छोटे किसानों का बड़ा सबेरा

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एन के त्रिपाठी

छोटे और सीमान्त किसानों के लिए राहत की बात है कि आज दोनों किसान विधेयक और तीन दिन पूर्व अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम संशोधन विधेयक संसद से पारित हो गये। इस विषय पर मैं वर्षों से लिखता रहा हूँ जिनमें से दो लेखों के कुछ भाग मैं उद्धृत करूँगा।आज यह कह सकता हूँ कि छोटे और सीमान्त किसानों के लिए अब भविष्य में अनेक संभावनाएँ हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विपक्ष ने सब कुछ समझते हुए केवल विरोध के लिए हंगामा किया है। नए क़ानून से भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं आएगा क्योंकि कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था के केवल 14% तक सीमित है। फिर भी नई व्यवस्था से 85% किसानों को लाभ होगा जो भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा है।किसानों के लिए अभी भी कुछ और कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

दिनांक 24 मई, 2020 को मैंने लिखा था :-
“ शहरी बुद्धिजीवियों और मीडिया को किसान और उनकी समस्याओं से कोई विशेष सरोकार नहीं रहता है। राजनीति वालों को किसान केवल एक वोट बैंक दिखाई पड़ते हैं। ये सभी लोग केवल कर्ज़ माफ़ी या किसानों की आत्महत्याओं के निरर्थक वाद विवाद में यदा कदा लगे दिखाई पड़ जाते हैं।दर्जनों कर्ज़ माफी और सैकड़ों आत्महत्याओं के बावजूद किसान आज भी वहीं खड़ा है।
विगत अनेक वर्षों से किसानों के हित में मैं यह कहता आया हूँ कि कृषि उपज को खुले बाज़ार में बेचने के लिए किसान को स्वतंत्र होना चाहिए। इससे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सकेगा और शहरी उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर खाद्य पदार्थ मिल सकेंगे। इसमें केवल नुक़सान कुछ मंडी के व्यापारियों का होगा जो किसानों का क़ानूनन शोषण करते हैं।भारत और विशेष रूप से मध्य प्रदेश में पिछले कुछ वर्षों में किसान आंदोलन हुए है। उन आंदोलनों पर अपनी टीप देते हुए मैंने कृषि सुधारों पर बल दिया था।
मोदी सरकार ने घोषणा की है कि मंडी एक्ट ( Agriculture Produce Marketing Committee Act) तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम ( Essential Commodities Act) में परिवर्तन किए जाएंगे।लंबे समय से यह मांग की जा रही थी कि मंडी एक्ट में मूलभूत परिवर्तन कर किसानों को उनकी उपज को केवल मंडी में बेचने के लिए बाध्य करने का प्रावधान हटा दिया जाए।यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि कृषि उपज में सब्ज़ी, फल, फूल, पशुधन और मुर्गीपालन भी आता है।इन सभी की अपनी-अपनी मंडिया है। मंडी एक्ट ( जिसे बहुत कम लोग पढ़ते हैं) में संशोधन करके मंडी द्वारा क्रय करने के एकाधिकार को समाप्त कर दिया जाएगा। निजी कंपनियां भी अब किसान से सीधे उसकी उपज क्रय कर सकेंगीं। निजी कंपनी किसान को उसकी फ़सल में आर्थिक सहायता भी स्वेच्छा से दे सकेंगी जिससे बाद में किसान से उन्हें अधिक उपज क्रय करने में सुविधा हो सके। निजी उपभोक्ता भी सीधे किसानों से उसकी उपज क्रय कर सकेगा। कुछ वर्षों पूर्व eNAM ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के द्वारा पूरे भारत की मंडियों के रेट पता करने की सुविधा प्रारंभ की गई थी, परन्तु यह अभी तक 10% भी लागू नहीं हो पाई है।इसे लागू करने के साथ ही कृषि उपज क्रय करने के लिए भी आवश्यक अधोसंरचना तैयार करने में भारत सरकार को भारी व्यय करना चाहिए।
आवश्यक वस्तु अधिनियम 60 एवं 70 के दशक में प्रासंगिक था जब भारत में अधिकांश खाद्य पदार्थों की भारी कमी थी।सरकार को खाद्य पदार्थ के संग्रहण और वितरण पर नियंत्रण करने के लिए व्यापक अधिकार दिए गए थे।इन नियमों का उल्लंघन करने पर व्यापारियों को कड़े दंड का प्रावधान था।भारत सरकार ने अब घोषणा की है कि इस अधिनियम में परिवर्तन किया जायेगा ।यह बहुत उत्साहवर्धक नहीं है।मेरे मत से परिवर्तन के स्थान पर यह पूरा अधिनियम ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए।
भारत आज भी कृषि प्रधान देश है क्योंकि इसकी आधी जनता ( 2020 में 58%) कृषि पर आधारित है।295.67 मीट्रिक टन अनाज उत्पादन करने वाले भारत के आधे किसानों के पास केवल औसतन 1.25 एकड़ भूमि है तथा गाँवों में एक तिहाई लोग भूमिहीन हैं।छोटी काश्त वाले लोग मिलकर खेती नहीं करसकते हैं क्योंकि हमारे भूमि नियम बहुत पुराने हैं। ज़मीन की रजिस्ट्री के कागज़ का कोई क़ानूनी महत्व नहीं है। भूमि का डिजिटाइजेशन करके ज़मीन की रजिस्ट्री को ज़मीन पर अधिकार का निर्विवाद अभिलेख माना जाना चाहिये जिससे बिना किसी जाँच के इसे बैंक इत्यादि में प्रयोग किया जा सके। प्रामाणिक रजिस्ट्री से ज़मीन के लाखों मुक़दमे न्यायालय से समाप्त हो सकते है और पटवारी राज समाप्त किया जा सकता है। ज़मीन को सुविधाजनक तरीक़े से बिना किसी क़ानूनी अड़चन के किराये पर देने और लेने की सुविधा होनी चाहिए।इनअतिरिक्त सुधारों सेछोटे किसानों का सशक्तिकरण हो सकेगा और छोटे किसान मिलकर खेती करने का साहस कर सकेंगे।इससे उत्पादकता में भारी वृद्धि हो सकेगी तथा इससे भारत कृषि उपज के एक बड़े निर्यातक के रूप में उभर सकता है।