कम लागत में अधिक लाभ कमाने की चाह रखने वाले किसानों के लिए आयस्टर मशरूम की खेती एक सुनहरा अवसर बनकर उभरी है। कृषि क्षेत्र में नई तकनीकों और फसलों का बढ़ता चलन इसे एक आकर्षक विकल्प बना रहा है। विशेष रूप से छत्तीसगढ़ में, ठंड के मौसम में इस मशरूम की खेती कम पूंजी और कम समय में की जा सकती है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा हो सकता है। आयस्टर मशरूम न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से फायदेमंद है, बल्कि यह पोषण और स्वास्थ्य के लिए भी महत्वपूर्ण है।
मशरूम उत्पादन की प्रक्रिया
मशरूम उत्पादन विशेषज्ञ एच.के. सिंह के अनुसार, सर्दियों के दौरान रायपुर और बस्तर जैसे क्षेत्रों में ब्लू आयस्टर, फ्लोरिडा और सजर काजू जैसी मशरूम की किस्मों का उत्पादन किया जा सकता है। इसके लिए, 10 किलो सूखे भूसे को 100 लीटर पानी में ढाई किलो चूने के साथ भिगोकर रात भर रखा जाता है। सुबह इसे दबाकर नमी के साथ सुखाना होता है। इसके बाद, इसे 10 बराबर भागों में बांटकर 1 किलो बीज मिलाया जाता है और बैग्स में डालकर एक ठंडी और छायादार जगह पर रखा जाता है। करीब 15-20 दिनों में मशरूम की सफेदी दिखने लगती है, जिसके बाद छेद कर उसमें पानी दिया जाता है, जिससे मशरूम विकसित होना शुरू होती है।
लाभ की संभावना
एक बार मशरूम प्राप्त होने के बाद, फिर से पानी डालते रहना आवश्यक है, जिससे 10 दिन के अंतराल में दूसरी बार मशरूम प्राप्त की जा सके। एक बैग से लगभग 3 बार तुड़ाई की जा सकती है, और हर बैग से 800 से 900 ग्राम मशरूम मिलती है। इसे सुखाकर रखने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
बाजार में आयस्टर मशरूम की कीमत 120 से 200 रुपए प्रति किलो के बीच रहती है। एक मशरूम बैग बनाने में लागत 30 से 40 रुपए आती है। यदि एक बैग से 800 ग्राम से 1 किलो मशरूम मिलती है, तो 100 किलो मशरूम बेचने पर किसानों को अच्छी खासी आमदनी हो सकती है। इस प्रकार, आयस्टर मशरूम की खेती किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रही है।