कमलनाथ की जमीन को उनके ही औजारों से खोखला करती भाजपा

Shivani Rathore
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प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से पिछले चुनाव में भाजपा बस छिंदवाड़ा की सीट ही नहीं जीत पाई थी। इस बार प्रदेश संगठन और दिल्ली का सारा फोकस छिंदवाड़ा पर है तो उसकी वजह उस कसक को इस बार जीत की ठसक में बदलना है।अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं में जोश भरने के साथ भाजपा की रणनीति सिर्फ छिंदवाड़ा ही नहीं पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में हताशा पैदा करना भी है ताकि कांग्रेस मुक्त भारत का सपना 2024 के लोकसभा चुनाव परिणाम में ही पूरा कर लिया जाए।

छिंदवाड़ा में कमलनाथ की मजबूत जमीन को पोली करने के लिए भाजपा ने उनके विश्वस्तों को हथियार के रूप में उपयोग करने का अभियान युद्धस्तर पर चला रखा है।कमलनाथ का साथ छोड़ भाजपा के राजदार बन रहे इन नेताओं को पता है कि कमलनाथ को कैसे कमजोर किया जा सकता है।भाजपा की इस तगड़ी घेराबंदी के बाद भी यदि नकुलनाथ चुनाव जीत जाते हैं तो यह भाजपा नेतृत्व के लिए अपनी रणनीति पर नए सिरे से शोध करने का विषय होगा लेकिन यदि भाजपा छिंदवाड़ा फतह कर लेती है तो इंदिरा गांधी के तीसरे पुत्र माने जाने वाले कमलनाथ के पराभव से सोनिया गांधी को झटका लग सकता है किंतु राहुल गांधी शायद ही दुखी हों।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और डॉ यादव सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने छिंदवाड़ा की सभा में ही कहा था कि भाजपा में सम्मिलित होने के लिए हवाई जहाज और हेलीकॉप्टर वाले लोग बहुत आ रहे थे, लेकिन हमने उनके लिए दरवाजे बंद रखे।विजयवर्गीय ने जो पोल खोली उससे कमलनाथ को तो झटका नहीं लगा लेकिन राजदार-रणनीतिकार-विश्वस्त दीपक सक्सेना ने कांग्रेस के सभी पदों के साथ-छिंदवाड़ा विधायक प्रतिनिधि के पद से इस्तीफा देकर छिंदवाड़ा की जमीन पर पक्की नींव पर बने कमल सिंहासन की चूलें हिला दी हैं।
मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हुए महापौर विक्रम अहाके ने भी कमलनाथ के जहाज में एक बड़ा सुराख तो कर ही दिया है।महापौर विक्रम अहाके के साथ छिंदवाड़ा नगर निगम जल विभाग सभापति प्रमोद शर्मा, अनुसूचित जाति विभाग जिला अध्यक्ष सिद्धांत थनेसर सहित भाराछास के कई पूर्व पदाधिकारी भी उनके साथ भाजपा में शामिल हुए हैं.

पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना ने ‘गेट वन बॉय वन’ की तर्ज पर जिस दिन इस्तीफा दिया उसी शाम उनके पुत्र अजय ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर के चौंका दिया।वैसे इसकी स्क्रीप्ट तो तभी फायनल हो गई थी जब सीएम डॉ यादव, उनके सहयोगी मंत्री, भाजपा के वरिष्ठ नेता उनके यहां चाय पर ‘चर्चा’ के लिए सुबह ही पहुंच गए थे।कांग्रेस से नाराजी, अजय के भाजपा में जाने के बाद भी पूर्व मंत्री दीपक अंकल को भतीजे नकुल गद्दार नहीं कह सकते।ये बात अलग है कि अमरवाड़ा के विधायक कमलेश शाह को उन्होंने गद्दार और बिकाऊ तक कह दिया है।पिता का दीपक पर अटूट विश्वास इस कदर रहा कि एक तरह से छिंदवाड़ा के विधायक दीपक ही माने जाते थे।उनका ऐन चुनाव से पहले व्यक्तिगत कारणों से नाथ परिवार को असहाय करने वाले ऐसे निर्णय के बाद भी कमलनाथ समर्थकों के मन में यह संतोष तो है ही कि कमलनाथ से मिले संस्कारों का क्षरण नहीं हुआ है।

दीपक सक्सेना ने सभी पदों से इस्तीफा तो दिया लेकिन भाजपा ज्वाइन करने जैसा कदम फिलहाल नहीं उठाया है।यह बिल्कुल कमलनाथ के नक्शेकदम पर चलने जैसा ही है।कांग्रेस सीएम रहते जिन राज्यों में भाजपा को सत्ता मिली उनमें मप्र के सीएम कमलनाथ ही ऐसे रहे जिन पर राहुल गांधी की भृकुटी इस कदर चढ़ी कि कमलनाथ को पता भी नहीं चला और जीतू पटवारी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का फरमान जारी कर दिया गया। इतना आहत, अपमानित होने के बावजूद कमलनाथ ने गांधी परिवार के विरुद्ध बयानबाजी में संयम बरता किंतु उनकी छिंदवाड़ा सीट के विधायक प्रतिनिधि सक्सेना ने कांग्रेस नेतृत्व के खिलाफ और कमलनाथ के पक्ष में बयानबाजी की थी तब दिल्ली दरबार को समझ आ गया था कि दीपक किस की भाषा बोल रहे हैं।

कमलनाथ और दीपक सक्सेना के बीच 21 मार्च से जो समानता नजर आ रही है वह यह कि सक्सेना ने भाजपा ज्वाइन भले ही नहीं कि लेकिन उनके सारे तेवर कांग्रेस के खिलाफ नजर आए।कमलनाथ ने भी ऐसा ही किया था ‘एक्स’पर अपना बायो पंजे के स्थान पर भगवा ध्वज करने के साथ दिल्ली की गंगा में पवित्र होने के लिए घाट तक दौड़ भी लगा दी थी बस डुबकी लगाने की हिम्मत नहीं हुई।सक्सेना ने भले ही भाजपा ज्वाइन नहीं कि लेकिन दिल के टुकड़े को सौंपते हुए बंद कमरे में कहा होगा आत्मा का उपहार दे दिया है, शरीर का क्या है।बहुत संभव है कि पवित्र करने वाली नदी में डुबकी का विचार त्याग कर कमलनाथ भी कह आए हों ‘आत्मा’ से आप के साथ रहूंगा, शरीर का क्या है।

छिंदवाड़ा की जमीन इतनी पोली ही होती तो भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में ही फतह मिल जाती। ऐसा नहीं हुआ तो गौतम अडानी-कमलनाथ के औद्योगिक रिश्तों के साथ ही पूर्व सीएम से फ्रैंडशिप भी कारण रहे थे।प्रदेश की 29 सीटों में जिस छिंदवाड़ा को पिछली बार नहीं जीत पाए वही सीट इस बार मोशाजी की नाक का सवाल बन गई है। छिंदवाड़ा में यदि भाजपा सफल होती है तो यह पार्टी नेताओं की एकजुटता, बड़े नेताओं की सभा के साथ दीपक सक्सेना के विक्ट्री वाले इनपुट भी रहेंगे।

🔹तोड़फोड़ में माहिर विजयवर्गीय

छिंदवाड़ा कांग्रेस का अभेद्य गढ़ है इस मिथक को तोड़ने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा तो आए दिन दौरे, सभा, कार्यकर्ताओं से मुलाकात कर ही रहे हैं।तोड़फोड़ में माहिर कैलाश विजयवर्गीय को एक तरह से कमलनाथ की जमीन पोली करने का काम सौंप रखा है।जिस तरह कमलनाथ का साथ-हाथ छोड़कर उनके विश्वस्तों का मन भाजपा में जाने के लिए मचलने लगा है उसमें विजयवर्गीय की खास भूमिका है। रह रह कर कमलनाथ के खिलाफ आक्रामक बयान देना उनके इसी खेल का हिस्सा है।

🔹समझाने भी गए थे कमलनाथ लेकिन नकुलनाथ की नामांकन रैली में शामिल नहीं हुए सक्सेना

पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना की नाराजी से मचे हड़कंप का अंदाज ऐसे लगाया जा सकता है कि पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ खुद पांच विधायकों के साथ अचानक रोहना पहुंच गए।हालांकि कमल नाथ रोहना में केवल 5-10 मिनट ही रुके लेकिन इस दौरान दीपक सक्सेना खुद को संभाल भी नहीं पाए। कमल नाथ ने दीपक सक्सेना से कहा कि पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनोगे या सुदामा बने रहोगे, यह तुमको तय करना है। अपनी बात कहने के बाद कमलनाथ रवाना हो गए थे।नकुलनाथ की नामांकन रैली में सक्सेना शामिल होंगे यह आश्वासन तो उन्होंने दिया जरूर किंतु रैली में शामिल नहीं हुए थे।

🔹पहले जिनके लिए दीपक सक्सेना ने सीट छोड़ी अब उनका साथ ही छोड़ दिया…!

पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना की आज जो भी पहचान बनी है उसका श्रेय कमलनाथ को ही है। कमलनाथ के लिए उन्होंने अपनी सीट छोड़ी तब ही कमलनाथ विधानसभा का चुनाव लड़ कर मुख्यमंत्री बने थे।
कमलनाथ की अंगुली पकड़कर ही किसान के बेटे दीपक ने राजनीति के रास्ते पर चलना शुरु किया। पहले वे जिला सहकारी केंद्रीय बैंक, छिंदवाड़ा के अध्यक्ष के नियुक्त किए गए।बाद में उन्हें राज्य विधानमंडल के लिए कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में चुना गया। दिग्विजय सिंह मंत्रिमंडल में वे दो बार मंत्री रहे। 2003 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी उन्हें फिर से छिंदवाड़ा से मैदान में उतारा गया तो इसके पीछे दिग्गी-कमलनाथ की मित्रता भी कारण रहा। पूर्व मंत्री सक्सेना का कहना है ‘मुझे कमल नाथ से कोई दिक्कत नहीं है। मेरा बेटा भाजपा में शामिल होना चाहता था और मैंने उसे यह निर्णय न लेने के लिए मनाने की कोशिश की। लोग कह रहे थे कि पिता और पुत्र दो अलग-अलग पार्टियों में वोट मांग रहे हैं इसलिए मेरे पास कांग्रेस छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।’

*कीर्ति राणा*
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