सुपर कॉरिडोर के जनक विजय की कोरोना से हार

Shivani Rathore
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*राजेश राठौर*

इंदौर : इंदौर विकास प्राधिकरण की रेसकोर्स रोड पर बनी नई बिल्डिंग को लेकर सुपर कॉरिडोर को अंजाम देने वाले विजय मराठे कोरोना से एक बार जीतने के बाद दूसरी बार नहीं लड़ पाए और आखिरकार हार मानने के बाद दुनिया छोड़कर चले गए।

आईडीए में सब-इंजीनियर के रूप में विजय मराठे की भर्ती हुई थी। शुरुआत में ही उनके काम का जज्बा इतना ज्यादा था कि उस जमाने के चर्चित रहे आईडीए अध्यक्ष रहे सतीश कंसल ने विजय मराठे को बिल्डिंग बनाने का काम सौंप दिया। सबसे ज्यादा सुविधा और प्लानिंग से बनी हुई सरकारी ऑफिस की यह पहली बिल्डिंग है। इसके बाद रिंगरोड का काम शुरू हुआ, तो मराठे ने उसमें अहम भूमिका निभाई।

जब सुपर कॉरिडोर बनाने की बात आई तो मराठे ने कहा था कि ये रोड बनाना जरूरी है, भले ही किसानों को इसके लिए कैसे भी तैयार करना पड़े। उसके बाद मराठे ने ही यहां पर मेडिकल हब से लेकर बड़ी आईटी कंपनियों के लिए बड़े प्लाट बिकवाए। कॉरिडोर की बेहतर प्लानिंग के लिए मराठे ने सबसे पहले आईडीए के दफ्तर में प्लानिंग शाखा का काम तेजी से बढ़ाया। पूरे दफ्तर को हाईटेक किया। इसके अलावा बिल्डिंग में ही सारे नक्शों के प्रिंट निकलने लगे। सुपर कॉरिडोर पर शुरू से लेकर आखिरी दिन तक पांच साल में मराठे ने एक-एक दिन में दो-दो, तीन-तीन बार कॉरिडोर पर जाकर देखा कि कैसे काम हो सकता है।

स्कीम-136, 134 और 140 में भी मराठे की महत्वपूर्ण भूमिका रही। जब इंदौर का मास्टर प्लान पहली बार सेटेलाइट के जरिये बना, तो मराठे इसरो की टीम के सदस्य थे। इसके बाद मराठे ने नगर निगम में आकर स्मार्ट सिटी की प्लानिंग की। कृष्णपुरा नदी के पास संजय सेतु के काम को पूरा करने से लेकर जवाहर मार्ग के जूनी इंदौर को जोडऩे वाली सड़क की प्लानिंग भी उन्होंने की थी, जिसका काम अब शुरू हो पाया। इसके अलावा आने वाले समय में इंदौर शहर के लिए नए रिंगरोड की कल्पना भी मराठे ने पांच साल पहले की थी, जिसके आधार पर केंद्र सरकार ने भी योजना को मंजूरी दे दी।

हमेशा हर किसी की मदद के लिए आगे आने वाले विजय मराठे को कुछ दिन पहले जब कोरोना हुआ, तो उन्हें विशेष अस्पताल में भर्ती किया। वे ठीक होकर घर चले गए थे। उसके बाद फिर उनकी तबीयत खराब हुई, तो उन्हें एप्पल अस्पताल में भर्ती किया गया, वहां भी वे ठीक हो गए थे। एक-दो दिन में छुट्टी होने वाली थी, लेकिन फिर तबीयत बिगड़ी और उनको बचाया नहीं जा सका। कलेक्टर मनीषसिंह, विवेक अग्रवाल, पी. नरहरि जैसे कई अफसर उनके काम के मुरीद थे।