संगठन की राजनीति के पुरोधा और कुशल प्रशासक महेश जोशी को नमन

Shivani Rathore
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निर्मल सिरोहिया

मप्र की राजनीति का एक अद्भूत सितारा अस्त हो गया। महेश जोशी नामक इस संवेदनशील राजनीतिक ने संगठन से लेकर सत्ता तक पदों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया। बल्कि वे राजनीति के ऐसे विश्वविद्यालय थे, जहां जमीनी कार्यकर्ताओं की आवश्यकता और अपेक्षा से लेकर संगठन और सत्ता के साथ प्रशासनिक ढांचे के तालमेल की शिक्षा-दीक्षा ली जा सकती थी। मप्र की राजनीति में कांग्रेस को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने में महेश जोशी की भूमिका अहम रही। एक दौर तो ऐसा भी रहा जब मप्र में कांग्रेस की राजनीति के सत्ता और संगठन से लेकर प्रशासन तक के हर फैसले उनकी सहमति के बिना संभव नहीं होते थे।

राजनीति के शीर्ष पर होकर भी उन तक आम कार्यकर्ता से लेकर आम आदमी तक का पहुंचना सहज था। हर व्यक्ति से मुलाकात उसकी आवश्यकता और स्वार्थ, महेश जोशी से कुछ छुपा नहीं होता था। यही वजह थी कि वे बड़ी बेबाकी से अपनी बात रखते थे। मेरे जैसे कई पत्रकारों के लिए भी वे मार्गदर्शक बने। करीब बीस साल पहले मैं जब पत्रकारिता के लिए भोपाल पहुंचा, तो राजनीति के इस अद्भुत व्यक्तित्व को और अधिक समझने का मौका मिला। यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि उस वक्त महेश जोशी के बेबाकी वाले अंदाज को मेरे जैसे कई पत्रकार और अन्य लोग झिड़कियों वाले अंदाज के रूप में ही देखते रहे।

लेकिन भोपाल जाकर सारे भ्रम दूर हुए। दरअसल, महेश जोशी जैसे दिलदार और संवेदनशील नेता का होना ही कांग्रेस की ताकत थी। उनको जानने वाले यह भी जानते होंगे कि किस तरह वे भोपाल में अपने बंगले पर सुबह-शाम आम लोगों, कार्यकर्ताओं, नेताओं, मंत्रियो और प्रशासनिक अधिकारियों से मिलते थे। एक तरह से वह उनका दरबार ही होता था, जहां हर जरूरतमंद पहुंचता था और उसका कोई भी काम सहजता से हो जाता था। राजनीति के इस धूरंधर नेता की याददाश्त बेहद मजबूत थी। कौन व्यक्ति उनके पास कब-कब और किस काम से आया, उन्हें सब याद रहता था। कई बार वे लोगों के एक जैसे कार्यों को लेकर आने पर नाराज होकर उस व्यक्ति को बूरी तरह झिड़क देते। यहां तक की भगा भी देते, लेकिन उस व्यक्ति के जाने के तुरंत बाद अपने अधीनस्थ को बुलाकर उस व्यक्ति का काम तुरंत करवाने के निर्देश दे देते। यानि उनका मन बेहद संवेदनशील था। वे क्या कहते थे और क्या सोचते थे। यह समझ पाना न सहज था, न आसान। वे आजीवन अपने इसी अंदाज को लेकर जिए।

किसी भी काम के लिए उनका एक फोन कांग्रेस के संगठन के किसी पदाधिकारी, किसी मंत्री या प्रशासन के किसी अधिकारी को जाना किसी आदेश से कम नहीं रहता था। वे चाहते तो अपने इस सुनहरे दौर में पद, वैभव और संपदा सब पा लेते, लेकिन उनके लिए सब तुच्छ था। मप्र में बीते चुनाव में कांग्रेस यदि सत्ता में लौटी थी, तो इसमें संगठन स्तर पर महेश जोशी की मेहनत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव पूर्व उन्होंने कांग्रेस के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच जाकर अस्तित्व की आखिरी लड़ाई एकजुट होकर लड़ने का संकल्प दिलाया और परिणाम सबके सामने था।

यदि कांग्रेसी उनकेे मंतव्य को पूरे मन से स्वीकार कर चुनाव लड़ लेते तो आज प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार होती और यहां का परिदृश्य भी कुछ और होता। कांग्रेस की राजनीति के इस पूरोधा ने अपने जीवन काल में सब कुछ पाया। यद्यपि व्यक्तिगत रूप से कुछ मन में कसक रही भी होगी, तो संभवतः अपने पुत्र दीपक जोशी (पिंटू) को स्थापित करने की, जो वक्त के साथ पूरा करने के लिए पिंटू के पास अभी अवसरों की कोई कमी नहीं है। आज महेश जोशी ने नश्वर देह को त्याग कर खुद को परमपिता परमात्मा में विलीन कर लिया। यह जोशी परिवार के लिए तो क्षति है ही। इंदौर शहर और मप्र की राजनीति के लिए भी बड़ी क्षति है। ईश्वर से यही प्रार्थना है कि उन्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें और परिजनों को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें।

ऊं शांति-शांति।
विनम्र श्रद्धांजलि।