बमोरी: दलबदल कर डटे दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों के बीच कड़ा मुकाबला

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दिनेश निगम ‘त्यागी’

वैसे तो सभी 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव कांटे की लड़ाई में फंसे हैं लेकिन जैसा रोचक मुकाबला सागर जिले की सुरखी एवं इंदौर की सांवेर सीट में है, वैसा ही चंबल-ग्वालियर अंचल में गुना जिले की बमोरी सीट में देखने को मिल रहा है। यहां दो पुराने प्रतिद्वंद्वियों महेंद्र सिंह सिसोदिया एवं कन्हैयालाल अग्रवाल के बीच कड़ी टक्कर है। सिसोदिया इस समय भाजपा सरकार में मंत्री हैं जबकि इससे पहले अग्रवाल भी भाजपा सरकार में मंत्री रहे चुके हैं। दोनों दलबदल कर मैदान में एक दूसरे के सामने हैं। सिसोदिया ने कांग्रेस से बगावत की तो अग्रवाल ने भाजपा से। खास बात यह है कि बमोरी सीट कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए ज्योतिरादित्य सिंधिया की प्रतिष्ठा से जुड़ी है तो कांग्रेस के दिग्विजय सिंह का भी यहां बहुत कुछ दांव पर है। बमोरी सिंधिया के गुना संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है और दिग्विजय के प्रभाव क्षेत्र का भी। इसलिए भी यहां लड़ाई रोचक है।

मिजाज: गेमचेंजर रही तीसरी ताकत

गुना जिले की बमोरी विधानसभा सीट को लेकर आमतौर पर राजनीतिक पंडितों के अनुमान फेल होते रहे हैं। परिसीमन में नई सीट बनी बमोरी में पहला चुनाव 2008 में हुआ। भाजपा ने जीत दर्ज की। फिर भाजपा की जीत की भविष्यवाणी की जा रही थी लेकिन 2013 और 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने बाजी मार ली। खास बात यह है कि तीनों चुनावों में तीसरी ताकत गेमचेंजर के तौर पर नजर आई। 2018 में जब भाजपा ने पूर्व मंत्री कन्हैयालाल अग्रवाल का टिकट काटा तो वे निर्दलीय मैदान में उतर गए। 28 हजार से ज्यादा वोट लेकर उन्होंने हार-जीत में निर्णायक भूमिका अदा कर दी। एक बार फिर बमोरी चौंकाने वाला नतीजा ला दे तो अचरज नहीं करना चाहिए।

क्षेत्र में 25 फीसदी आदिवासी मतदाता

लगभग 1.95 लाख मतदाताओं वाली बमोरी सीट में आदिवासी वर्ग के ही वोटरों की तादाद लगभग 25 फीसदी अर्थात 50 हजार के आसपास है। ये मतदाता हमेशा चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते आ रहे हैं। जानकारों का मानना है कि यह वर्ग अब तक कांग्रेस के साथ जुड़ा रहा है। इसीलिए यहां कांग्रेस लगातार दो बार से चुनाव जीत रही है। इनके अलावा यहां 28 से 30 हजार किरार-धाकड़, 18-19 हजार यादव मतदाता हैं। दलितों की तादाद भी अच्छी खासी है। सिसोदिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद अपने परंपरागत मतदाताओं को जोड़कर रखना कांग्रेस के लिए चुनौती है।

भाजपा की ताकत और कमजोरी

हर चुनाव में भाजपा की सबसे बड़ी ताकत संगठन रहता है। बमोरी में भी है। खास बात यह है कि महेंद्र सिंह सिसोदिया यहां विधानसभा का चुनाव जीते लेकिन लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र से ज्योतिरादित्य को हार का सामना करना पड़ा था। साफ है कि सिसोदिया भले सिंधिया समर्थक हैं लेकिन उनका असर यहां कम है। सिसोदिया की ताकत उनकी खुद की टीम है। सिसोदिया को यहां जितना भी वोट मिलेगा, वह नरेंद्र मोदी एवं शिवराज सिंह चौहान के नाम पर। कमजोरी यह है कि सिसोदिया ने कांग्रेस सरकार में मंत्री रहते भाजपाईयों से बदला बहुत लिया। संघ के स्वयंसेवकों तक पर अटैक हुआ। इसकी वजह से संगठन उनके साथ ईमानदारी से नहीं है। उनका कांग्रेस से आए नेताओं के साथ तालमेल भी नहीं बन पा रहा है।

कांग्रेस की ताकत और कमजोरी

कांग्रेस की सबसे बड़ी ताकत भाजपा से आए उसके प्रत्याशी कन्हैयालाल अग्रवाल हैं। उनकी इमेज क्षेत्र में ईमानदार नेता की है। पिछले चुनाव में वे निर्दलीय लड़े तब भी लगभग 28 हजार वोट मिले, सिर्फ खुद की ताकत पर। इस बार उनके साथ कांग्रेस भी है। दिग्विजय सिंह के विधायक बेटे जयवर्धन सिंह उनके लिए काम कर रहे हैं। राघौगढ़ का कुछ क्षेत्र बमोरी में आता है, इसलिए जयवर्धन को लोग पसंद कर रहे हैं। कन्हैया के लिए सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वे शुरू से कांग्रेस के विरोध की राजनीति करते रहे हैं। इसकी वजह से कइ जगह कांग्रेसी उनके साथ असहज महसूस करते हैं। इसका कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ सकता है। सिसोदिया की पार्टी से गद्दारी इसकी भरपाई कर सकती है।

भाजपा: सिसोदिया को लेकर कार्यकर्ता असहज

प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा के सामने तमाम चुनौतियां हैं। सबसे बड़ी चुनौती खुद पूर्व मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया हैं, जो कांग्रेस से पलायन कर भाजपा में आए हैं। मूल भाजपाई इन्हें स्वीकार करने में खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। भाजपा के कुछ नेता-कार्यकर्ता अब तक बगावती तेवर अख्तियार किए हैं। उनका तर्क है कि हम वर्षों से दरी बिछा रहे हैं। भाजपा के डंडे-झंडे उठा रहे हैं और मौका मिल गया कांग्रेस के बागी को। भाजपा में दावेदारों की संख्या आधा दर्जन से ज्यादा रही है। ये असंतुष्ट हैं, इसलिए बड़े स्तर पर भितरघात हो सकता है। इसे थामना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

कांग्रेस: साथ छोड़ गए पार्टी नेताओं से नुकसान

भाजपा कार्यकर्ताओं की नाराजगी और दिग्विजय सिंह का प्रभाव क्षेत्र होने के कारण कांग्रेस के सामने चुनौतियां कम दिखाई पड़ती हैं। कांग्रेस के टिकट पर दो बार से जीत रहे विधायक महेंद्र सिंह सिसोदिया ने पार्टी छोड़ी है, इसलिए इसका नुकसान कांग्रेस को उठाना होगा। सिसोदिया क्षेत्र के कांग्रेस कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़े रहे हैं। बड़ी तादाद में कांग्रेस नेता उनके साथ पार्टी छोड़ गए हैं। इसका नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। हालांकि कांग्रेस सभी को साथ लेने की कोशिश कर रही है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है। हालांकि क्षेत्र के कांग्रेसियों को दिग्विजय सिंह के मैनेजमेंट पर पूरा भरोसा है। पूरा चुनाव उनके प्रबंधन में ही लड़ा जा रहा है। उनके विधायक बेटे जयवर्धन खुद सारे चुनावी सूत्र अपने हाथ में लिए हुए हैं।

पंद्रह वर्ष बनाम पंद्रह माह बना मुद्दा

बमोरी विधानसभा क्षेत्र के उप चुनाव में पहले मुख्य मुद्दा विधायक के कांग्रेस से बगावत करने का था। अब इसका स्थान भाजपा सरकार के पंद्रह साल बनाम कांग्रेस सरकार के पंद्रह माह ने ले लिया है। बमोरी मजदूर वर्ग बहुल इलाका है। यहां जनकल्याण की तमाम छोटी-बड़ी योजनाओं का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो पाता। जरूरतों को पूरा करने के लिए लोग अपने जनप्रतिनिधि के इर्द-गिर्द डेरा डाले रहते हैं। इसके अलावा फसल बीमा योजना, किसान कर्ज माफी योजना, संबल योजना, पहुंच मार्ग और बिजली पानी की समस्या आदि यथावत इस बार भी मुद्दे होंगे।