चलो आज मैं रावण बन जाऊँ

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2015 में अपनी कविता “चलो आज मैं रावण बन जाऊँ” से यह जताने की कोशिश की थी कि हर मनुष्य के भीतर एक रावण छिपा है और दशहरे का महापर्व अपने भीतर के रावण को दहन करने का भी है। बीते तीन सालों में यह पंच बहुत चला यहां तक कि आईडिया मोबाइल ने इस पंच लाइन को उठाकर अपना एड भी बना लिया। अपने को कभी कोई शिकायत नहीं रही ,आखिर एक विचार लहलहाकर लोगों के जेहन में पहुंच चुका था। बहुत से लोगों ने सोचा अपने भीतर के रावण का दहन करना भी जरूरी है जो किसी न किसी रूप में अपने मन,आचरण और दृष्टि में बैठा हुआ है।

‘दुष्टता’ इसी भीतर के रावण की करतूत होती है, बहुत से लोग अच्छी और सुंदर छवि के होने के बावजूद अपने आचरण, व्यवहार से कुरूप तथा भद्दे होते हैं । कई लोग साजिशें रचने में और उन्हें अंजाम देने में अपना समय और बुद्धि का दुरुपयोग करते हैं , कुछ लोग भीतर से बुरा सोचते, देखते और करते हैं तो कुछ लोग इसमें प्रसन्न होते हैं कि उसका मित्र ,पड़ोसी या रिश्तेदार कितने दुखः और कष्ट से घिरा है ।बहुत ताज़्ज़ुब होता है यह जानकर की लोग झूठ का सहारा लेकर ऊंचाई पर जा बैठेते हैं वहां पहुंच कर राम नाम का स्मरण करते हैं लेकिन यह नहीं सोचते उनके भीतर के रावण ने न जाने कितनी सच्चाइयों का हरण कर निर्दोषों के सुखः का हरण कर लिया है। लेकिन भीतर बैठा यह अहंकारी रावण उसे यह सोचने का समय भी नहीं देता कि अपने सुखः का आसन बिछाकर न जाने कितनों के लिए दुःख की नदियां बहा दे रहे हैं।

अपने भीतर राम होना चाहिए लेकिन हम सबने रावण को अपने आचरण, कार्य और जीवन में बसा रखा है जिससे मर्यादित आचरण का रघुकुल हम निर्मित नहीं कर पा रहे हैं। आज हम यह जरूर सोच रहे हैं कि अपने भीतर के रावण का वध करना है लेकिन किसे करना है, जिसे करना है वह हम खुद हैं ,दूसरे को सलाह देकर नहीं हमे अपने ही रावण को मारना है।अपनी हैसियत और काम को पहचानना है और यह देखना हैं कि हम क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं इसमें जो उचित और मर्यादित है वह राम है, अच्छाइयों का अहसास है लेकिन जो अनुचित और अमर्यादित है वही तो रावण है भीतर के कुछ इतर, दस बुराइयों का एक रावण उसे ही हमें दशहरे पर संकल्प के साथ मारना है।

अब कोई विभीषण नही होगा जो आपको बता सके कि आपके भीतर के कुछ इतर कहाँ बैठा है रावण , भीतर के इस रावण को हम ही जानते पहचानते है और यह भी कि उसका वध कैसे होगा लेकिन कब होगा यह आपको आज़ और अभी तय कर लेना चाहिए आखिर जीवन आपका है जो हो सकता सुखमय हो लेकिन उसे सुकूनमय बनाना आपके हाथ में है। सुकून तब ही मिलता है जब वह जीवन की प्रकृति बन जाता है जिससे आनंद और खुशी की बयार बहने लगती है, फिर मेरी कविता पर गौर कीजिए ” चलो आज मैं रावण बन जाऊँ”….

@सुरेन्द्र बंसल