कहीं आप नैचरल बायास (प्राकृतिक पुर्वग्रह) से पीड़ित तो नहीं।

Shivani Rathore
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-डॉ. गरिमा संजय दुबे

“अरे उसकी तो क्या किस्मत है”।
“चाँदी का चम्मच मुँह में लेकर पैदा हुआ है।”
“उनको क्या चिंता खानदानी रईस है”
“अरे उसकी तो बड़ी जान पहचान है, सब काम ऐसे ही हो जाते हैं ”
“उसकी तो बड़ी सेटिंग है साहब”
अरे उसको क्या काम, फ़ुर्सती है,
घर बच्चे नहीं संभालती होगी,
या वह तो चरित्रहीन है”,

अक्सर आपने में अपने आस पास लोगों को यह कहते सुना होगा। किसी के धनी होने पर, खूबसूरत होने पर, किसी की उपलब्धि पर, किसी के समाज में अधिक मान सम्मान को ऐसे ही शब्दों से कम करने की कोशिश करते हैं। सॉफ्ट स्किल्स, कम्यूनिकेशन स्किल्स और मनोविज्ञान में इसे नैचरल बायास या प्राकृतिक पूर्वग्रह कहा जाता है। एक ऐसी प्रवृत्ति जिसमें किसी की भी उपलब्धि को कम करके आंकने के लिए किसी न किसी बात का सहारा लेना। इस प्रवृत्ति से ग्रसित लोग किसी की सफलता सहजता से पचा नहीं पाते। उन्हें हर सफलता किसी की मेहनत व परिश्रम का परिणाम न लग कर, किस्मत, सेटिंग, जान पहचान, पैसे की ताकत का परिणाम लगती है।

माना बहुत भृष्टाचार है और कुछ हद तक इंसान का सामाजिक व्यवहार व परिचय भी उसे उपलब्धि देता है, किंतु पैसा और परिचय ही हो प्रतिभा नहीं तो वह बात अलग से नज़र आने लगती है । बिना प्रतिभा के तो कोई उपलब्धि या सम्मान नहीं होता, होता भी है तो क्षणिक।
किंतु हर आगे बढ़ते इंसान की उपलब्धि पर अक्सर लोग नकारात्मकता फैलाते पाए जाते हैं, यदि इन्हें कोई कारण नहीं मिलता तो ये अंतिम अस्त्र “किस्मत है साहब”, कह कर अपनी कुंठा को दबाते पाए जाते हैं। ऐसे लोग अपने सफल न होने के पचास कारण बता देंगें। जिसमें सारा जमाना इनका दुश्मन था, ये तो सब कर सकते थे लेकिन कभी परिवार, कभी समाज, कभी किस्मत, कभी दोस्त, कभी मौसम, कभी तबियत, तो कभी कभी भगवान ने इनका साथ नहीं दिया होता।

ये हर समय अपनी असफलता का ठीकरा फोडने को किसी न किसी का सर ढूंढते हैं। इन्हें इनके अलावा दुनिया में सब बुरे व अज्ञानी दिखते हैं, यह कभी नहीं मानते कि खुद की स्थिति के लिए यह खुद जिम्मेदार हैं। कमाल की बात यह है कि वही उपलब्धि इन्हें हासिल हो जाए तो यह उसे अपनी योग्यता, प्रतिभा और परिश्रम का परिणाम मानते हैं, और दूसरे को मिलने पर जान पहचान या प्रायोजित है कहकर अन्य के लिए संकीर्ण भाव रखते हैं।

वहीं दूसरी तरफ किसी दूसरे की सफलता में इस तरह के लोग कभी यह जानने या मनाने की कोशिश नहीं करते कि किसी को मिलने वाली सफलता उसकी मेहनत, साधना, तपस्या, व्यवस्थित जीवन शैली और समय प्रबंधन का कमाल भी हो सकता है। ये लोग तो अमिताभ जी,सचिन तेंदुलकर, धोनी को भी किस्मत का धनी कह देते हैं। वे यह नहीं देखते कि यहाँ तक की यात्रा कैसी थी, केवल सफलता मत देखिए उसके प्रयास, परिश्रम भी देखिए।

आगे बढ़ती स्त्री के चरित्र पर टिप्पणी तो बहुत पुराना रोग है और आश्चर्य यह कि पुरुष तो किसी स्त्री के लिए बाद में कुछ बोलता है पहले स्त्रियाँ ही किसी स्त्री का चरित्र हनन कर उसकी उपलब्धि को नकारने का प्रयास करती हैं। यह कुंठा, असुरक्षा है जो नकारात्मक व्यक्तित्व की निशानी है। खुले मन से किसी की सफलता पर खुश होना, उसे प्रोत्साहित करना स्वस्थ मन का व्यक्ति ही कर सकता है। ठीक है ईश्वर की कृपा, किस्मत को थोड़ा मान देना कुछ हद तक तो सही है किंतु किसी की सफलता के पीछे उसके सतत परिश्रम को नकार देना प्राकृतिक पूर्वाग्रह कहा जाता है। ईश्वर ने सबको 24 घंटे दिये हैं अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उसका प्रबंधन कैसे करते हैं।

ऐसे लोगों को किसी को मिली उपलब्धि तो दिखाई देती है उसके पीछे के श्रम नहीं दिखाई देता, उसने कितनी रात जाग कर बिताई है, उस वक्त का उपयोग अपना ज्ञान बढ़ाने में किया जब आप गहरी नींद सो रहे थे, उसने कितने घंटे रचनात्मकता को दिये जब आप अपना वक्त किसी की बुराई भलाई करने, गॉसीपिंग, इर्ष्या या खिल्ली उड़ाने या टी वी देखने में जाया कर रहे थे। क्या आपने देखा कि उसने अपना वक्त अपने पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक दायित्वों को पूर्ण निष्ठा से निभाने में दिया और बदले में उस परिवार, समाज ने भी उसके लिए सहूलियतें तय की। जो समय आपने एक दूसरे को नीचा दिखाने, किसी को आगे बढ़ाने, किसी को गिराने उठाने के षड्यंत्र में लगाया, उसने वह वक्त अपनी लकीर को बड़ा करने में बिताया। जो वक्त लोग ईर्ष्या में जाया करते हैं उस वक्त को यही लोग अपनी ऊर्जा बढ़ाने व सकारात्मक चिंतन से उर्वर बनाने में जुटे रहतें हैं।

संसार के सभी सफल लोग जो अपने अपने समूह में सफल हैं उनमें एक बहुत सामान्य बात देखी जाती है कि वे अपने काम के प्रति समर्पित रहतें हैं, और दुनिया उनके बारे में क्या सोचती है अव्वल तो वे उसकी चिंता नहीं करते और करते भी हैं तो उसका जवाब अपने काम से देते हैं। अन्यथा तो इस दुनिया में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो सचिन के कभी ज़ीरो पर आउट होने पर उसके खतम होने की घोषणा कर देते हैं।
इसलिए यदि आपमें कभी किसी की सफलता या उपलब्धि पर इस तरह की बात कहने, सुनने या सोचने की आदत हो तो संभलिए यह नैचरल बायास, या प्राकृतिक पूर्वाग्रह हो सकता है जो अंततः आपकी रचनात्मकता के साथ ही आपकी सामाजिक प्रतिष्ठा व मन की सुख शांति के लिए भी घातक है।

यदि जान पहचान से ही सब होता तो सुनील गावस्कर, सचिन तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन और भी सफल लोगों के बच्चे आज सबसे सफल होते, इसलिए अपनी सोच बदलिए, योग्यता को नकारने के यह तरीके स्वयं के लिए घातक हैं, अपनी रेखा लंबी कीजिए, परिश्रम और लगन से, काम पहचान अपने आप बनने लगेगा।