– सतीश जोशी
पत्थर तोड रहा,
पत्थर जोड़ रहा,
पसीना बहा रहा,
खूब तप रहा,
खूब गल रहा,
सूखकर टूट रहा,
उनके सपनों के लिए,
उनकी कोठियो के लिए
उनकी अय्याशी की दीवारों,
के लिए पसीना बहा रहा,
अपने पसीने की बदबू से,
उनके दालान में खुशबू बिखेर रहा,
शोषण और दर्द की कहानी लिख रहा,
उनकी लूट, भूख, अंतहीन इच्छाओं के लिए,
उनकी कोठियों की नींव में पसीना सीच रहा,
अपने छप्पर, अपनी भूख, अपनी प्यास के लिए।