राजेश राठौर
सहकारिता में सुभाष यादव ने जगह बनाई थी, तो दूसरा नाम रामेश्वर पटेल का था। मालवा-निमाड़ के सहकारिता के बड़े नेता थे। इंदौर प्रीमियर को-ऑपरेटिव बैंक में रोज चार-पांच घंटे बैठने के दौरान हर किसान की तकलीफ और उसकी मदद करना, कर्जा लेने में कोई परेशानी ना हो ऐसी व्यवस्था करना, रामेश्वर पटेल की दिनचर्या थी। लंबे अरसे तक पटेल लोगों से महारानी रोड वाले इंदौर प्रीमियर कोआपरेटिव बैंक के दफ्तर में मिलते रहे।
बाबूजी कहते थे कि जो नेता कार्यकर्ताओं से दूरी बना लेगा वह फिर कभी आगे नहीं बढ़ सकता। उनके पास विरोधी नेताओं के साथी भी आते थे। वह कहते थे कि कोई बात नहीं किसी का तो काम करता है। देपालपुर में निर्भय सिंह पटेल के सामने वे कई बार चुनाव लड़े, जीते और हारे, लेकिन उनके परिवार से उनके संबंध कभी खराब नहीं रहे। बाबूजी ने हमेशा निष्ठा दिखाई। वे मानते थे कि उनके नेता सिर्फ अर्जुन सिंह हैं।
अर्जुन सिंह को कहने की जरूरत नहीं पड़ी और जैसे ही अर्जुन सिंह ने कांग्रेस छोड़ी थोड़ी देर में ही पटेल ने भी कांग्रेसी छोड़ दी। बाद में तिवारी कांग्रेस चलाई। कांग्रेस के सच्चे सिपाही थे, उनको संगठन ने जब जो काम सौंपा, किया। छोटे लड़के सत्यनारायण पटेल कोज्योति सिंधिया के साथ भाजपा में जाने से रोका और कहा कि हम कभी कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे। दिग्विजय सिंह इज्जत करते थे। ग्रामीण क्षेत्र और किसानों का जब भी कोई आता रामेश्वर पटेल से वो बात करते थे।
सत्यनारायण पटेल जब सिंधिया के साथ हो गए थे, तब भी रामेश्वर पटेल से दिग्विजय सिंह हमेशा मिलते रहे। सुबह घर से निकलने से लेकर वापस लौटने तक कितने कार्यकर्ताओं की मदद की यह नेता देखते थे। पटेल ने शिक्षा में भी काफी काम किया। उनसे पहली मुलाकात अप्रैल 1993 में हुई थी। कहा कि राजनीति में टांग नहीं अड़ाता। शहर कांग्रेस के बारे में मुझसे मत पूछो मैं ग्रामीण का नेता हूं, मुझसे वहीं की बात करो। उनसे कहा कि आप बड़े नेता हैं, तो कहने लगे मुझे मेरी हैसियत पता है। मैं बड़ा नेता हो सकता हूं लेकिन कांग्रेस के किसी भी विवादास्पद मामले में में अपनी प्रतिक्रिया नहीं देता हूं। कहते थे नेताओं के झगड़े में कभी नहीं रहा। कांग्रेस को कमजोर करने का काम नेताओं ने ही किया जो आपस में लड़ते रहे। आखिरी समय तक लोगों से मिलते रहे और उनके काम करते रहे।