राज-काज : कांग्रेस भी कर सकती थी मार्केटिंग

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

यह कथन किसी और का नहीं, कांग्रेस के एक खास प्रदेश पदाधिकारी का है। इनका कहना था कि मार्केटिंग की कला ही भाजपा को कांग्रेस से बहुत आगे किए हुए है। कांग्रेस भी इस मार्केटिंग में पारंगत होती तो फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को कांग्रेस दिखा रही होती और भाजपा बैकफुट पर होती। नेता जी का कहना था कि भाजपा का कमाल देखिए, जब 1990 में कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार और पलायन हुआ, तब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह के नेतृत्व वाली जनता दल सरकार चल रही थी। कश्मीर में भाजपा की सिफारिश पर जगमोहन राज्यपाल बने बैठे थे।

कश्मीरियों पर अत्याचार न भाजपा के समर्थन वाली केंद्र सरकार रोक पाई और न ही जगमोहन। मजेदार तथ्य यह भी कि तब विपक्ष में रहते हुए राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने कश्मीरी पंडितों के लिए संसद का घेराव किया, बावजूद इसके इसे भाजपा भुना रही है और कांग्रेस बैकफुट पर है। इसे कहते हैं मुद्दों को अपने पक्ष में कर उसे भुनाने की मार्केटिंग। नेता जी का कहना था, यदि कांग्रेस चाहती तो फिल्म रिलीज होते ही इसे लपक लेती और जो भाजपा कर रही है वह कांग्रेस करती। तब तस्वीर कुछ और होती। लेकिन कांग्रेस में नरेंद्र मोदी-अमित शाह जैसा कोई नेता ही नहीं है जो उनकी शैली में जवाब दे सके। नतीजा, कांग्रेस पिछड़ रही है और भाजपा की बल्ले बल्ले है।

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शिवराज के नक्शेकदम पर ज्योतिरादित्य –

कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया महाराज की छवि से बाहर आने की कोशिश में हैं और भाजपा में अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने में भी। पहली कोशिश मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नक्शेकदम पर चलने की है। दौरों में यह झलक देखने को मिलने लगी है। जैसे, शिवराज ने किसी कुम्हार के यहां जाकर चाक से मिट्टी का दिया बनाया तो ज्योतिरादित्य भी यह करते दिखाई पड़ गए। शिवराज कार्यक्रमों की शुरुआत कन्या पूजन से करते हैं, ज्योतिरादित्य भी इसे फालो करने लगे। शिवराज जहां जिस समाज के बीच जाते हैं, वैसे ही बन जाते हैं, ज्योतिरादित्य भी इसी तरह घुलने-मिलने की कोशिश करते दिखते हैं।

साफ है कि ज्योतिरादित्य महाराज की छवि से उबर कर शिवराज की शैली अपना रहे हैं। दूसरा, सिंधिया पर ठप्पा था कि उनके पुराने समर्थक ही साथ नजर आते हैं। इससे भी वे उबरते दिख रहे हैं। जैसे, पीडब्ल्यूडी मंत्री गोपाल भार्गव द्वारा आयोजित रहस मेले के समापन अवसर पर पहुंचे तो भीड़ देखकर गदगद थे। उन्होंने कहा कि ऐसा स्वागत उनका उनके अपने क्षेत्र में भी नहीं होता। मंच से ही उन्होंने कह डाला कि वे अंतिम सांस तक भार्गव और उनके बेटे के साथ खड़े रहेंगे। इस कथन से बुंदेलखंड में कई नेताओं की सांसे अटक गईं। भार्गव हैं ही ऐसे कद्दावर नेता। ऐसा सिंधिया प्रदेश के अन्य हिस्सों में भी कर रहे हैं।

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हंसी का पात्र कांग्रेस, लाचार विधायक – 

विधानसभा के बजट सत्र के दौरान कांग्रेस विधायकों की लाचारगी देखने को मिली। विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम और संसदीय कार्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा के कथनों से साफ था कि विधानसभा का बजट जैसा महत्वपूर्ण सत्र आपसी नूरा-कुश्ती की भेंट चढ़ गया। कांग्रेस विधायकों को हवा नहीं लगी और उसे स्थगित कर दिया गया। बजट सत्र में विधायकों को हर विषय पर बोलने का अवसर मिलता है। वरिष्ठों से वे बहुत कुछ सीखते भी हैं। विडंबना देखिए, पहले नेता प्रतिपक्ष कमलनाथ पत्र लिख रहे थे कि बजट सत्र एक सप्ताह के लिए बढ़ाया जाए, ताकि महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हो सके।

दूसरी तरफ उन्होंने सत्र को 9 दिन पहले समाप्त करने पर सहमति भी दे दी। तभी जब कांग्रेस की ओर से विरोध हुआ तो नरोत्तम ने कहा कि अपने नेता प्रतिपक्ष से एक बार कहला दीजिए, सरकार सत्र चलाने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि कमलनाथ की सहमति से ही सत्र खत्म हो रहा है। इसका जवाब किसी के पास नहीं था। विधानसभा अध्यक्ष गौतम ने भी कहा कि उनके सामने प्रस्ताव आया कि पक्ष-विपक्ष दोनों आगे सत्र नहीं चलाना चाहते तो मैं क्या कर सकता हूं। सच यह है कि कांग्रेस हंसी का पात्र बन कर रह गई और विधायक ठगे से रह गए।

ऐसे पूरा हो पाएगा शराबबंदी का संकल्प! 

भाजपा नेत्री साध्वी उमा भारती शराबबंदी पर अलग-थलग पड़ती दिख रही हैं। उनका अभियान मजाक बनता जा रहा है। पहले बार-बार तारीखें घोषित करने के कारण वे आलोचना के केंद्र में थीं, अब अभियान के तरीके को लेकर कटघरे में हैं। पहले वे शराबबंदी करा कर ही दम लेने की बात करती थीं, इसके बाद समाज में जागरूकता अभियान चलाने का एलान। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उनसे मिलने चले, तब लगा बात कुछ बन रही है। अचानक उमा शराब की एक दुकान में पहुंच एक पत्थर फेंक कर वापस आ जाती हैं।

इस पत्थर की गूंज भी दो दिन में शांत। उमा के इस तरीके की काफी आलोचना होती है। उनके साथ कोई नजर नहीं आता। भाजपा की ओर से कहा जाता है कि उमा जी के अभियान से पार्टी का कोई लेना-देना नहीं है। उमा की हैसियत में फर्क देखिए, एक समय था जब उमा की तूती बोलती थी। तब उन्होंने यह पत्थर फेंका होता तो प्रदेश की हर शराब दुकान में पत्थर चलने लगते लेकिन अब सब टॉय टॉय फिस्स। सवाल यह है कि क्या उमा के शराबबंदी अभियान का यह तरीका उचित है? क्या इस तरह के अभियान से उमा का शराबबंदी संकल्प पूरा हो पाएगा? या वे मात्र हंसी का पात्र बन कर रह जाएंगी?

कांग्रेस में थम नहींं रहे विवाद-

कांग्रेस में एक विवाद शांत नहीं हो पाता, नया पैदा हो जाता है। ताजा विवाद विधायक कांतिलाल भूरिया और झाबुआ के जिलाध्यक्ष रहे महेश पटेल का है। शुरुआत विधानसभा सीट जोबट के उप चुनाव से हो गई थी, तब कांग्रेस के महेश पटेल कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गईं सुलोचना रावत से हार गए थे। इसे लेकर दोनों पक्षों की ओर से आरोप-प्रत्यारोप के दौर चले थे। इस बार विवाद इतना बढ़ा कि महेश पटेल को कांग्रेस से 6 साल के लिए निष्कासित कर दिया गया। आमतौर पर झाबुआ कांग्रेस का गढ़ रहा है। अब यह दरक रहा है।

यहां सांसद भाजपा का है। सुलोचना रावत कांग्रेस छोड़ चुकी हैं और महेश पटेल को पार्टी से बाहर कर दिया गया है। अब झाबुआ में कांग्रेस को ढोने का दारोमदार कांतिलाल भूरिया और उनके बेटे युकां प्रदेश अध्यक्ष विक्रांत भूरिया के कंधों पर है। कांग्रेस का यह गढ़ कब तक बच पाएगा, कह पाना कठिन है। इससे पहले विधानसभा के अंदर जीतू पटवारी कांग्रेस में अलग-थलग पड़ चुके हैं। जी-23 को लेकर अरुण यादव का ट्वीट आया तो कुछ नेताओं ने कमलनाथ को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का दावेदार बता दिया। सवाल यह है कि जो नेता प्रदेश की कांग्रेस नहीं संभाल पा रहा, वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर कितना सफल होगा?