बाबा साहब अंबेडकर का सम्पूर्ण जीवन ही पुरे देश और समाज के लिए प्रेरणा रहा है, उनके जीवन से भी लाखो लोगों ने प्रेरणा और मार्गदर्शन पाया है, बाबा साहब के विचारों को अपनाकर आज बाबा साहब अम्बेडकर जी की जयंती पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कोरोना के प्रतिबंधों का ध्यान रखते हुए कार्यकर्ताओं से संवाद और देश भर में वर्चुअल माध्यमों से कार्यक्रम का प्रसार किया गया.
इस दौरान अ भा कार्यकारिणी सदस्य माननीय भागय्याजी का उद्बोधन सभी स्वयंसेवकों द्वारा सोशल मिडिया माध्यम से सूना गया उन्होंने कहा की बाबा साहब ने अपनी मातृभूमि के प्रति श्रद्धा, प्रेम व आत्मीयता रखते हुए आव्हान किया कि समाज में सभी बंधुओं को न्याय मिलना ही चाहिए, अनुसूचित जाति के बंधुओं को आर्थिक संरक्षण मिलना चाहिए , इसके लिए उन्हें संघर्ष भी करना चाहिए , परंतु यह संघर्ष संविधान के दायरे मे हो तथा इसमें हिंसा का कोई स्थान ना हो ।
उन्होंने कहा की जलगांव की एक दलित जनसभा में बाबा साहेब ने कहा था कि अन्यान्य कारणों से मतभिन्नता हो सकती है , परंतु अपनी मातृभूमि की अखंडता के लिए मैं अपने प्राणों का बलिदान दे सकता हू और वह मातृभूमि की अखंडता के लिए ही जियेगे. साथ ही गोलमेज सम्मेलन मे बाबा साहब ने अंग्रेजों से कहा कि आपके डेढ सौ साल के राज मे हम दलितों को क्या मिला. ना मंदिरों में प्रवेश मिला ना तालाब का पानी और ना ही कोई सरकारी नौकरी. आप विदेश मे कानून बनाते रहे और हम उसका पालन करते रहे. यह अब और नही होगा , हमें स्वतंत्रता चाहिए , अपना स्वयं का संविधान तथा कानून चाहिए.
बाबा साहेब द्वारा 1936 की घोषणा के बाद इस्लामी देशों व ईसाई संगठनों ने उन्हें अनेक प्रलोभन देकर अपने साथ मिलाना चाहा. निजाम ने तो करोडों रुपयों का लालच देने का प्रयास किया । लेकिन बाबा साहब तो एक बड़े देशभक्त थे तथा उनका अपने धर्म मे मौलिक आस्था व विश्वास था , उन्होंने कहा कि मैं या मेरे जन इस्लाम या ईसाइयत में कभी नहीं जाऐंगे भले ही भारत में जन्में बौद्ध धर्म को अपना लेंगे.