हे मनुष्य! कोरोना से कह दो, मेरा खुदा बड़ा है…

Shivani Rathore
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Corona Alert

-कोरोना त्रासदी
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(महेश दीक्षित)

अदृश्य कोरोना वायरस कभी भी और कहीं पर भी हमला कर सकता है… किसी को भी संक्रमित कर सकता है…इसमें कोई दोराय नहीं… लेकिन यह भी तथ्य और सत्य है कि, कोरोना वायरस सिर्फ उन्हीं लोगों को (कुछ अपवाद छोड़) मार रहा है, जो सदैव खुद से और कुदरत से दूर रहते आए हैं… जिन्होंने कभी कुदरत के नियमनों का पालन नहीं किया और उसका सम्मान नहीं किया…रोजमर्रा के, भगवान कहो, खुदा कहो, गाड कहो के प्रति और कुदरत के प्रति तनिक भी अहोभाव नहीं रहा, वे ही कोरोना के आक्रमण से हताहत हो रहे हैं।

…हो सकता है यह बात किसी भी बुद्धुजीवियों (बुद्धिजीवी) और पढ़े-लिखे नासमझों को गले न उतरे…क्योंकि यह बात तर्क से नहीं, सिर्फ आंतरिक समझ और संवेदनशीलता से ही समझी जा सकती है… मुझे ऐसे बुद्धिजीवियों की कभी परवाह भी नहीं रही…और फिर किताबों- शास्त्रों की जानकारी हासिल कर हर कोई पंडित, शास्त्री, कलेक्टर, डाक्टर, इंजीनियर तो बन सकता है…लेकिन आत्म-साक्षात्कारी और तत्वज्ञानी कभी नहीं हो सकता…इसे अधकचरा ज्ञान कहते हैं…अधजल गगरी छलकत जाए…यानी ऐसी गगरी, जो छलकती ज्यादा हैं, लेकिन प्यास कम बुझाती है…। जो खुद के स्वधर्म को, ईश्वर और उसके द्वारा निर्मित प्रकृति के स्वभाव को हर क्षण अनुभव करते हैं…वे समझ सकते हैं कि, कोरोना वायरस हो या फिर इससे भी घातक कोई और राक्षस उन्हें शारीरिक रूप से तनिक प्रभावित तो कर सकता है…शारीरिक कष्ट भी दे सकता है…लेकिन न ही उन्हें डरा सकता है और न ही बेमौत मार सकता है…आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति मरता भी है, तो मृत्यु का स्वागत करते हुए ऐसे उल्लास और आनंद में संसार से विदा होता है…जैसे मृत्यु उसकी प्रेयसी हो और वह प्रेयसी से महामिलन के लिए जा रहा है…

वह कोरोना संक्रमण में मौत के डर से डाक्टरों से जीवन की भीख नहीं मांगता और न ही अस्पतालों में इलाज के लिए गिड़गिड़ाता फिरता है… कितनी आश्चर्य और हैरत में डालने वाली बात है कि, लोग आज इसलिए मर रहे हैं कि उन्हें आक्सीजन नहीं मिल रही है…इसलिए मर रहे हैं, क्योंकि इम्युनिटी कमजोर है… रेमडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल पा रहा है…क्या इसका यह मतलब नहीं है कि, हमने अपने लिवर और फेफड़ों की कभी हिफाजत ही नहीं की…कितनी दुखद बात है कि, वायु मंडल में पर्याप्त आक्सीजन होने के बावजूद हमारे फेफड़े उसे खींच नहीं पा रहे हैं…क्योंकि हमने उन्हें नैसर्गिक रूप से ताकतवर बनने ही नहीं दिया…हमें जीवन की सांसें चलाए रखने के लिए कृत्रिम आक्सीजन की आवश्यकता पड़ रही है…।

हम आत्मावलोकन करेंगे…और अपनी छठी इंद्री से जांचेंगे-देखेंगे तो पाएंगे कि, यह कोरोना वायरस सिर्फ उन्हीं लोगों के लिए घातक साबित हो रहा है… जो पहले से ही शारीरिक या मानसिक रूप से बीमार रहे हैं… जिन्होंने प्रगति की अंधी दौड़ और कुछ पाने लेने के पागलपन में…खुद का और प्रकृति का सानिध्य और सम्मान नहीं किया…कभी सूरज की पहली किरण का स्वागत नहीं किया…जिन्होंने कभी भौर और गोधूली में बहती मधुर बयारों की संगति नहीं की…आसमान में सौदंर्य से इठलाती चांदनी से रूबरू संवाद नहीं किया…नदी-झरनों के पास बैठ उनका कलरव गान नहीं सुना…जो नंगे पैरों मिट्टी में चलना -खेलना-कूदना भूल गए…जिनके फेफड़ों का दम कभी मेहनत और कसरत में पसीना बहाते नहीं फूला हो, ऐसे लोगों को बीमार नहीं कहेंगे, तो क्या कहेंगे…स्वभाविक है कोरोना ऐसे कमजोर लोगों को नहीं मारेगा, तो किसे मारेगा…।

अब भी वक्त है, यदि कोरोना से लावारिस मौत का डर सता रहा है, तो बजाय आक्सीजन और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए डाक्टरों, अस्पतालों, दवा के सौदागरों, अफसरों एवं सरकार के सामने गिड़गिड़ाने के, अपने भीतर जीने की जिजीविषा पैदा करो…कुदरत को पूरे अहोभाव के साथ धन्यवाद कहो…शुद्ध इच्छा शक्ति और पूरे विश्वास के साथ आंखें बंदकर दोनों हाथ ऊपर उठाकर कहो कि ‘आल इज वेल’…तुम देखोगे कि, तुम्हारा आंतरिक आत्म विश्वास जाग रहा है…पूरी कायनात का कण-कण तुम्हारी हिफाज़त और उपचार में जुट गया है…और तुम अनुभव करोगे कि, कोरोना तुमसे डरकर भाग रहा है…कोरोना बेमौत मर रहा है…और तुम मौत के डर पर जीत हासिल कर रहे हो…तुम्हारी जिंदगी में नये सुअवसर के सूरज का उदय हो चुका है…आगे कहूंगा कि-

ये मत कहो खुदा से मेरी मुश्किलें बड़ी हैं,
इन मुश्किलों से कह दो मेरा खुदा बड़ा है।
आती हैं आंधियां तो कर उनका खैर मकदम,
तूफां से ही तो लड़ने खुदा ने तुझे गढ़ा है।