Supreme Court: ‘यौन उत्पीड़न केस रद्द करने का आधार समझौता नहीं हो सकता’, राजस्थान HC का फैसला SC ने किया अमान्य

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें यौन उत्पीड़न के मामलों को आरोपी और पीड़िता के बीच समझौते के आधार पर खारिज किया गया था। यह फैसला एक महत्वपूर्ण न्यायिक कदम है, जिसमें कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न जैसे अपराधों में समझौते की गुंजाइश नहीं हो सकती और ऐसे मामलों में कानूनी कार्रवाई अनिवार्य है।

राजस्थान HC का फैसला Supreme Court ने किया अमान्य

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न के मामले में समझौते की कोई जगह नहीं है। न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि यह अपराध नॉन-कॉम्प्रोमाइज क्लॉज (जिसे समझौता नहीं किया जा सकता) के तहत आता है और ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज करना और आपराधिक कार्रवाई करना आवश्यक है।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले की खूबियों पर टिप्पणी नहीं करेगा, लेकिन न्याय मित्र की सेवाओं की सराहना करता है। इस फैसले के साथ ही कोर्ट ने यह सुनिश्चित किया कि ऐसे गंभीर अपराधों को सुलझाने के लिए केवल कानूनी प्रक्रिया ही मार्गदर्शक हो सकती है, और समझौते के आधार पर उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता।

नाबालिग के यौन उत्पीड़न का मामला

यह मामला एक 15 साल की लड़की के यौन उत्पीड़न से जुड़ा हुआ था, जिसे नाबालिग से छेड़छाड़ के आरोप में सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी। मामला उस समय सामने आया जब लड़की के पिता ने यौन शोषण की शिकायत दर्ज कराई थी। प्राथमिकी के बाद, आरोपी और पीड़िता के बीच बातचीत हुई, जिसके बाद समझौते का दावा किया गया। राजस्थान हाई कोर्ट ने इस समझौते के आधार पर आरोपी के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को खारिज कर दिया था, जो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

Supreme Court ने मामले की पुनः जांच का आदेश दिया

इस फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की पुनः जांच का आदेश दिया और यौन उत्पीड़न के मामलों में समझौते के आधार पर मामले को खारिज करने पर सवाल उठाया। इस मुद्दे पर तीसरे पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में आपत्ति जताई थी। याचिकाकर्ता रामजी लाल बैरवा ने सवाल उठाया था कि क्या हाई कोर्ट यौन उत्पीड़न के मामले में सीआरपीसी की धारा 482 का उपयोग करते हुए मामले को खारिज कर सकता है और क्या ऐसे मामले को समझौते से सुलझाया जा सकता है।

Supreme Court का कड़ा संदेश

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के साथ यह स्पष्ट कर दिया कि यौन उत्पीड़न जैसे गंभीर अपराधों में कोई समझौता नहीं किया जा सकता और इसके लिए पूरी कानूनी प्रक्रिया का पालन करना आवश्यक है। इस निर्णय से एक कड़ा संदेश दिया गया है कि यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए कानून के तहत पूरी कार्रवाई की जाएगी।

इस फैसले से यह भी साबित हुआ कि कोर्ट गंभीर अपराधों से संबंधित मामलों में समझौते को मान्यता नहीं देती, खासकर तब जब इसमें नाबालिग पीड़िता शामिल हो।