नई दिल्ली, 30 मई: माइक्रोसॉफ्ट के सह-संस्थापक बिल गेट्स इन दिनों अपनी पत्नी मेलिंडा गेट्स से तलाक और एक महिला कर्मचारी के साथ उनके अवैध संबंध को लेकर विवादों पर घिरे हुए हैं। इन सब के बीच बिल गेट्स को लेकर भारत में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। ये रिपोर्ट ग्रेट गेम इंडिया नाम की मैगजीन में छापी गई है।
ग्रेट गेम इंडिया मैगजीन ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन (बीएमजीएफ) ने एक एक गैर-सरकारी संगठन को भारत में आदिवासी बच्चों पर एक वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल करने के लिए आर्थिक फंड दिए थे। लेकिन इस ट्रायल में हिस्सा लेने वाले बच्चों और उनके माता-पिता को इससे होने वाले खतरों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी।
उन्होंने यह टेस्ट बिना किसी घोषणा के किया। भारत में ये ट्रायल तेलंगाना के खम्मम में 2009 में 14,000 से अधिक आदिवासी लड़कियों पर किया गया। सभी लड़कियों की उम्र 10-14 साल के बीच की थी। इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद ट्विटर पर हैशटैग #ArrestBillGates टॉप ट्रेंड कर रहा है।
बिल गेट्स पर लगे कई गंभीर आरोप-
ग्रेट गेम इंडिया में पब्लिश हुई रिपोर्ट में कहा गया है कि वैक्सीन ट्रॉयल साल 2009 में खम्मम में हुई थी। उस वक्त खम्मम जिला आंध्र प्रदेश में आता था, जो 2014 के बाद तेलंगाना का हिस्सा है। खम्मम को भारत के सबसे गरीब और सबसे कम विकसित ग्रामीण क्षेत्रों में से एक कहा जाता है और यह कई जातीय जनजातीय समूहों का घर है।
ग्रेट गेम इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक खम्मम में 2009 में 14,000 से अधिक आदिवासी लड़कियों पर एचपीवी वैक्सीन के लिए क्लिनिकल ट्रायल किया गया था। सभी लड़कियों की उम्र 10 से 14 साल की थी। टेस्टिंग के दौरान सभी लड़कियों को गार्डासिल और ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन का इंजेक्शन लगाया गया था। इसके लिए फंड बिल गेट्स के फाउंडेशन ने जिस एनजीओ को फंड किया था, उसका नाम ‘PATH’ था।
ये एनजीओसिएटल में स्थित है और एक गैर-सरकारी संगठन है। ट्रायल में शामिल लड़कियों को किया गया गुमराह रिपोर्ट में कहा गया है, “इसमें शामिल लड़कियों को ट्रायल के जोखिमों के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी, यहां तक ये भी नहीं बताया गया था कि ये एक वैक्सीन ट्रायल है, बच्चों या उनके माता-पिता की सूचित सहमति के बिना ही ये पूरा ट्रायल किया गया है।
इस टेस्टिंग में सभी आदिवासी लड़कियां 10-14 वर्ष से कम उम्र की थीं और कम आय वाले परिवारों और मुख्य रूप से आदिवासी पृष्ठभूमि से संबंधित थीं। अधिकांश को भारत में बिल गेट्स एनजीओ द्वारा उनके माता-पिता की सहमति के बिना परीक्षण के लिए रोपित किया गया.
था। लड़कियों में दिखें ट्रायल के बाद साइड इफेक्ट-
मामला 2010 में सामने आया, जब दिल्ली स्थित एनजीओ समा ने पता लगाया कि परीक्षण गंभीर रूप से गलत हो गया था और कम से कई लड़कियों पर इसका साइड इफेक्ट हुआ था।
रिपोर्ट के अनुसार, “कई टीकाकरण वाली लड़कियां पेट दर्द, सिरदर्द, चक्कर आना और थकावट से पीड़ित रहती थीं। मासिक धर्म की शुरुआत में हैवी ब्लड फ्लो और पेट में जोरदार दर्द, चिड़चिड़ापन और टीकाकरण के बाद बेचैनी का भी लड़कियां शिकार हुई थीं। वैक्सीन प्रदाताओं द्वारा लड़कियों की किसी भी प्रकार की देखभाल नहीं की गई थी।”
इस पूरे प्रोजेक्ट को ”Path project” का नाम दिया गया था। हालांकि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इस प्रोजेक्ट को बंद करवा दिया था। इस मामले की भारतीय संसद में हेल्थ रिलेटेड स्थायी समिति ने जांच भी शुरू की थी।