांप्रदायिक नीतियों से ऊब कर जनता स्वंय एक विकल्प के रूप में उन्हें सत्ता में वापस ले आयेगी। इस आशा से कांग्रेस को कुछ प्रदेशों की सरकारें मिल सकती है और केंद्र में एक ऐसी मिश्रित UPA सरकार मिल सकती है जिसमें कांग्रेस का महत्व पूर्व की UPA सरकारों से बहुत कम होगा।भविष्य की ऐसी UPA सरकार में नेतृत्व भी स्वयमेव कांग्रेस के पास चला जाए यह भी आवश्यक नहीं होगा। कांग्रेस को अपना पुराना राजनैतिक वैभव प्राप्त करने के लिए अपनी आंतरिक ऊर्जा बढ़ानी होगी। ऐसी ऊर्जा प्राप्त करने के लिए उसे योग्यता एवं स्पष्ट सोच पर आधारित एक जीवंत संगठन की आवश्यकता होगी। कांग्रेस केवल कांग्रेसियों की ही नहीं है, देश की जनता के एक बड़े भाग की वह आशा भी है।