“मोहनखेड़ा” : पदमा राजेन्द्र

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@पदमा राजेन्द्र

जब बचपन झाबुआ जिले व झाबुआ में गुजरे व कई दफ़ा मोहनखेड़ा जाने का सुअवसर मिले तो उस स्थान से एक लगाव होना स्वाभाविक है। लगता है जैसे वहां के हर जर्रे से पहचान है एक आत्मीयता है। किंतु जब भी वहां जाओ हर बार एक परिवर्तन दिखाई देता है, कभी भोजनशाला के स्थान में तो कभी उसके आकार में, कभी धर्मशालाओं की बढ़ती तादात तो कभी कुछ ओर जो इस बात का धोतक है कि विकास कार्य तभी सम्भव है जब तीर्थ यात्रियों में मोहनखेड़ा के प्रति श्रद्धा व आदरभाव का सैलाब उमड़ता-घुमड़ता रहता हो।इतिहास के लिए विख्यात रहे धार जिले की सरदारपुर तहसील के मोहनखेड़ा में श्वेतांबर जैन समाज का एक ऐसा महातीर्थ विकसित हुआ है जो देश और दुनिया में ख्यात हो चुका है परम पूज्य दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरेश्वर जी महाराज साहब के तीर्थ नगरी मानव सेवा का तीर्थ बन चुकी है। गुरु सप्तमी पर यहां हजारों श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है लाखों श्रद्धालु पूज्य गुरुदेव का जय घोष कर अपने कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

दरअसल पूजनीय दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेंद्र सुरेश्वर जी महाराज के दिव्य दृष्टि का परिणाम मोहनखेड़ा महातीर्थ है। श्री राजेंद्र सुरेश्वरजी संवत 1928 व 1934 में राजगढ़ में चातुर्मास कर चुके थे। संवत 1938 में उन्होंने अलीराजपुर में चातुर्मास किया और उसके पश्चात उनका धार जिले के राजगढ़ में फिर पदार्पण हुआ। इस दौरान गुरुदेव ने श्रावक श्री लुणाजी पोरवाल से कहा कि आप सुबह उठकर खेड़ा जाएं व घाटी पर जहां कुमकुम का स्वास्तिक दिखे वहां निशान बनाएं तथा उस स्थान पर एक मंदिर का निर्माण करें।गुरुदेव के आदेशानुसार लूणाजी ने मंदिर निर्माण कार्य प्रारंभ करवाया संवत 1939 में गुरुदेव का चातुर्मास निकट ही कुक्षी में हुआ और संवत 1940 में वे राजगढ़ नगर में रहे। श्री गुरुदेव ने इसी दौरान शुक्ल सप्तमी के शुभ दिन मूलनायकजी ऋषभदेव भगवान आदि 41 जिन बिंबीयों की अंजनश्लाका की।मंदिर में मूल नायकजी वी अन्य बिंबियों की प्रतिष्ठा के साथ ही उन्होंने घोषणा की कि यह तीर्थ भविष्य में विशाल रूप धारण करेगा। और इसे मोहनखेड़ा के नाम से पुकारा जाएगा। आज यह तीर्थ उनके ही आशीर्वाद की वजह से महातीर्थ बन चुका है तथा देश भर से यहां तीर्थयात्रियों का आवागमन जारी रहता है।

नेत्र सेवा के लिए भी यह तीर्थ प्रसिद्ध है 1999 में तीर्थ पर 5 हजार 427 लोगों के ऑपरेशन किए गए। इसके अलावा आदिवासी अंचल में शाकाहार के प्रचार व व्यवन मुक्ति हेतु शिविरों का आयोजन किया जाता है। इतना ही नहीं गोवंश के लिए यहां 9 हजार वर्ग फुट आकार की श्री राजेंद्र सुरी कुंदन गोशाला है जिसमें सर्व सुविधा युक्त 4 गोसदन बनाए गए हैं। पशुओं के उपयोग के लिए घास आदि के संग्रह हेतु 10 हजार वर्ग फुट का विशाल घास मैदान भी है। इस तरह सामाजिक सरोकार से भी यह तीर्थ जुड़ा हुआ है । इस सामाजिक सरोकार में मुनिराज ज्योतिष सम्राट स्वर्गीय श्री ऋषभ चंद महाराज साहब का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा है।श्री गुरु राजेंद्र विद्या शोध संस्थान की स्थापना मोहनखेड़ा तीर्थ में की गई। इसका मुख्य मुख्य उद्देश्य जैन साहित्य में रुचि रखने वाले लोगों को पुस्तकालय की सुविधा उपलब्ध कराना व शोध परक साहित्य का प्रकाशन करना है। इसके अतिरिक्त गुरुदेव द्वारा रचित श्री राजेंद्र अभिधान कोष के 7 भागों का संक्षिप्तीकरण कर उनका हिंदी अनुवाद किया जा रहा है ।

यह मानव सेवा का भी महातीर्थ बन चुका है। यहां श्री आदिनाथ राजेंद्र जैन गुरुकुल का संचालन किया जा रहा है , जिसमें विद्यार्थियों के आवास भोजन शिक्षण हेतु व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा श्री राजेंद्र विद्या हाई स्कूल का भी संचालन किया जा रहा है, जिसमें सैकड़ों विद्यार्थी अध्ययनरत है दुनिया का प्रत्येक धर्म यहां यह शिक्षा देता है कि मानव सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं इसी ध्येय वाक्य के साथ यहां पर श्री गुरु राजेंद्र मानव सेवा मंदिर चिकित्सालय संस्था भी संचालित है। इस चिकित्सालय में नाम मात्र के शुल्क पर सुविधाएं दी जाती है।जहां कभी धूल-मिट्टी की कच्ची सड़के हुवा करती थी वहां अभी चमचमाती सीमेंटेड रोड है, जो जगह हम अपने कदमों से आसानी से नाप लेते थे वहां अब बैटरी चलित गाड़ियां यात्रियों की सेवा में उपलब्ध है। ऐसी व नॉन ऐसी कमरों से सर्व सुविधाजनक रहने के स्थान है। हरियाली से आच्छादित वातावरण में आम के पेड़ों पर लदे मोर मन को मोह लेते है। अनगिनत यात्रियों के कोलाहल में भी शांति व सुकून का अहसास हो, भीड़ हो पर उस भीड़ की मौजूदगी भी सुकून के कुछ पल दे दे तो इससे अच्छा क्या हो सकता है।

कालांतर में जो चाय की गुमटियां थी वो आज सुसज्जित दुकानों का स्वरूप धारण कर चुकी है जहां आपको रोजमर्या के तमाम सामानों के साथ-साथ कई और सामान भी आसानी से उपलब्ध हो जाता है। अभी जब हम वहां चाय का आनन्द लेने गए तो पतझड़ में बहार का आनन्द आ गया। हुवा कुछ यूं कि अचानक तेज हवा का झोंका आया और नीम के पेड़ से झरझरा के सुखी पत्तियों का सैलाब हम पर बरस पड़ा। ऐसा एक बार नहीं दो-तीन बार हुवा ओर हमारा छोटा सा छुटकू कोतुहल से ओर में मंत्रमुग्ध उस पल को पलकों में कैद कर बैठी..।

पदमा राजेन्द्र