प्रथम दिन ‘मैत्री दिवस’ पर पर्युषण के महापर्व का आगाज: अहिंसा, दया, दान का दिया सन्देश

RishabhNamdev
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ऋषभरत्नविजय ने पर्युषण की महत्ता बताते हुए बोला कि, इस पर्व के समान कोई पर्व नहीं है क्योंकि यह कर्म के मर्म को भेदने वाला पर्व है। पर्युषण शब्द पर्र (चारों ओर) एवं यूषण (जयना) से मिलकर बना है जिसका अर्थ है सभी तरह की जयना करना। यह पर्व दान धर्म की आराधना, शील का पालन, तप धर्म का सेवन एवं भाव धर्म से जुड़ा है अतः चारों धर्म की आराधना एवं उपासना की जायेगी। यह अलौकिक धर्म है जो दर्शन, दान, दया, तपस्या, आत्मा रोशन एवं कर्म मुक्ति का कारण है।

जैसे शरीर एवं घर की सफाई पाँच पक्ष दैनिक, साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक एवं वार्षिक में होती है। इसी प्रकार से पापों की भी सफाई पाँच प्रतिक्रमण (राई,देवसी,पक्खी,चौमासी एवं संवत्सरी) से की जाति है जिसमें कम से कम वार्षिक सफाई पर्युषण पर्व के आठ दिनों में या संवत्सरी पर की जाती है। पर्युषण पर्व पर पाँच कर्तव्यों का विधान बताया गया है।

1. अमारी प्रवर्तन – अर्थात नहीं मारी मतलब अहिंसा या हिंसा न करना एवं जीवों की रक्षा करना। जिन शासन का आधार अहिंसा ही है क्योंकि बिना अहिंसा के सारे धर्म विफल हैं। प्राणियों पर दया करना ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। ‘जियो और जीने दो’ से भी ऊपर उठकर धर्म करना है अर्थात मर कर भी दूसरों को जिलाओ। दया भाव व्यक्ति को भगवान बना सकता है जैसे शांतिनाथ प्रभु जिन्होंने पिछले भव में एक कबूतर की रक्षा के लिये अपना पूरा शरीर न्योछावर कर दिया था,
मूनिसुव्रतस्वामी ने एक अश्व की रक्षा के लिये एक रात में 150 किलोमीटर का विहार किया। महावीर स्वामी चंडकौशिक सर्प की रक्षा के लिये 15 दिन तक उसके बिल पर खड़े रहे। आजकल जितने भी उपद्रव, विद्रोह एवं प्रकोप आ रहे हैं उनके पीछे हिंसा एक कारण है जैसे (1) पृथ्वीकाय जीवों की विराधना (भू खनन आदि ) से भूकंप का आना, (2) अपकाय जीवों की विराधना (पानी का दुरुपयोग) बाढ़/सुनामी का आना, (3) तेऊकाय जीवों की विराधना (अग्नि का दुरुपयोग) बिजली का फिज़ूल/अनावश्यक उपयोग से अग्निकांड होना, (4) वायुकाय जीवों की विराधना (हवा का दुरुपयोग) पंखे एवं ऐसी का अनावश्यक उपयोग, (5) वनस्पतिकाय जीवों की विराधना (जंगल का विनाश) हरी घास पर चलना एक गर्भवती स्त्री के पेट पर पैर रखने की समान है जिसका दुष्प्रभाव अकाल है। दवाई आदि से घर की चींटी, मच्छर, मक्खी आदि को मारना बेइंद्रिय/तेंद्रिय/चौइंद्रिय जीव की विराधना है जिनको जयना पूर्वक बचाना चाहिये। संसार के कत्लखानों को बंद करने से पहले अपने घर के कत्लखाने को बंद करो। काटो,काटना,मारो आदि शब्दों का उपयोग न करो जिसमें हिंसा का दोष लगता है।
2. साधर्मिक भक्ति – साधर्मिक हैं तो जिन शासन है। परायों की हर संभव सहायता करना ही उत्तम धर्म है। इसको अधिक से अधिक मजबूत बनाना होगा।
3. क्षमायापना – क्षमापना सर्वजन की, वास्तविकता में, हृदय से, शर्त हीन एवं चिरंजीवी होना चाहिये। अहिंसा, साधर्मिक भक्ति एवं क्षमापना मैत्री से संभव है।

मुनिवर का नीति वाक्य
“मैत्री का जहाँ आसन, हिंसा का वहाँ से निर्वासन”
राजेश जैन युवा ने बताया की आज विशाल पंडाल में हजार पुरुष एवं महिलाओं ने पर्युषण महापर्व के प्रवचनों का आनंद लिया। गुरु भगवंतों के लिये विशेष रूप से निर्मित सुधर्मा प्रवचन पीठ का अर्पण लाभार्थी परिवार नवरतनचंद विनोदचंद कोठारी, बनारस साड़ी वालों ने किया। इस अवसर पर ट्रस्टी दिलीप शाह, संदीप पोरवाल, विरेन्द्र बम, मुकेश पोरवाल आदि भी उपस्थित थे।