मुक़ाबले… जो मिसाल बन गए

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नितिनमोहन शर्मा

नगर सरकार के लिए हुए चुनाव में कुछ मुकाबले ऐसे भी रहे जो मिसाल बन गए। जिनकी हार की कोई कल्पना नही कर सकता, ऐसे किरदार इस बार चुनाव हार गए। वही कुछ ऐसे भी उम्मीदवार रहे जिन्हें मुकाबले के लायक ही नही समझा लेकिन वे बाजी पलटने में कामयाब रहे। बगेर धनबल ओर बाहुबल के भी चुनाव जीता गया तो कही पैसा पानी की तरह बहा लेकिन परिणाम पराजय का आया। जय पराजय की ये कहानी हर विधानसभा क्षेत्र में दोहराई गई।

खुलासा फर्स्ट ऐसे चुनिंदा मुकाबलों की तह तक पहुंचा की आखिर क्या कारण रहा कि यहां का चुनावी संग्राम मिसाल बन गया। भाजपा कांग्रेस, दोनो दलों में इस बार भी बागी हुए और बगावत भी हुई। भितरघात भी हुई और शह मात के खेल भी खूब हुए। बड़े नेताओं ने अपनी पसंद के टिकिट तो दिलवा दिए लेकिन चुनाबी मैदान में उनकी पसन्द कही स्वीकार नही की गई तो कही मुसीबत में उलझ गई। ऐसे मुकाबले मिसाल बन गए जहां सोचा क्या ओर हुआ क्या?? कुछ घरानों की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई तो कुछ नामचीन की साख धूल धूसरित हो गई। कुछ गिरकर उठ गए तो कुछ अच्छे भले उठे हुए थे….आड़े हो गए।

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इस चुनावी बिसात में कुछ बाजीगर ऐसे भी रहे जिन्होंने हारी हुई बाजी जीत ली। कुछ ऐसे भी रहे जो जीती हुई बाजी हार गए। जीतकर हारने वाले आत्ममुग्धता में रह गए तो हारकर जीतने वाले आत्मविश्वास से डटे रहे। अब परिणाम आने के बाद कई के चेहरे का नूर उतर गया तो कुछ बुझे चेहरे रोशन हो गए। चंदू चुनाव हार गए। मुन्नालाल यादव बाल बाल बचे। अग्निहोत्री परिवार की प्रतिष्ठा दांव पर लग गई तो विधनासभा 2 की साख पर आंच आ गई। बड़वे-टाकलकर जैसे नेताओं ने ये साबित भी किया कि पुराना चावल जब भी बनाओ…स्वाद तो देता ही है, जीत की सुगंध भी फैलाता है।

विधानसभा 1

कांग्रेस उम्मीदवार संजय शुक्ला यही से विधायक रहते हुए महापौर का चुनाव लड़े। लिहाजा ये क्षेत्र सबसे ज्यादा चर्चा में था और सरगर्मी भी यहां ज्यादा देखने को मिली। यहाँ भाजपा दो हिस्सों में थी। एक संगठन के साथ। दूसरी यहां से चुनाव हारे सुदर्शन गुप्ता के साथ।

वार्ड 1- ये वो वार्ड है जिसे अग्निहोत्री परिवार की विरासत कहा जाता है। बीते 20 साल का ये ही ट्रेंड रहा है कि यहां से अग्निहोत्री परिवार का सदस्य की चुनाव जीतता है। वह भी बड़े मार्जिन के साथ। वार्ड के 8 हजार के लगभग वोट अग्निहोत्री परिवार यानी कांग्रेस की जीत में निर्णायक रहा करते है। लिहाजा भाजपा से इस वार्ड के कोई दावेदार चुनाव लड़ने आगे नही आता।

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सिरपुर तालाब के सामने वाले हिस्से में फैले ओर चंदन नगर से सटे इस वार्ड से अग्निहोत्री परिवार की बहू प्रीति चुनाव मैदान के थी। वे यही से पूर्व परिषद में पार्षद भी थी। धनबल ओर बाहुबल से लैस अग्निहोत्री परिवार के सामने इस बार भाजपा से महेश चौधरी मैदान में थे। नोजवान महेश की चुनोती को न सिर्फ अग्निहोत्री परिवार ने हल्के में लिया बल्कि भाजपा के अंदरखाने में भी इस वार्ड को हारा हुआ मान लिया गया था। चुनाव भी एकतरफा चला। किसी को रत्तीभर भनक नही थी कि यहाँ बाजी पलट जाएगी।

आरएसएस की शाखा से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू करने वाले महेश का स्थानीय होना और बीते एक दशक से निरंतर सक्रिय रहना काम आया। वार्ड में मददगार के रूप में अग्निहोत्री परिवार का खासा नाम और काम है। लेकिन इस बार ये परिवार बदलाव का अंडर करन्ट महसूस नही कर पाया। परिणाम आया तो वार्ड मिसाल बन गया। महेश चौधरी 9945 वोट के साथ 1179 वोट से चुनाव जीत गए। कांग्रेस से ज्यादा ये सदमा अग्निहोत्र परिवार के लिए था जो स्वयम को अभी से विधनासभा 4 में चुनाव लड़ने का मानस बना चुका था।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने चंद दिनों पहले ही इस परिवार को भाजपा की अयोध्या यानी क्षेत्र 4 से चुनाव लड़ने की हरी झंडी भी घर पहुंचकर दी थी। अब पूरी विधनासभा तो दूर, अग्निहोत्री परिवार अपना गृह वार्ड ही हार गया और हो अच्छे मार्जिन से। परिणाम वाले दिन कांग्रेस ने इस वार्ड के री काउंटिंग की मांग भी की ताकि कुछ लाज बचे लेकिन ऐसा हुआ नही। पूरे विधनासभा 1 में वार्ड 1 का ये मुकाबला मिसाल बन गया।

वार्ड 11

बाणगंगा इलाके से जुड़ा भागीरथपुरा राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील है। मध्यम ओर निम्न मध्यमवर्गीय इस इलाके में “बदमाशी” एक पहचान है। कई नामचीन गुंडों के नाम से भी इस वार्ड को जाना जाता है। इसी कारण पुलिस ने केवल इस इलाके के लिए अलग से पुलिस चौकी भी बना रखी है। लिहाजा यहां जाकर चुनाव लड़ना आसान नही रहता। यहां बीते 30 बरस से रेडवाल परिवार का कब्जा ओर दबदबा रहा है। कभी मांगीलाल रेडवाल पार्षद बन जाते तो कभी पत्नी भागवंती बाई निगम की सत्ता सम्भाल लेती।

रेडवाल परिवार यू तो भाजपाई है लेकिन जब जब पार्टी टिकट नहीं देती, रेडवाल परिवार बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर जाता। जीत भी जाता। इस बार भी यही हुआ। भाजपा में यहां से कमल वाघेला को मैदान में उतारा। वाघेला स्थानीय निवासी है। साफ सुथरी छवि के साथ साथ उनकी पृष्ठभूमि आरएसएस की रही है। वाघेला लम्बे समय तक आरएसएस में कार्य करने के बाद भाजपा में आये। विनम्र ओर संस्कारी वाघेला के सामने रेडवाल परिवार फिर बगावती तेवरों के साथ निर्दलीय मैदान में आ गया।

स्वयम मांगीलाल रेडवाल ने खम ठोका। मुकाबला जोरदार चला। सबको लगा मांगीलाल अपनी पुरानी जमावट ओर इलाके में किये कार्य के दम पर बाजी मार लेंगे। भाजपा ने भी उन्हें मैदान से हटने को मनाने के प्रयास किये। हालांकि ये प्रयास पूरी ईमानदारी से नही किये गए। भाजपा का एक धड़ा भी चाहता था कि वाघेला चुनाव हार जाए। ये धड़ा संभावनाशील वाघेला में अपनी भविष्य की राजनीति को उलझते देख रहा था की संघ और हिंदुत्व की छवि के चलते वाघेला आगे बढ़ जाएंगे। लेकिन वाघेला ने पूरा चुनाव पूरी विनम्रता के साथ लड़ा।

खुलासा फर्स्ट ने भी स्पष्ट कर दिया था कि क्षेत्र बदलाव चाह रहा है और रेडवाल परिवार से मुक्ति भी। हुआ भी यही। परिणाम आये तो वाघेला ने 2870 की बड़ी लीड के साथ मांगीलाल को पटखनी दे दी। कांग्रेस यहां मुकाबले में थी ही नही। लिहाजा वाघेला को 5644 वोट मिले और रेडवाल को 2774 वोट पर ही रोक दिया। वाघेला अब संगठन की तरफ से इस क्षेत्र से एमआईसी के प्रबल ओर स्वाभाविक दावेदार रहेंगे।

विधनासभा 2

दादा दयालु यानी रमेश मेंदोला का ये विधनासभा क्षेत्र इस बार चर्चाओं में ज्यादा रहा। मामला टिकिट वितरण को लेकर मेंदोला ओर कैलाश विजयवर्गीय में उभरे अंतर्विरोध से जुड़ा था। मेंदोला की मंशा थी कि पुराने चेहरों को अब आराम देना चाहिए। विजयवर्गीय की मंशा ऐसी नही थी। आखिरकार विजयवर्गीय की चली और चंदू शिंदे मुन्नालाल यादव राजेन्द्र राठौड़ गणेश गोयल सुरेश कुरवाड़े फिर मैदान में उतर गये।

शिंदे गोयल चुनाव हार गए। मुन्नालाल यादव ” राम राम ” कर जीते। एक वक्त तो वे हार गए थे। चूंकि मामला पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के घरेलू वार्ड का था। लिहाजा फिर से गिनती हुई और मुन्नालाल विजयी घोषित हुए। कांग्रेस ने इसे ” मैनेजमेंट” की जीत बताया।

वार्ड 21

भाजपा के “धनबली” नेता गणेश गोयल यहां से मैदान में थे। मेंदोला की अनदेखी कर ये विजयवर्गीय की जिद का टिकिट था। गोयल के सामने कांग्रेस की युवा चुनोती चिंटू चौकसे थे। गोयल को अपने धनबल के साथ साथ विजयवर्गीय की भी ताकत मिली हुई थी। इलाका भी उनका अपना था। दबाव बनवाकर वे वार्ड में मेंदोला का मूवमेंट करवाने में भी कामयाब रहे। हर तरह से सुनिश्चित होंने के बाद गोयल अपनी जीत तय मान रहे थे। परिणाम आया तो गोयल हजार दो हजार से ही नही 3443 वोट से चुनाव हार गए। चिंटू चौकसे में 7912 वोट लाकर गोयल को उनके ही गढ़ में मात दे दी ओर वे एक बार भी भाजपा के बड़े नेताओं को हराकर चुनाव जीतने की मिसाल बन गए।

वार्ड 22

स्वयम को ” विनिंग मैटेरियल” कहने वाले चंदराव शिंदे यहां भाजपा से मैदान में थे। विधनासभा 2 जैसे भाजपाई गढ़ के वे आधार स्तम्भ थे। अलग अलग वार्डो से चुनाव लड़कर आसानी से जीतते भी रहे। विकास कार्यों में अव्वल भी रहते आये। लेकिन इस बार चुनाव ही नही हारे, दबदबा भी हार गए। मतदान वाले दिन महिलाओं के बीच घेर लिए गए। जानलेवा हमले का शिकार होते होते बचे। चप्पल भी खाई।

लड़ाई भी की। वार्ड के जो हिस्से अनुकूल नही थे, वहां धमक चमक भी की। मतदान भी प्रभावित किया। प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार राजू भदौरिया को थाने में बन्द भी करवा दिया। धारा 307 की पुलिसिया कार्रवाई भी करवा दी। जेल भी भिजवा दिया। परिणाम आया तो 2048 वोट से राजू भदौरिया से चुनाव हार गए। कैलाश विजयवर्गीय के इस ” मानस पुत्र” की हार इलाके में ही नही इंदौर में मिसाल बन गई।

विधानसभा 3

आकाश विजयवर्गीय के लिए निगम चुनाव बड़ी चुनोतिपूर्ण थे। इस छोटी सी विधनासभा का स्वभाव कांग्रेस के मन मुताबिक है। अश्विन जोशी यहां से 3 बार कांग्रेस से विधायक भी थे। युवा आकाश के लिए अल्पसंख्यक बहुल इस विधनासभा मे ज्यादा पार्षद जितवाकर लाना एक चुनोती थे। गुटबाजी ओर भितरघात की आशंकाओं के बीच हुए चुनाव में विजयवर्गीय पुत्र ने प्रथम श्रेणी में परीक्षा पास कर ली। 10 में से 8 पार्षद जीते। कांग्रेस के हाथ वो ही दो वार्ड आये जहा मुस्लिम मतदाता निर्णायक है।

वार्ड 57

रामबाग वाले इस इलाके में बरसों बरस से आरएसएस का दबदबा रहा है। संघ का स्थानीय मुख्यालय अर्चना भी यही है। मराठी बहुल इस वार्ड में भाजपा अमूमन चुनोतिविहीन रहती आई है। इसी कारण भाजपा में यहां से अपने पुराने नेता सुरेश टाकलकर को सामने किया। कॉंग्रेस ने यहां से पूर्व मंत्री ललित जेन की बहू दीपिका अनुरोध जेन को मैदान में उतारा।

दीपिका को शुरू में हल्के में लिया गया लेकिन उन्होंने ओर भाजपा के एक बागी ने माहौल को बदल दिया। दीपिका का स्थानीय होना और मुम्बई से पीहर होना काम आया। वे मराठी परिवार में तेजी से बतौर बहु घुसपैठ कर गई। बगावत ओर भितरघात के बीच हुए चुनाव में भाजपाइयो को भी उम्मीद कम थी लेकिन परिणाम टाकलकर के पक्ष में आया। हार जीत का अंतर भले ही मात्र 731 वोट का रहा पर दीपिका के चुनाव लड़ने के स्टायल से ये मुकाबला मिसाल बना।

विधानसभा 4

स्व लक्ष्मणसिंह गोड़ की विरासत को संभाले एकलव्य सिंह गोड़ के लिए इस बार का ये चुनाव कठिन था। ऐसा नही की यहा कांग्रेस की कोई बड़ी चुनोती थी। समस्या स्वयम की पार्टी में ही थी। पहली चुनोती टिकिट वितरण की थी। इस मामले में गोड़ पर मनमानी के आरोप भी लगे। इससे एकलव्य के लिए चुनोती ओर कठिन हो गई की अब सबका जीतना भी जरूरी है।

क्षेत्र की विधायक, पूर्व महापौर मालिनी गौड़ में इस बार कमान बेटे एकलव्य के हाथों में सोप दी थी। नगर इकाई में उपाध्यक्ष एकलव्य के लिए ये परीक्षा की घड़ी थी। सांसद शंकर लालवानी से भी उनकी टिकट को लेकर बहस हो गई थी। क्षेत्र के कुछ वार्ड भितरघात की आशंका से घिरे हुए थे। लेकिन परिणाम वैसे ही आये जैसे इस अयोध्या में आते है। 13 वार्ड में से 11 भाजपा ने जीते। कांग्रेस के पास वो ही दो वार्ड जो मुस्लिम मतदाता बहुल है।

वार्ड 72

लोकमान्य नगर जैसे सुशिक्षित ओर मराठी बहुल इलाके वाले इस वार्ड से भाजपा ने योगेश गेंदर को मैदान में उतारा था। धान गली सराफा में रहने वाले गेंदर कांग्रेस नेता रहे। मंत्री तुलसी सिलावट समर्थक होने के नाते ज्योतिरादित्य सिंधिया की सीधी रुचि भी इस वार्ड में थी। कांग्रेस के प्रकाश पटेल यहां पहले ही दिन से बढ़त में थे। स्थानीय होने के नाते ओर बीते चुनाव में निर्दलीय लड़कर 2700 से ज्यादा वोट के जाने वाले पटेल के कारण कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरेश मिंडा की बहू चुनाव हार गई थी।

पटेल इलाके में पानी की राजनीति भी सालों से कर रहे थे। घर घर जल पहुचाने के कारण उनका सम्पर्क मतदातओं से नियमित भी था। जीत पक्की मानकर चल रहे थे। दूसरी तरफ गेंदर अपनी सहज सरल छवि के साथ चुपचाप काम मे लगे रहे। राजनीतिक पंडित भी यहां पटेल को ही भारी बताते रहे लेकिन परिणाम आये तो पटेल 5697 वोट लेकर भी 861 वोटो से चुनाव हारकर हल्के हो गए। गेंदर को 6828 वोट मिले।

विधनासभा 5

महेंद्र बाबा यानी महेन्द्र हार्डिया की इस विधनासभा मे खूब उतार चढ़ाव हुए। दिलीप शर्मा जैसे नेता के टिकिट काटे गए और अजयसिंह नरुका, सुनील पाटीदार, राजा कोठारी जैसे स्वाभाविक दावेदार भी दरकिनार किये गए। बगावत हुई। बागी चुनाव भी लड़े। लेकिन परिणाम हार्डिया के फेवर में गए और उनके खास प्रणव मंडल राजीव जेन राजेश उदावत जैसे नेता चुनाव जीत गए। लाज तो सांसद शंकर लालवानी की भी मुद्रा शास्त्री ने रख ली और वे किरण जिरेति को हराकर मेन स्ट्रीम की राजनीति में आ गई।

वार्ड 54

भाजपा ने यहां से महेश बसवाल को मैदान में उतारा। आरएसएस पृष्ठभूमि के बसवाल को पहली चुनोती अपनी ही पार्टी से मिली। पार्टी की इस वार्ड से पार्षद रही मंजू गोयल का परिवार बागी हो गया और निर्दलीय मैदान में उतर गया। धन बल और बाहुबल में सक्षम गोयल के बागी होने से महेश की संभावनाएं धुँधली हो गई। बची कसर विरोधी उम्मीदवार की तरफ से बट रही शराब ने पूरी कर दी।

अधिकांश बस्ती क्षेत्र से घिरे इस वार्ड में शराब पैसे के प्रलोभनों में माहौल ऐसा बना दिया कि भाजपा यहां पिछड़ जाएगी। लेकिन आरएसएस के जरिये महेश का घर घर सम्पर्क काम आया। नगर इकाई ने भी यहां पर फोकस किया। अध्यक्ष गौरव रणदिवे ने मैदानी संसाधन ओर रसद में कमी नही रखी। बसवाल की विनम्र ओर संस्कारी छवि ने भी असर दिखाया। परिणाम जब आया तो सब चौक गए। बसवाल 1152 मतों से चुनाव जीत गए। उन्हें 6024 वोट मिले। जमीनी जमावट ओर विनम्रता के साथ चुनाव लड़कर महेश इलाके में मिसाल बने।

विधनासभा 6 राऊ

जीतू जिराती की कर्मभूमि वाली इस छोटी सी विधानसभा ने इस चुनाव में बड़ा काम किया और राऊ विधनासभा क्षेत्र भाजपा गलियारों में एक नई अयोध्या बनकर उभरा। महापौर उम्मीदवार पुष्यमित्र भार्गव को इस विधनासभा से 30 हजार की लीड मिली जबकि यहा महज 10 वार्ड है। मधु वर्मा बलराम वर्मा युवराज दुबे नीलेश चौधरी बबलू शर्मा मिलाप मिश्रा जैसे नेताओ ने भी कोई कसर नही रखी। बबलू तो स्वयम 8696 से वार्ड का चुनाव जीते।

वार्ड 80

राजेन्द्र नगर वाला ये वार्ड अमूमन भाजपाई ही रहा है। कारण वही मराठी भाषी लोगो की बहुलता। लेकिन इस बार इस गढ़ में सेंध लगती दिख रही थी। कारण पार्टी उम्मीदवार। भाजपा ने यहां से प्रशांत बडवे को सामने किया। इसका जोरदार विरोध स्थानीय भाजपा में हुआ। पूर्व सांसद लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन के खाते में अपयश दिया जाने लगा।

बड़वे भी सरकारी नोकरी से त्यागपत्र देकर मैदान में उतर गए। बगावत ओर भितरघात के बीच हुए इस चुनाव में ये मान लिया गया था कि बड़वे पर गलत दांव खेला गया। लेकिन परिणामों ने ये बता दिया कि मराठी वोटर बिरादरी ओर पार्टी के पक्ष में पूरी ताकत से खड़ा ओर अड़ा रहा। तमाम विरोध और भितरघात के बीच भी शांत रहकर चुनाव लड़कर जीतकर बड़वे इलाके में ही नही पार्टी में भी मिसाल बने।