आदिवासी क्षेत्र में भगवा ब्रिगेड का “ब्रह्मास्त्र” अभियान, जो भोलेनाथ का नही, वो मेरी जात का नही

Pinal Patidar
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नितिनमोहन शर्मा

” जो भोलेनाथ का नही, वो मेरी जात का नही”। ये नारा इन दिनों प्रदेश के वनवासी अंचल में तेजी से गूंज रहा हैं। धार-झाबुआ-बड़वानी से लेकर मंडला-शहडोल तक इसकी गूंज एक समान हैं। मामला आदिवासियों के धर्मांतरण से जुड़ा हैं। इस मामले में ईसाई मिशनरियों के साथ साथ पहली बार इस्लामिक संगठन भी निशाने पर लिए गए हैं। मुद्दा धर्मांतरित आदिवासियों को उस सूची से बाहर करने का है जो अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए बनी हुई हैं। इसे डिलिस्टिंग नाम दिया गया हैं और इसी नाम के साथ आंदोलन छेड़ दिया गया हैं।

वनवासी इलाको में ही रैलियां नही निकल रही, बल्कि शहरी क्षेत्र में भी डिलिस्टिंग का आंदोलन शुरू हो गया हैं। इस सबके पीछे भगवा वाहिनी है जो बरसो से वनवासी अंचल में धर्मांतरण के मूददे पर मिशनरियों से दो दो हाथ कर रही हैं। झारखंड से आई खबरों के बाद इस बार ईसाई मिशनरियों के साथ साथ इस्लामिक सँगठन भी निशाने पर हैं। झारखंड में बड़ी संख्या में आदिवासी युवतियों से मुस्लिम युवाओं की शादियों के चलन ने भगवा ब्रिगेड के कान खड़े कर दिए हैं। ब्रिगेड का कहना है कि विवाह बाद मुस्लिम पत्नी के नाम से जमीनें खरीद रहे हैं।

भगवा वाहिनी लम्बे प्रयास के बाद मूल वनवासी समाज को ये समझाने में कामयाब हो गई है कि जो आपके समाज से दूसरे धर्म मे चला गया, उसे फिर आपके समाज को मिलने वाले लाभ और फायदे उसे क्यो मिले? जो धर्मांतरण कर दूसरे धर्म मे चला गया तो वह अब आदिवासी कहा रहा? वो तो ईसाई हो गया। भगवा वाहिनी की ये बात भी वनवासी समुदाय के गले उतर गई की कन्वर्टेड लोग आपके हिस्से का 80 फीसदी तक हड़प कर जा रहे है और दोनो तरफ से लाभ ले रहे हैं। इसके बाद समूचे प्रदेश में डिलिस्टिंग की मांग के साथ धरना, प्रदर्शन, रैलियां निकल रही हैं। इसमे इन्दौर भौपाल जैसे शहरी क्षेत्र भी है जहां हजारों की संख्या में मूल वनवासियों ने डिलिस्टिंग की मांग बुलंद की है।

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ये अभियान भगवा ब्रिगेड का वनवासी इलाको के लिए ब्रह्मास्त्र बताया जा रहा हैं। सूत्र बताते है कि डिलिस्टिंग के जरिये वनवासी इलाको में न केवल धर्मान्तरण की गतिविधियों पर अंकुश लग सकेगा बल्कि ईसाई मिशनरियों पर भी लगाम लग सकेगी। सुविधाओं के लालच में आदिवासी समाज का धर्म परिवर्तन रुकेगा। जो धर्मांतरित हो गए है, उनकी भी घर वापसी होने लगेगी। कारण है भारत का संविधान जो आदिवासियों को बहुत अधिकार देता है। जब कन्वर्टेड आदिवासी इन अधिकारों से वंचित किया जाएगा तो वो धर्मांतरित होने से बचेगा।

भगवा वाहिनी ने पूरा आंदोलन जनजातीय पहचान के साथ शुरू की है ताकि आदिवासी समाज अपनी सँस्कृति, परम्परा पर गर्व कर सके। इसलिए रैलियां, धरनो, प्रदर्शनों ओर आंदोलन में पारंपरिक वेशभूषा, साज श्रंगार ओर वाद्य यंत्रों के साथ आदिवासी गौरव को जिंदा किया जा रहा है और जो धर्मांतरित हो गए है, उन वनवासियों को बताया जा रहा है कि हम क्या है?

सरकार के सामने डिलिस्टिंग की मांग तेजी से बुलंद की जा रही हैं। अगर ऐसा हुआ तो ये एक तरह से भाजपा के लिए बेहद फायदेमंद होगा। पार्टी 2018 में आदिवासी बेल्ट में ही चुनाव हार गई थी और सत्ता से बाहर हो गई थीं। ऐसे में भगवा वाहिनी का जनजातियों के बीच गौरव भाव जागृत करने का ये अभियान भाजपा के लिए आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक मजबूत जमीन तैयार कर देगा और चुनाव तक वनवासी अंचल में मूल आदिवासी और धर्मांतरित वनवासी के बीच एक स्पष्ट लकीर खींचा जाएगी। सरकार ने भी पूरा फोकस अभी आदिवासियों पर कर रखा है। बिरसा मुंडा से लेकर टंट्या मामा तक वनवासी प्रतीको को आगे कर कार्यक्रम चल रहे हैं।