शहर में चैत्र नवरात्रि की तैयारियां जोरों शोरों पर, धूमधाम से मनाया जाएगा त्यौहार, यह मंदिर है शहर में खास

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इंदौर। आगामी 22 मार्च को शहर और देश भर में चैत्र नवरात्रि का त्योहार धूमधाम से मनाया जायेगा। इसको लेकर शहर में स्थित देवी मंदिरों में चैत्र नवरात्र को लेकर तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। इन मंदिरों को सजाने के साथ-साथ धार्मिक अनुष्ठान्न के लिए भी रूपरेखा मंदिर समिति द्वारा तैयार की जा रही है। शहर में कई ऐसे देवी मंदिर हैं जिनका संबंध इतिहास से है। जिसमें श्री विद्याधाम मंदिर,हरसिद्धि माता मंदिर, अन्नपूर्णा मंदिर इसी के साथ शहर में कई मंदिर ऐसे भी हैं जो कुछ दशकों पहले ही बने पर अलग-अलग विशेषताओं के कारण यह आस्था का केंद्र बन गए।

अन्नपूर्णा मंदिर हाथी वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

शहर के पश्चिम क्षेत्र का अन्नपूर्णा मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है, यह शहर के भक्तगण का आस्था का केंद्र है। इसके गर्भगृह में मां अन्नपूर्णा, देवी गायत्री और देवी महाकाली के विग्रह स्थापित हैं। जानकारों के अनुसार आर्य और द्रविड़ स्थापत्य शैली में इस मंदिर का निर्माण महामंडलेश्वर प्रभानंदगिरि महाराज ने 1959 में करवाया गया था। मंदिर परिसर में मां अन्नपूर्णा के अलावा भगवान शिव, चारों वेद और काल भैरव के मंदिर भी हैं।

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1975 में मंदिर का मुख्य द्वार बनवाया गया था जिसमें चार हाथी बनाकर उन पर देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई गई हैं। यह द्वार इतना आकर्षक बना कि इसे हाथी वाले मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। वर्तमान में मंदिर को नया स्वरूप दिया जा रहा है। यहां पर शहर के आलावा कई बाहर से भक्तगण अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। हाल ही में शहर के प्रसिद्ध अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में संगमरमर से तराश कर नया मंदिर बनाया गया है। इस पर 20 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।

श्रीविद्याधाम मंदिर में मूर्ति में देवी शेर पर नहीं, बल्कि भगवान शिव की नाभि से निकले यहां कमल पर विराजित हैं।

शहर स्थित श्रीविद्याधाम मंदिर लोगों के बीच आस्था का केंद्र है। कहा जाता है कि इसका निर्माण करीब 50 वर्ष पहले हुआ था। यह मंदिर श्री श्रीविद्या राजराजेश्वरी मां पराम्बा ललिता महात्रिपुरसुंदरी को समर्पित है। यहां देवी महात्रिपुरसुंदरी की सफेद संगमरमर से बनी करीब आठ फीट ऊंची मूर्ति है। इस मूर्ति में देवी शेर पर नहीं बैठी, बल्कि भगवान शिव की नाभि से निकले यहां कमल पर विराजित हैं। इस मंदिर का निर्माण स्व. महामंडलेश्वर गिरजानंद सरस्वती ने करवाया था।

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यहां दिन में दो बार देवी की पोषाक बदली जाती हैं। दक्षिण भारतीय शैली में बने इस मंदिर में शिव परिवार और गणेश परिवार को समर्पित मंदिर भी है। इसके अलावा यहां परशुराम, हनुमानजी, शालिग्राम, नवग्रह, शीतलामाता औरर भैरवजी के मंदिर भी हैं। यहां देवी को सूर्योदय से रात में विश्राम आरती तक हर पहर में भोग लगाया जाता है। सुबह दूध और फल के बाद नाश्ता, दिन में भोजन, शाम को फल और दूध, रात को भोजन और फिर दूध का भोग लगाया जाता है।

हरसिद्धि माता मंदिर में स्थापित देवी की दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में है।

शहर में माता रानी के कई मंदिर है, जिसमें हरिसिद्धि मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर को लेकर खासी मान्यता, किवदंती है कि इस मंदिर में मां की जो मूर्ति स्थापित है, कहा जाता है कि वह बावड़ी में से निकली थी और जब सूबेदार मल्हारराव होलकर युद्ध लड़कर आए थे। तब उन्हें देवी ने दर्शन दिए थे। चार भुजाओं वाली देवी दुर्गा की इस मूर्ति के एक हाथ में खड्ग, दूसरे हाथ में त्रिशूल, तीसरे हाथ में घंटा और चौथे हाथ में असुर का मुंड है।

इस मंदिर का निर्माण अहिल्याबाई होलकर ने लगभग 1766 को करवाया था। मंदिर में स्थापित देवी की दिव्य मूर्ति पूर्वाभिमुखी महिषासुर मर्दिनी मुद्रा में है। यूं तो यहां हर दिन भक्तों का तांता लगा रहता है लेकिन नवरात्र में यहां भक्तों की बहुत भीड़ रहती है इसी के साथ मंदिर परिसर में शंकरजी व हनुमानजी की भी मूर्तियां हैं। चैत्र नवरात्र की दशमी और अश्विन मास की दशमी को मां का विशेष श्रृंगार होता है। इसमें भक्त देवी के सिंह वाहिनी के रूप में दर्शन करते हैं। इस मंदिर में दर्शन के लिए आज भी होलकर राजवंश के सदस्य आते हैं। यहां पर लोग अपनी मान्यताएं पूरी होने पर माता के दरबार में चढ़ावा चढ़ाते है।