हर चुनाव में महिला प्रत्याशियों एवं उनकी तादाद को लेकर चर्चा होती है। महिलाओं को लोकसभा और विधानसभाओं में आरक्षण मिले, इसका हिमायती भी लगभग हर राजनीतिक दल है। लेकिन जब चुनाव में टिकट देने की बात आती है तो कोई महिलाओं को महत्व देता नजर नहीं आता। संभवत: इसकी वजह महिला प्रत्याशियों को महिला मतदाताओं का ही समर्थन न मिलना है। महिलाएं मतदान लगभग पुरुष मतदाताओं के बराबर ही करती हैं लेकिन उनकी प्राथमिकता महिला प्रत्याशी नहीं होतीं। लिहाजा, राजनीतिक दल भी उन्हें टिकट देने से कतराते हैं। प्रदेश की 28 विधानसभा सीटों के उप चुनाव में भी किसी दल ने 33 फीसदी को ध्यान में रखकर महिलाओं को टिकट नहीं दिए। भाजपा और कांग्रेस ने तीन-तीन महिलाओं को चुनााव मैदान में उतारा है। इनमें से चार दल बदल कर चुनाव लड़ रही हैं।
ये महिला प्रत्याशी आजमा रहीं किस्मत
- विधान सभा की 28 सीटों के उपचुनाव में इस बार 6 महिला प्रत्याशी मैदान में हैं। इसमें से 3 भाजपा और तीन कांग्रेस की हैं। भाजपा ने डबरा से इमरती देवी, नेपानगर से सुमित्रा देवी और भांडेर से रक्षा सिरोनिया को मैदान में उतार रखा है जबकि कांग्रेस ने सुरखी से पारुल साहू, बड़ा मलहरा से रामसिया भारती और अशोक नगर से आशा दोहरे पर दांव लगाया है। भाजपा की तीनों प्रत्याशी कांग्रेस से विधायक रही हैं और दल बदल कर भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं। कांग्रेस ने भाजपा से विधायक रहीं पारुल साहू को भाजपा से लाकर सुरखी से टिकट दिया है। सभी अपनी जीत के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही हैं।
2018 में 250 में जीती सिर्फ 20 महिला प्रत्याशी
- किसी भी चुनाव में महिला मतदाताओं की रुचि बढ़ रही है। महिला मतदाता बढ़-चढ़कर वोट डालने के लिए पहुंचती हैं। लेकिन इनका समर्थन महिला प्रत्याशियों को नहीं मिलता। पुरुष मतदाता भी यही करते हैं। वर्ष 2018 के चुनाव में 250 महिला प्रत्याशी मैदान में थीं। इनमें से भाजपा ने 23 और कांग्रेस ने 28 महिलाओं को मैदान में उतारा था। इसमें से मात्र 20 महिला प्रत्याशी ही जीत हासिल कर सकी थीं। भाजपा से 11, कांग्रेस से 9 और बसपा से 1 महिला प्रत्याशी ही जीत कर विधान सभा पहुंच सकीं। इससे पहले 2013 के चुनाव में 200 महिला उम्मीदवारों में से 30 महिलाओं पर ही मतदाताओं ने भरोसा जताया था। इनमें भाजपा से 22,कांग्रेस से 6 और बसपा से दो महिला विधायक जीती थीं।
@दिनेश निगम ‘त्यागी’