अजय बोकिल
शायद इसीलिए इसे ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ कहते हैं। जहां एक दुनिया कोरोना वायरस से निपटने को लेकर हलकान है, वहीं दूसरी दुनिया ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ चैलेंज स्वीकारने में व्यस्त है। ब्लैक एंड व्हाइट चैलेंज’ इन दिनो इंस्टाग्राम और कुछ अन्य सोशल मीडिया साइट्स पर खासा पापुलर है। हाॅलीवुड, बाॅलीवुड समेत कई सेलेब्रिटी महिलाएं इसे नारी सशक्तीकरण का प्रतीक मानकर अपनी ब्लैक एंड व्हाइट तस्वीरें पोस्ट कर रही हैं। ये ट्रेंड पूरी दुनिया में है और हमारे यहां भी कई नामी सेलेब्रिटी महिलाएं तथा अभिनेत्रियां अपनी काली सफेद तस्वीरें एक दूसरे को टैग और शेयर कर रही हैं। हालांकि श्वेत श्याम चित्रों का यह जश्न कुछ वैसा ही है कि जैसे तेरहवीं के माहौल में परोसी गई मिठाई। लेकिन यह एक नजरिया हो सकता है। दुनिया भर में महिलाअों के शोषण, अत्याचार की कहानियां बहुत मार्मिक और बहुस्तरीय हैं। जीवन के हर पड़ाव पर उन्हें खुद को ‘प्रूव’ करके ही आगे बढ़ना होता है।
महिला को पुरूष की रंगीनियत का हिस्सा भले माना जाता हो, लेकिन अधिकांश महिलाअों की जिंदगी बेरंग और ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ ही होती है। लिहाजा ‘चैलेंज एक्सेप्टेड’ ( यानी चुनौती स्वीकार) से दुनिया भर में अब तक महिलाअों ने अपनी 60 लाख से ज्यादा श्वेत श्याम तस्वीरें पोस्ट की हैं, कर रही हैं। मानकर कि स्त्री अधिकारों का संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है। इस लिस्ट में दुनिया की कई जानी-मानी महिला हस्तियों के अलावा बाॅलीवुड की नई-पुरानी तारिकाअों जैसे सोनम कपूर, टीना अंबानी,करिश्मा कपूर, सारा अली खान, दिव्यांका त्रिपाठी, मीरा कपूर ( शाहिद कपूर की पत्नी) फैशन डिजाइनर अनीता श्राॅफ अदजानिया आदि शामिल हैं। पूर्व हीरोइन और उद्योगपति अनिल अंबानी की पत्नी टीना अंबानी ने अपनी ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फोटो शेयर करते हुए लिखा- आजकल चारों अोर निगेटिविटी है, ऐसे में खुद को पाॅजिटिव रखना होगा। वुमेन सपोर्ट वुमेन। एक दूसरे को नीचा गिराने और धक्का देने के बजाय चलो एक दूसरे को सपोर्ट करते हैं और उन्हें जोड़ते हैं। तो ये है एक दूसरे को तस्वीरों के जरिए सपोर्ट करने का सेलेब्रिटी सिस्टम।
सवाल ये कि यह हैशटैग आया कहां से? वैसे इसकी शुरूआत तो 2016 में हुई थी। महिला पत्रकार रेचेल माॅस ने ‘हफ पोस्ट’ में अपनी रिपोर्ट में बताया है कि इस हैशटैग से तात्पर्य मोटिवेशन से है। ‘चैलेंज एक्सेप्टेड’ से ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फोटो भेजने की शुरूआत दरअसल कैंसर जागरूकता के लिए हुई थी। लेकिन वर्तमान ट्रेंड के पीछे कारण अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन सांसद टेड योहो द्वारा सीनेट में अपने भाषण में डेमोक्रेट महिला सांसद अलेक्जेंड्रिया अोकासियो काॅर्टेज को ‘कमबख्ते कुतिया’ कह देना था। इसे दुनिया भर की महिलाअों ने अपने अपमान के रूप में लिया और बदले में वुमेन एम्पावरमेंट का ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ अभियान सोशल मीडिया पर छेड़ दिया। बताया जाता है कि विरोधस्वरूप अपनी ऐसी पहली काली-सफेद तस्वीर ब्राजील की पत्रकार आना पाॅला पेद्रो ने दो साल पहले पोस्ट की थी। इसका मकसद महिलाअों के साथ होने वाली घरेलू हिंसा और तुर्की में महिलाअों पर होने वाले अत्याचार की अोर दुनिया का ध्यान आकर्षित करना था। इस अभियान के तहत ‘नारी संहार’ की कई कहानियां इंस्टाग्राम पर पोस्ट की गईं। ये काली-सफेद तस्वीरें महिलाअों पर अत्याचार के विरोध का प्रतीक बन गईं। यह संदेश भी गया कि महिलाअों के शोषण और प्रताड़ना की ये कहानियां पूरी दुनिया भर में हैं।
भारत से इसमें कांग्रेस नेत्री प्रियंका गांधी वाड्रा और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने अपनी श्वेत श्याम फोटो शेयर कीं। प्रियंका ने तो अपनी बेटी के साथ फोटो शेयर की और लिखा- एक महिला दूसरी महिला को सपोर्ट करे, इससे बढ़कर न कोई बहादुरी हो सकती है, न तो ताकत हो सकती है और न ही कोई खुशी हो सकती है। हालांकि इस ‘अभियान’ के आलोचकों का मानना है कि इसकी प्रतिक्रिया दुनिया में महिलाअो पर अत्याचार की वृद्धि में हो सकती है।
‘ब्लैक एंड व्हाइट’ से अलग अगर हम श्वेत श्याम तस्वीरों की ही बात करें तो उनका असर और मैसेज आज भी अलग दिखता है। भले ही इस डिजीटल जमाने में ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ को गुजरे जमाने की बात माना जाता हो, लेकिन मूल रूप से फोटोग्राफी कला छाया और प्रकाश के इस रचनात्मक खेल के रूप में ही शुरू हुई थी। यहां तक िक चार दशक पहले तक भारत में कलर फोटोग्राफी एक विरल बात थी। लोग जीवन की यादें श्वेत श्याम तस्वीरों में ही कैद कर रखते आए थे। लेकिन उसमें अभद्रता के लिए शायद ही कोई जगह थी।
वास्तव में ( आज की पीढ़ी को ये प्रायोजित भी लग सकता है )ये तस्वीरें जीवन को सरल रेखा में परिभाषित करती थी न कि आज जैसी सोशल मीडिया पर मुंह आड़े-टेढ़े करके, देखने वाले को असहज करने की हद तक अनौपचारिक मुद्राअों वाली या फिर शील-अश्लील की लक्ष्मण रेखाअों को फन में डुबोती तस्वीरों की तरह होती थीं। कई फोटोग्राफरों का मानना है कि असल और चुनौतीपूर्ण फोटोग्राफी तो ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ ही है। कलर फोटोग्राफी तो छायाकारी का भटकाव ज्यादा है। ये बात अलग है कि आजकल कलर फोटो को भी डिजीटली ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ किया जाता है। बहुतों का आज भी मानना है िक जिंदगी के वास्तविक शेड तो ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ ही है। यह सुख-दुख की छाया है, जो अनुभव के थपेड़ों से प्रकाशित होती है। जबकि जिंदगी की रंगीनियां केवल सपनो की तरह हैं, जो वर्चुअल ज्यादा होती हैं। औरत की जिंदगी भी हकीकत में ‘ब्लैक’ ही होती है, जिसे स्त्री अपनी आस्था, समर्पण और अटूट संघर्ष से ‘व्हाइट’ में बदल देती है या ऐसा करने की जी-तोड़ कोशिश करती है। कभी मां, कभी पत्नी, कभी प्रेयसी तो कभी बहन का रूप धरकर।
ये सवाल मन में जरूर उठता है कि क्या ऐसे ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ आंदोलन क्या महिला के जीवन में उजाला भर सकते हैं? या यह भी सेलेब्रिटीज की शोशेबाजी है अथवा एक अलग किस्म का नया पूंजीवादी शगल है? क्योंकि भारत जैसे देश में करोड़ों महिलाएं रोजाना जिस तरह के संघर्षं से गुजरती है, उसमें खुद का और अपने परिवार का वजूद बचाना ही उनकी पहली प्राथमिकता है। इन स्त्रियों को लड़ने की ताकत तस्वीरों से ज्यादा संस्कारों से िमलती है। इनमें से ज्यादातर को तो पता भी नहीं है िक ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ में पोस्ट रही काली सफेद तस्वीरों का थ्रिल क्या है?
फिर भी प्रतीकात्मक ही सही महिलाअों के इस संघर्ष का अपना महत्व है। ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ तस्वीर की खूबी यही है कि जिंदगी की धूप-छांव को पूरी ताकत और सुंदरता के साथ अभिव्यक्त करती है। कलर की तुलना में श्वेत-श्याम तस्वीर मौन संवाद करती-सी ज्यादा लगती हैं। जानकारों का मानना है कि रंगों की दुनिया में काला और सफेद जितना पारदर्शी है, उतना कोई दूसरा रंग नहीं है। काला रंग अगर डरावना है तो साथ में लग्जरी, ताकत और आत्मविश्वास का प्रतीक भी है। जबकि सफेद रंग मासूमियत, पवित्रता और नवाचार का परिचायक है। वामपंथी विचारक टेड ग्रांट ने मार्के की बात कही है। उन्होंने कहा कि यदि आप लोगों की कलर फोटो खींचते हैं तो वास्तव में आप उनके कपड़ों की ही फोटो लेते हैं, लेकिन यदि आप ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ फोटो खींचते हैं तो लोगों की आत्मा की तस्वीर उतारतें हैं। आपकी क्या राय है?