चंद्रयान-3 के लैंडर मॉड्यूल ने शाम 6:04 पर चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र पर सॉफ्ट लैंड किया। चांद पर सफलतापूर्वक पहुंचने वाला भारत दुनिया का चौथा देश बन चुका है। इसको लेकर देशभर में खूब उत्साह देखने को मिला। चारों ओर बधाइयों का तांता लगा हुआ है और ऐसा हो भी क्यों ना देश के सभी वैज्ञानिकों का वर्षों का परिश्रम आज रंग लाया। अब हम उन कारणों को जानेंगे जिससे भारत ने यह उपलब्धि हासिल की है तो चलिए जानते हैं।
चंद्रयान 2 से सबक सीखा
आपको बता दें,चंद्रयान-3 से पहले 22 जुलाई 2019 को चंद्रयान-2 लांच किया गया था। यह अंतरिक्ष का पहला मिशन बनने वाला था,जो चंद्रमा के दक्षिणी दूसरी क्षेत्र पर सॉफ्ट लीडिंग करता। हालांकि यह सक्सेस नहीं हो पाया, चंद्रयान 2 मिशन का विक्रम चंद्र लैंडर 6 सितंबर 2019 को चंद्रमा पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
इसरो के वैज्ञानिकों ने इस मिशन से जितना भी सीखा उन्होंने वह सब कुछ चंद्रयान-3 पर आजमाया। इसरो के प्रमुख एस सोमनाथ कहते हैं कि 2019 का मिशन चंद्रयान 2 आशिंक सफल था। लेकिन इससे मिले अनुभव इसरो के चंद्रमा लैंडर उतारने के लिए नए प्रयास में काफी उपयोगी साबित हुए। इसके तहत चंद्रयान-3 में कई बदलाव किए गए। गर्व के साथ यह यह कह सकते है कि वह सारे बदलाव की वजह से आज चंद्रयान-3 सफलतापूर्वक चंद्रमा पर लैंड कर गया।
लैंडर के पांव पहले से मजबूत बनाए
चंद्रयान 2 को देखते हुए इस बार चंद्रयान-3 के पैरों को मजबूत किया गया। इसके साथ अधिक उपकरण, अपडेटेड सॉफ्टवेयर और एक बड़ा ईंधन टैंक लगाए गए। ऐसा इसलिए किया गया ताकि अंतिम मिनट में कोई बदलाव भी करना पड़े तो यह उपकरण उसे स्थिति में महत्वपूर्ण हो सकें।
इस बार लैंडर में पांच की जगह चार इंजन लगाए गए
चंद्रयान-2 के लैंडर में 5 इंजन लगे थे। उसी को ध्यान में रखते हुए इस बार चंद्रयान-3 में चार इंजन लगाए गए। चार इंजन लगाने का उद्देश्य यह था कि चंद्रमा पर उतरने के सभी चरणों में वह अपनी ऊंचाई और अभिविन्यास को नियंत्रित कर सके।
लैंडिंग का क्षेत्रफल बढ़ाया गया
चंद्रयान-2 से सबक लेते हुए चंद्रयान-3 में व्यापक बदलाव किए गए। चंद्रयान-2 के उतरने के लिए जितना क्षेत्र निर्धारित किया गया था। उससे कई ज्यादा क्षेत्रफल बढ़ाया गया। लैंडिंग के लिए लगभग 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तय किया गया।