राज-काज

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* दिनेश निगम ‘त्यागी’

उफ़, नेताओं की यह कैसी भाषा, कैसे संस्कार….
– लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन में रहने के बावजूद कई नेता अपने बयानों के जरिए किस तरह संस्कारों को तिलांजलि देते हैं, मालवा अंचल के दो नेता इसके उदाहरण हैं। इनमें एक हैं कांग्रेस के पूर्व मंत्री सज्जन सिंह वर्मा एवं दूसरे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय। असंस्कारी होने का पहला परिचय सज्जन वर्मा ने दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा लड़कियों की शादी की उम्र 21 साल करने की सलाह पर वर्मा ने कहा कि डाक्टरों के अनुसार लड़कियां 15 साल की उम्र में प्रजनन योग्य हो जाती हैं, इसलिए उनकी शादी की उम्र 18 से 21 साल करने की जरूरत नहीं है। यह उनका आपत्तिजनक और बेवजह बयान था। इस पर कैलाश विजयवर्गीय की प्रतिक्रिया भी सज्जन वर्मा से कम आपत्तिजनक नहीं थी। सज्जन की गलती पर उन्होंने उनके माता-पिता के संस्कारों पर ही सवाल खड़े कर दिए। विजयवर्गीय ने कहा कि सज्जन के मां-बाप ने उन्हें अच्छे संस्कार नहीं दिए। मां-बाप अच्छे होते हैं तभी बच्चे अच्छे निकलते हैं। विजयवर्गीय की यह टिप्पणी भी कम अवांछनीय नहीं। सज्जन की गलती के लिए मां-बाप को कैसे दोषी ठहराया जा सकता है। यह भी अच्छे संस्कारों का उदाहरण नहीं। अब सज्जन ने कहा है कि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की ही सरकार बनेगी और विजयवर्गीय मुख्यमंत्री के पैरों में गिरकर माफी मांगेंगे। उफ़, राजनेताओं की यह कैसी भाषा?

भरोसे लायक नहीं समझे गए सिंधिया समर्थक….
– प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा की घोषित कार्यकारिणी पर नजर डालने से पता चलता है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ छोड़कर कांग्रेस से आए बागी या तो भाजपा नेतृत्व का भरोसा हासिल नहीं कर पाए या भाजपा नेतृत्व ने उन्हें भरोसे लायक समझा नहीं। तभी तो कार्यकारिणी में सिंधिया के साथ आए एक भी नेता को संगठन में महत्वपूर्ण जवाबदारी नहीं सौंपी गई। ग्वालियर अंचल के एक अदद नेता मदन कुशवाहा ही ऐसे हैं, जिन्हें संगठन में प्रदेश मंत्री बनाया गया है। संगठन में प्रदेश मंत्री की हैसियत क्या होती है, यह बताने की जरूरत नहीं। सिंधिया सर्मथक मंत्री पद और विधायकी छोड़ कर भाजपा में आए हैं। इनकी बदौलत ही आज भाजपा सत्ता में है। वीडी से इस संबंध में सवाल हुआ तो उनका जवाब था कि सिंधिया जी अब भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और उनके साथ आए अन्य नेता भी सम्मान के साथ पार्टी में हैं। इन्हें संगठन में जगह क्यों नहीं दी गई, इसका वे कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे सके। पहले सिंधिया समर्थकों गोविंद सिंह राजपूत और तुलसी सिलावट को मंत्री पद की शपथ दिलाने में देरी और अब संगठन में उनके समर्थकों की उपेक्षा से साफ है कि भाजपा नेतृत्व सिंधिया को लगातार उनकी हैसियत का अहसास करा रहा है।

पहले मंत्री नहीं बने, अब संगठन से बाहर….
– भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने 9 माह से ज्यादा समय बाद अपनी कार्यकारिणी घोषित की तो ‘कई के अरमां आसुओं में बह गए।’ खासकर उन नेताओं पर गाज जैसी गिरी जो पहले मंत्रिमंडल में जगह नहीं पा सके थे, अब संगठन से भी बाहर कर दिए गए। उम्मीद थी कि कांग्रेस के बागियों की मजबूरी में जो मंत्री नहीं बन पाए, उनका उपयोग संगठन में होगा, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। भाजपा नेतृत्व ने इन्हें मक्खी समझ कर संगठन से भी बाहर रखा। जिस तरह पहले भाजपा कोटे से मंत्री बने और इसके बाद कार्यकारिणी घोषित हुई, इसे देखकर साफ है कि पार्टी नए चेहरों को मौका देने की कोशिश में है। इससे भाजपा के अंदर ही चर्चा चल पड़ी है कि पार्टी नेतृत्व ने एक पीढ़ी को घर बैठाने की तैयारी कर ली है। विधानसभा के अगले चुनाव में इन्हें टिकट के भी लाले पड़ सकते हैं। जिन वरिष्ठ विधायकों को मंत्री नहीं बनाया जा सका था, इनमें गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ला, रामपाल सिंह, नागेंद्र सिंह, सीतासरन शर्मा, अजय विश्नोई, केदारनाथ शुक्ला, गिरीश गौतम जैसे एक दर्जन से ज्यादा दिग्गज शामिल हैं। पार्टी इन्हें मार्गदर्शक मंडल में ले जाती है या इनका कोई और उपयोग करती है, इस पर सभी की नजर है।

भाजपा निकाल रही बड़बोले नेताओं की हेकड़ी….
– भाजपा के सत्ता में आने के बाद कुछ नेता राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने लगे हैं, कुछ की हेकड़ी निकल गई है और कुछ को कमलनाथ सरकार याद आने लगी है। डा. गौरीशंकर शेजवार जैसे वरिष्ठ नेता को भितरघात के आरोप में नोटिस मिल गया था। अब विंध्य की मांग उठाने पर विधायक नारायण त्रिपाठी की पेशी हो गई। वे हमेशा की तरह दबाव की पॉलिटिक्स की फिराक में थे, जवाब में फटकार लग गई। बसपा विधायक रामबाई का उदाहरण लीजिए। मंत्री बनने का सपना संजोए बैठी थीं। कमलनाथ के मुख्यमंत्री रहते उन्हें पथरिया जाने को सरकारी हेलीकाप्टर मिल जाता था। कांग्रेस सरकार को उनके समर्थन की जरूरत जो थी। भाजपा के सत्ता में आने के बाद वे मुख्यमंत्री शिवराज के खास मंत्री भूपेंद्र सिंह को अपना जीजा बताती थीं। नरोत्तम मिश्रा को भी अपना कहती थीं। याद दिलाती थीं कि सभी ने उन्हें मंत्री बनाने का आश्वासन दिया है। राजनीति का खेल देखिए वे मंत्री तो नहीं बन सकीं, अलबत्ता उनके पति के खिलाफ हत्या का प्रकरण जरूर दर्ज हो गया। कमलनाथ के कारण पुलिस अमला उनके सामने नतमस्तक था। अब रामबाई के मुंह पर ताला है। उनका कोई बयान तक सुनाई नहीं पड़ता।

पद के लालच में नहीं ली जनता की सुध….
– हर नेता राजनीति में आने की वजह जनसेवा बताता है। पद का लालची न होने की डींग हांकी जाती है। पर वास्तव में नेताओं का आचरण कैसा होता है, इसके उदाहरण हैं दमोह क्षेत्र के पूर्व विधायक राहुल लोधी। राहुल 28 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का प्रचार करते और भाजपा में न जाने की कसमें खाते दिखाई पड़ते थे। अचानक प्रचार अभियान के दौरान उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन कर ली। उनके अंदर जनसेवा के जजबे का पता इससे चलता है कि भाजपा ज्वाइन करने के बाद उन्होंने पूरे 85 दिन तक उस जनता की सुध नहीं ली, जिनकी बदौलत वे जयंत मलैया जैसे कद्दावर नेता को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। अब उन्हें कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन करने का इनाम मिला है। वे वेयर हाउसिंग कारपोरेशन के अध्यक्ष बना दिए गए हैं। कमाल देखिए पद मिलते ही जनता के प्रति उनका प्रेम फूट पड़ा। वे लाव-लश्कर के साथ दमोह जा धमके। साफ है कि नेता जनसेवा के लिए नहीं सिर्फ पद के लिए राजनीति में आते हैं। हालांकि दमोह में उनकी अनुपस्थित का पूरा फायदा जयंत मलैया के पुत्र ने उठाया। वे जनता के बीच सक्रिय रहे। दमोह विधानसभा सीट की राजनीति किस करवट बैठती है, यह आने वाला समय बताएगा।