लिपटे पड़े है बड़े बड़े भुजंग
चंदन लड़ रहा जीवन की जंग
महकना महकाना गलत हो गया
विषधर नही चुके दिखाने से रंग
नेकी का सिला यहाँ बदी मिलता
आस्तीनों में रह कर सांप पलता
किस पर करे किस पर ना करे
जिस पर हो यकीन वही काटता
देखे बहुत दुनिया के बदलते रंग
जो कहता है वो नही चलता संग
बहुत मीठी लगती ठाकुर सुहाई
कर जाता कोई मीठा सपना भंग
होश आने तक दुनिया लूट गई
अपनो की बस्ती पीछे छूट गई
लूटने वाले गैर नही अपने ही थे
विश्वास की डोर ही अब टूट गई