जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल के रूप में उनके सामने बड़ी और कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं

Ayushi
Updated on:
jayshankar gupt

वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त

हमारे काशी विश्वविद्यालय (बीएचयू) छात्र संघ के अध्यक्ष रहे भाजपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय मंत्री, मनोज सिन्हां को जम्मू-कश्मीर का उप राज्यपाल बनने की बधाई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस चुनौतीपूर्ण दायित्व के लिए उन पर भरोसा जताया, इसके लिए उनका भी आभार.
आज उनके इस चयन को लेकर बीबीसी की संवाददाता ने हमारे करीबी रिश्तों के मद्देनजर हमारी टिप्पणी मांगी थी. यह सवाल भी उठा कि क्या राजभवन पहुंचने के बाद राजनीतिक करियर समाप्त हो जाता है. हम ऐसा नहीं मानते. उम्र, अनुभव और ऊर्जा को देखते हुए मनोज की राजनीति के कई अध्याय अभी बाकी हैं.

वह इससे ज्यादा के लिए डिजर्व करते हैं लेकिन गाजीपुर और पूर्वांचल के लिए रेल और संचार मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभालते हुए उनके बहुत कुछ करने के बावजूद वहां के मतदाताओं ने इससे उन्हें महरूम कर दिया. वह मोदी लहर में भी चुनाव हार गये अथवा हरा दिए गये! लेकिन उनकी हार गाजीपुर और पूर्वांचल की हार थी. पूर्वांचल के विकास के लिए उनके भगीरथ प्रयासों की हार थी. हम छात्र युवा राजनीति के जमाने से ही परस्पर विरोधी विचारधारा के साथ रहे. लेकिन उनकी सहृदयता, सहिष्णुता ने कभी इसे हमारे निजी रिश्तों को प्रभावित नहीं होने दिया. यह भी एक कारण है कि उनकी चुनावी हार पर किसी भी भाजपाई से कम दुख मुझ जैसे समाजवादी को नहीं हुआ था.

एक बार उनके रेल राज्यमंत्री रहते आजमगढ़ और पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों की आकांक्षा को अभिव्यक्ति प्रदान करते हुए हमने उनसे कैफियत एक्सप्रेस को गाजियाबाद में रुकवाने का आग्रह किया था, उन्होंने तपाक से हामी भरी थी. हालांकि इसमें समय लगा. हमने कई बार उलाहना भी किया. एक दिन अचानक संसद के केंद्रीय कक्ष में उन्होंने पास बुलाकर कहा, “जयशंकर जी, कैफियत गाजियाबाद में रुकने लगी है.” हमने तुरंत आजमगढ़ में अपने अनुज, मित्र संजय श्रीवास्तव से फोन पर तस्दीक की और तब जाकर उन्हें बधाई दी और धन्यवाद किया. वह सही मायने में पूर्वांचल की प्रगति और विकास के लिए कृतसंकल्प थे.

प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के बेहद करीबी रहे मनोज के लिए एक समय ऐसा भी रहा जब लगा कि वह राजनीति के बियाबान में चले गये. लेकिन उन्होंने निष्ठा और धैर्य के साथ इसका सामना किया और वापसी की. जम्मू कश्मीर के उप राज्यपाल के रूप में उनके सामने बड़ी और कठिन राजनीतिक चुनौतियां हैं. उन पर पार पाना, उनके राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव के लिए खुद भी एक चुनौती रहेगी. उनके सफल होने के साथ ही उनके उत्तम स्वास्थ्य और उज्वल राजनीतिक भविष्य की शुभकामनाएं.