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डॉ आंबेडकर के जन्म नगर में उनके नाम से पुत रही कालिख पर शासन प्रशासन और संघ खामोश क्यों

डॉ आंबेडकर के जन्म नगर में उनके नाम से पुत रही कालिख पर शासन प्रशासन और संघ खामोश क्यों

दिनेश सोलंकी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी डॉ आम्बेडकर के प्रति हमेशा भाषणों में अगाध स्नेह और सम्मान देते हैं वहीं, मध्यप्रदेश सरकार उनकी जयंति पर महू जन्मस्थली पर तीन दिनी बड़ा आयोजन करती है। लेकिन डॉ आम्बेडकर के इसी जन्मनगर में उनके नाम पर जो लगातार बट्टा लग रहा है उस पर प्रदेश सरकार, प्रशासन और आरएसएस खामोश क्यों है।

डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय, महू में विद्यार्थियों के शोषण और अनेक धांदलियों को लेकर गूंज रहा है। दूसरा, डॉ भीमराव अम्बेडकर शासकीय चिकित्सालय में डॉक्टरों द्वारा मरीजों के साथ खिलवाड़ और गुटबाजी से डॉ आम्बेडकर नाम की गरिमा पर ठेंस लग रही है, तो बाबा साहब की जन्मस्थली पर स्मारक समितियोंं में चंदा विवाद और समिति गठन के विवाद चर्मोत्कर्ष पर चल रहे हैं।

यहाँ तो समिति के तीनों अध्यक्षों की मौत ही असामयिक हुई है जिसमें दो की मौत पर जांच के नाम पर चुप्पी रही, तो तीसरे की मौत के पीछे बिमारी के अलावा समिति के विवादों से मानसिक प्रताड़ना रही है। इस तरह डॉ आम्बेडकर के जन्म नगर में उनके नामों पर उक्त तीनों ही स्थानों पर कीचड़ उछल रहा है जिसे लेकर मध्यप्रदेश सरकार द्वारा उदासीनता पालना हैरत भरा है। डॉ आम्बेडकर के नाम पर पुत रही कालिखों को लेकर शासन प्रशासन इतना मगरुर क्यों बना हुआ है।

हाल ही में डॉ अम्बेडकर विवि में तो परीक्षा की कॉपियां ही कचरे के ढेर में पाईं गई, जिसे लेकर अभाविप ने विरोध किया। अभाविप के विरोध के बाद भी संभागायुक्त का खामोश रहना भी कम हैरत का नहीं है। यह खबर आम है कि विवि में पदस्थ कुलपति की नियुक्ति में आरएसएस का हस्तक्षेप रहा है और कुलपति की हालत यह है कि वह हर सप्ताह बिना बताए अवकाश पर महू से बाहर चले जाते हैं। विधानसभा सत्र के चलते भी न सिर्फ कुलपति बल्कि कुलसचिव भी विवि से नदारद रहे।

सरकार को तो यह भी होश नहीं कि आम्बेडकर पीठ तक यहाँ बंद कर दी गई है। कोई बड़ा कोर्स ही नहीं चल रहा है। एक हजार रुपए डीडी के नाम पर दो बार रिक्त पदों को लेकर भर्तियां निकाली गईं, लेकिन भर्तियां हुई नहीं और न ही रुपए लौटाए गए। आखिर रुपए कमाने का यह कौनसा नया धंदा विवि में चल रहा है इस पर भी शासन प्रशासन मौन है। न तो पीएचडी करवाई जा रही है और विवि केवल लोकल कोर्स चलाकर इतिश्री कर रहा है।

कहीं आरएसएस की मंशा इस विवि को ही खत्म करने की तो नहीं है, ये शंकाएं इसलिये बलवती हो रही हैं कि आरएसएस भी कुलपति की कार्यप्रणाली को लेकर उतना ही खामोश है जितना कि दो माह पूर्व महू विधानसभा चुनाव में पराजित कॉग्रेस प्रत्याशी द्वारा पत्रकारों के सामने लगाए गए खुले आरोप कि संघ ने ही भाजपा से उसे काँग्रेस में लड़ने के लिये भेजा था, ताकि काँग्रेस की दो गुटों की लड़ाई में उषा ठाकुर चुनाव जीत जाए।

संघ इस खुले आरोप पर भी आज तक खामोशी ओढ़े हुए है, लेकिन उसकी खामोशी डॉ अम्बेडकर विवि के मामले में भी अनुचित लग रही है। उन्हें इस मामले में गम्भीरता से संज्ञान लेना चाहिये वरना यही लगेगा कि वे डॉ अम्बेडकर के नाम के विवि को जमींदोज करना चाहते हैं और हो सकता है कि संघ के प्रभाव से प्रदेश सरकार भी घुप्प चुप है।

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