40 साल बाद भोपाल को मिली जहर से आजादी, 377 टन जहरीले कचरे को निपटान के लिए लाया गया पीथमपुर

srashti
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चार दशकों के लंबे इंतजार के बाद, भोपाल गैस त्रासदी के जहरीले अवशेषों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने की प्रक्रिया शुरू हुई। यूनियन कार्बाइड की पुरानी फैक्ट्री से 337 टन जहरीला कचरा विशेषज्ञों की निगरानी में पीथमपुर भेजा गया। कचरे को शिफ्ट करने के लिए 250 किलोमीटर लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया गया। 12 विशेष कंटेनरों में इसे ले जाया गया। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के निर्देश पर कचरे को नष्ट करने की योजना बनाई गई थी।

हालांकि, पीथमपुर में जहरीले कचरे को लेकर स्थानीय लोगों ने विरोध जताया। उनका मानना है कि इस कदम से उनके इलाके में स्वास्थ्य और पर्यावरणीय खतरे बढ़ सकते हैं।

2-3 दिसंबर 1984 की काली रात

भोपाल गैस त्रासदी को इतिहास में एक ऐसी आपदा के रूप में याद किया जाता है जिसने न केवल हजारों जानें लीं, बल्कि पीढ़ियों पर अपना असर छोड़ा। 2-3 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस लीक हो गई। इस त्रासदी में 5,000 से अधिक लोग मारे गए, जबकि 5 लाख से ज्यादा लोग गैस की चपेट में आ गए।
गैस का प्रभाव 40 किलोमीटर तक फैला, और शहर की एक चौथाई आबादी गैस चेंबर में तब्दील हो गई। बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर सबसे ज्यादा पड़ा।

त्रासदी के भयानक नतीजे

इस त्रासदी को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी के बाद मानवता के खिलाफ सबसे बड़ा हादसा माना जाता है। हालात इतने खराब हो गए कि शवों का अंतिम संस्कार और दफनाने के लिए जगह तक नहीं बची। श्मशानों में एक चिता पर 10-15 शव जलाए गए। कब्रिस्तानों में पुरानी कब्रें खोदकर नई लाशें दफनाई गईं।

त्रासदी के बाद हजारों लोग भोपाल छोड़कर दूरस्थ स्थानों पर चले गए। कई दिनों तक भोपाल में सड़कों पर जानवरों और मनुष्यों के शव बिखरे रहे। इसके कारण महामारी का खतरा भी बढ़ गया। प्रशासन ने अन्य शहरों से सफाई कर्मचारियों को बुलाकर सफाई अभियान चलाया।

पीढ़ियों तक छाया रहा संकट

गैस त्रासदी ने न केवल तत्कालीन पीढ़ी को प्रभावित किया, बल्कि इसका असर पीढ़ियों तक देखने को मिला। ICMR की रिपोर्ट के अनुसार, यहां के लोगों के खून में जहरीली गैसों के अंश मिले। इससे बच्चों में सांस की समस्या, विकलांगता, और गंभीर बीमारियां देखी गईं।

गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों की जीवन अवधि में कमी आई। रिसर्च में पाया गया कि 21 वर्ष से अधिक उम्र के गैस पीड़ितों की मृत्यु दर अधिक थी। 30 वर्षों में 6,000 से अधिक मौतें दर्ज की गईं।