— राजेश राठौर
लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव या फिर किसान रैली या सरकार का जश्न, भाजपा संगठन की तरफ से कमान विजेश लुणावत के हाथ में ही रहती थी। आयोजन के पहले बैठक में व्यवस्थाओं की कमान नेता एक सुर में लुणावत को देने की बात करते थे। शिवराजसिंह चौहान, नंदकुमारसिंह चौहान, प्रभात झा, राकेशसिंह प्रदेश अध्यक्ष बने, लुणावत हर बड़े काम के मुखिया रहते थे। दिल्ली से आने वाले बड़े नेता के साथ फोटो खिंचवाने या दिखावे में उनकी कभी दिलचस्पी नहीं रही।
पूर्व केंद्रीय मंत्री अनिल दवे के साथ उ”ौन में लगे वैचारिक साहित्य कुंभ में बढ़-चढ़कर काम किया। मैदान को समतल कराने से लेकर भूमिपूजन कराने से लेकर आखिरी तक का काम वो देखते थे। टेंट और साउंड से लेकर एक लाख की सभा हो या पांच लाख लोगों की, मंच के सामने किस जिले के कार्यकर्ता कहां बैठेंगे, ये सारे फैसले लुणावत के होते थे। मंच कैसा बनेगा, उसके बैकड्राप पर डिजाइन कैसी होगी, बड़े नेता कहां बैठेंगे, शायद ही ऐसा कोई सांसद-विधायक होगा, जो हर बड़े जलसे में लुणावत को ढूंढता हुआ नहीं मिलता। सारे के सारे नेता लुणावत को फोन लगाते थे कि हमको कहां बैठना है। पार्टी के नेताओं का उन पर इतना भरोसा था कि अमित शाह जैसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने भी लुणावत को खड़ा कर दिया जाता था कि ये सब संभाल लेंगे। अमित शाह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जब विधानसभा चुनाव को लेकर अमित शाह तीन दिन तक भोपाल में रहे, तो मीडिया से भी बात की। लुणावत ने देखते ही इस प्रतिनिधि से कहा कि तुम ऐसा कोई सवाल मत पूछ लेना कि गड़बड़ हो जाए। मीडिया मैनेजमेंट का काम मध्यप्रदेश भाजपा में लुणावत से अच्छा कोई नहीं कर पाया। रोजाना दोपहर बाद पत्रकारों से घिरे लुणावत कोई खबर की बात नहीं करते थे।
पत्रकारों के परिवार के हाल-चाल जानते थे, किसको क्या मदद मिल सकती है, इसके बारे में बताते थे। हंसी-मजाक और चाय-नाश्ते का दौर चलता रहता था। लुणावत के लिए कई पत्रकार खुद नाश्ता लेकर आते थे। सबसे बात करना, काम करने के बाद जवाब देना, कभी गुस्सा नहीं दिखाया। परदे के पीछे रहते थे। दिल्ली से आने वाले पत्रकार भी लुणावत से मिले बिना नहीं जाते थे। हमेशा सबको खुश रखने वाले लुणावत बीमार थे। इलाज चल रहा था, लेकिन कुछ दिन पहले कोरोना ने भी घेर लिया। उसी से वे नहीं लड़ पाए। कैंसर से तो वे जीत जाते। जब भी कोई उनसे तबीयत पूछने के लिए फोन लगाता था, तो वे अपनी बात करने की बजाय फोन लगाने वाले के समाचर पूछने लग जाते। लुणावत ने दो दशक से ज्यादा समय तक तमाम भाजपा नेताओं के दिलों पर राज किया।