अजय बोकिल
जहां एक तरफ राजनीति के मैदान में देश की एकमात्र महिला मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी पश्चिम बंगाल में अपनी सत्ता बचाने की जी- तोड़ कोशिश में लगी हैं, वहीं दूसरी तरफ खेल के मैदान में भारत की दो महिला खिलाडि़यों ने कामयाबी का ऐसा परचम फहराया है, जिस पर हर भारतीय को गर्व होना चाहिए। सफलता की यह पताका हमारी महिला खिलाड़ी अब उन खेलों में भी फहरा रही हैं, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहचान नहीं के बराबर रही है।
इस दृष्टि से भारत में अभी भी बहुत कम खेले जाने वाले तलवारबाजी के खेल में तमिलनाडु की सी.ए. भवानी देवी को अोलिम्पिक का टिकट मिलना बड़ी बात है। इस खबर के एक दिन पहले भारत की स्टार क्रिकेटर िमताली राज वन-डे क्रिकेट में 7 हजार रन पूरे करने वाली पहली भारतीय महिला क्रिकेट खिलाड़ी बन गई हैं। ये उपलब्धियां इसलिए रेखांकित करने लायक हैं कि तमाम बाधाअों और दुराग्रहों के बाद भी खेल सहित िवभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं अपनी जीवटता और जुझारूपन के साथ न सिर्फ आगे बढ़ रही हैं बल्कि पुरूषों के वर्चस्व को तगड़ी चुनौती भी दे रही हैं।
जिन खेलो का जिक्र यहां किया गया है, महिलाअो की दृष्टि से भारत में इन खेलों की शुरूआत लगभग एक ही समय में हुई थी। तलवार को वीरों की पहचान तो सदियों से माना जाता रहा है। हमारे देश में रानी झांसी और रानी दुर्गावती जैसी महान महिला योद्धार भी कुशल तलवारबाज थीं, लेकिन युद्ध से इतर एक खेल के रूप में तलवारबाजी का इतिहास भारत में बहुत पुराना नहीं है। देश में तलवारबाजी ( फेंसिंग) की व्यवस्थित शुरूआत 1974 में हुई, जब ‘फेंसिंग एसोसिएशन आॅफ इंडिया’ की स्थापना हुई। तब तक हम तलवार को दशहरे पर पूजने वाले शस्त्र और तलवारबाजी को मार्शल आर्ट के रूप में जानते थे।
सिखों के बीच तलवार की गतकेबाजी बहुत लोकप्रिय है। फिर भी आधुनिक खेल के रूप में उसकी पहचान नहीं थी। अलबत्ता हम केवल अोलिम्पिक और अंतरराष्ट्रीय स्पर्द्धाेअों में चेहरे पर पूरा मास्क लगाए तलवारबाजों को आपस में लड़ते देखा करते थे। यूं तलवार एक जानलेवा और आक्रामक हथियार है, लेकिन खेल के रूप में यह खिलाड़ी की चपलता, प्रतिद्वंद्वी को हराने और इसे चलाने के कौशल के रूप में जाना जाता है। एक युद्धक कला के रूप में आधुननिक तलवारबाजी का विकास स्पेन, इटली और फ्रांस में हुआ। पारंपरिक युद्ध कला होने के कारण पहले अोलिम्पिक में ही इस खेल को शामिल किया गया।
इधर भारत में फेंसिंग एसोसिएशन की स्थापना के बाद राज्यों में भी तलवारबाजी को प्रोत्साहन मिला। शुरू में पुरूष खिलाड़ी इसकी तरफ आकर्षित हुए। फिर महिुलाअोंने भी इसमें रूचि लेना शुरू किया। हमारी महिला खिलाड़ी कई अंतरराष्ट्रीय फेंसिंग प्रतियोगिताअोंमें मेडल जीतती रही हैं।
खेल के रूप में तलवारबाजी तीन श्रेणियों में होती है, जो मुख्यी रूप से तलवार के वजन, आकार और आक्रामकता के हिसाब से तय होती हैं। भवानी देवी सेबर श्रेणी की फेंसिंग प्लेयर है। 27 वर्षीय भवानी देवी का पूरा नाम चडलवडा आनंदा सुंदररमण भवानी देवी है। चेन्नई के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मी पली भवानी देवी को ‘भवानी’ बनाने में उनकी मां का बड़ा हाथ रहा है। उन्होंने अपने गहने गिरवी रखकर भी भवानी को इस खेल में आगे बढ़ाया, पढ़ाया।
शायद इसी का नतीजा है कि भवानी देवी तलवारबाजी के मामले में देवी भवानी की तरह ही हैं ( कहते हैं कि देवी तुलजा भवानी ने स्वयं महानायक शिवाजी को दिव्य तलवार प्रदान की थी)। यहां तो भवानी देवी खुद ही पेशेवर तलवारबाज हैं। यूं भवानी के खाते में पहले भी कई उपलब्धियां हैं, लेकिन सबसे बड़ी उपलब्धिल इस साल होने वाले टोक्यो अोलिम्पिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय फेंसर बनना है।
भवानी ने 2017 में आइसलैंड में पहली बार कोई इंटरनेशनल टूर्नामेंट जीता था। वे इंटरनेशनल टूर्नामेंट में तलवारबाजी (फेंसिंग) में मेडल जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी भी थीं। भवानी फेंसिंग की 8 बार राष्ट्रीय विजेता रह चुकी हैं। फिलहाल उनकी विश्व में रैंकिंग 45 वीं है। भवानीदेवी ने 17 साल पहले तलवारबाजी में हाथ आजमाना शुरू किया था।
अब मिताली राज की बात। िमताली भारतीय महिला क्रिकेट का जाना पहचाना नाम है, लेकिन हाल में उन्होने एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है। पहला तो क्रिकेट के तीनो फाॅर्मेट में 10 हजार रन बनाने तथा दूसरा वन-डे क्रिकेट में 7 हजार रन पूरे करने का कीर्तिमान स्थापित करना। मिताली ने ये दोनो रिकाॅर्ड पिछले हफ्तेन ही बनाए हैं।
यह रिकाॅर्ड बनाने वाली वो भारत की पहली और दुनिया की दूसरी महिला क्रिकेटर बन गई हैं। अड़तीस वर्षीय मिताली का अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में बहुत लंबा कॅरियर है। इसलिए उन्हें ‘लेडी सचिन तेंडुलकर’ भी कहा जाता है। अर्जुन अवाॅर्ड और पद्मश्री से सम्मानित मिताली के खाते में उपलब्धियों का अंबार है। उन पर शाबाश मितु नामक बायोपिक भी बन रही है, जिसमें मिताली की भूमिका मशहूर अभिनेत्री तापसी पन्नू कर रही हैं। मिताली भारतीय महिला क्रिकेटर के रूप में वो अपनी मिसाल आप बन गई हैं। यह सिलसिला अभी थमा नहीं है।
गौरतलब है कि भारत में महिला क्रिकेट की शुरूआत भी फेंसिंग के दो साल बाद यानी 1976 में शुरू हुई। मात्र दो ही साल बाद महिला वन डे विश्व कप चैम्पियनशिप में भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने भाग लिया था। हालांकि भारत में शुरू में महिला क्रिकेट को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता था। लेकिन आज मिताली जैसी खिलाडि़यो ने इसे भी सम्मानजनक स्थान दिलवा दिया है और वो स्वयं भी युवा महिला क्रिकेटरों की आदर्श बन गई हैं।
अफसोस की बात इतनी है कि राजनीति और उसकी रची सच्ची झूठी दुनिया में हम इतने रमे रहते हैं कि इससे इतर उपलब्धिमयों की अोर देश का ध्यान कम ही जाता है। हमे या तो उसकी अहमियत पता नहीं होती या हम उसे जानना भी नहीं चाहते। बावजूद इस रवैये के हमारी महिला खिलाड़ी सफलता के शिखरों को लगातार सर करती जा रही हैं। संयोग से मिताली और भवानी देवी दोनो ही तमिल हैं। मिताली का अर्थ होता है प्यार और दोस्ती के बीच का बंधन। मिताली राज तो लगता है क्रिकेट के आसमान में उड़ते उड़ते इस बंधन के भी पार पहुंच गई हैं। जबकि अोलिम्पिक में भवानी की तलवार क्या जौहर दिखाती है, इसका इंतजार सभी को है।